जनजीवन ब्यूरो
रांची। भूमि अधिग्रहण में देरी के आरोप को झारखंड सरकार ने नकारते हुए कहा कि हजारीबाग की 3,960 मेगावॉट की तिलैया अल्ट्रा मेगा पावर परियोजना से अनिल अंबानी समूह की रिलायंस पावर कंपनी के पीछे हटना संदेहास्पद और आश्चर्यजनक है। राज्य सरकार ने इनमें अधिकतर कठिनाइयों को निदान कर दिया है।
कंपनी ने इस बिजली परियोजना से पीछे हटने के लिए भूमि अधिग्रहण की कठिनाई का जो मुख्य कारण बताया गया है वह संदेह के घेरे में है। सरकार का कहना है कि 2009 में सबसे ऊंची बोली लगाकर परियोजना को हासिल करने वाली इस कंपनी के अधिकारी अभी हाल में एक उच्चस्तरीय बैठक में शामिल हुए और उन्होंने इस तरह की किसी कठिनाई का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया।
अनिल अंबानी की रिलायंस पावर कंपनी ने मीडिया में दी सूचना के अनुसार तिलैया बिजली परियोजना से पीछे हटने की घोषणा की है और इसके लिए भूमि अधिग्रहण में हो रही अत्यधिक कठिनाई के चलते देरी, कैप्टिव कोल ब्लॉक और आधारभूत संरचना की कमी को मुख्य कारण बताया।
मुख्य सचिव गौबा ने बताया कि अप्रैल में महीने में हुई एक बैठक में रिलायंस पावर के अधिकारियों ने तय शर्तों में ढील देने की मांग की थी। जिसमें परियोजना बनने के बाद झारखंड को 1,000 मेगावॉट बिजली 1.77 रुपये की दर से देने की बात है। परियोजना की लागत 16,000 करोड़ रुपये तक बढ़ जाने की बात करते हुए कंपनी अधिकारियों ने बिजली दर बढ़ाने का अनुरोध किया था।
यह पूछे जाने पर कि क्या इस तरह की दलील अपनी शर्तें मनवाने के लिए दबाव बढ़ाने का हथकंडा हो सकता है? मुख्य सचिव ने कहा कि बिलकुल ऐसा संभव है लेकिन राज्य सरकार विकास के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए किसी कंपनी के दबाव में नहीं आएगी।
मुख्य सचिव ने कहा कि यदि कंपनी की ओर से इस तरह की दलीलें छह महीने पहले दी जातीं तो इन्हें समझा जा सकता था लेकिन अब तो उसकी ज्यादातर कठिनाइयों को दूर कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य में रेलवे परियोजनाओं और अन्य परियोजनाओं के लिए भी तेजी से काम आगे बढ़ाया जा रहा है जिसकी तारीफ केंद्र सरकार के मंत्रियों ने भी की है।