जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । गीता करमाकर को तीस साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ा था. इससे एक दिन पहले उन्होंने दस किलोमीटर की दौड़ में हिस्सा लिया था. उन्हें एथलेटिक्स से गहरा लगाव है. जब केट नाश्ता कर रही थीं तब उनके सीने में दर्द शुरू हुआ था.
गीता के अनुसार, “यह मेरे जीवन का सबसे भयावह अनुभव था. इसने मुझे सदमे में डाल दिया.”
गीता दो बच्चों की मां है. उनकी मदद करने वाले नर्सिंग स्टाफ का मानना है कि दौरा अचानक पड़ा था. वह याद करते हुए कहती हैं, “चूंकि मैं नौजवान थी. मैं फिट थी और मैं अपने खाने-पीने का पूरा ख्याल रखती थी. कोई नहीं जानता था कि मेरे साथ क्या हुआ है.”
अब वो पूरी तरह से ठीक हो चुकी हैं और नियमित रूप से दौड़ने जाती हैं लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी है कि वे अब किसी और बच्चे को जन्म नहीं दें. गीता के साथ जो कुछ हुआ वे अचानक से धमनी के फट जाने का मामला है. यह बहुत कम पाया जाता है और अक्सर इसके बारे में पता नहीं चल पाता है.
औरतों की देखभाल करने वाले कई नर्सिंग स्टाफ को लगता है कि जिन नौजवान महिला मरीजों को दिल का दौरा पड़ता है वे चिंतित रहती हैं और बदहजमी की शिकार होती हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों को अब तक नहीं पता है कि यह क्यों होता है और कैसे इसे रोका जा सकता है. लिसेस्टर कार्डियोवैस्कुलर बायोमेडिकल रिसर्च यूनिट के डॉक्टर डेविड एडलैम का कहना है कि यह आम तौर पर होने वाले हार्ट अटैक से अलग होता है इसलिए इसे पकड़ना मुश्किल होता है.
एडलम के मुताबिक़ सालाना इस तरह के हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है क्योंकि मरीज की मौत के बाद इसका पता करना लगभग असंभव होता है. लेकिन विशेषज्ञ एक और भी बात बताते हैं कि इस तरह के हार्ट अटैक मामले में दस में से नौ मरीज औरतें होती हैं. और इनमें से दस फ़ीसदी मामले गर्भवती महिलाओं के होते हैं या फिर उन महिलाओं में जिन्होंने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया है.