नई दिल्ली। जनता परिवार के एकीकरण की कवायद के बाद एकीकृत कांग्रेस परिवार की भी कल्पना शुरु हो गई है। माना जा रहा है कि देर सवेर कांग्रेस पार्टी टूटकर बनी टीएमसी और एनसीपी का विलय कांग्रेस में हो सकता है। खासबात यह है कि इस कल्पना को मूर्त रूप देने में न सिर्फ कांग्रेस पार्टी प्रयास कर रही है बल्कि वामपंथी विचार धारा के लोग भी जुटे हुए हैं ताकि दक्षिण पंथी विचारधारा और सांप्रदायिक ताकतों को आगे बढ़ने से रोका जा सके।
इंदिरा गांधी का नारा था न जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर। जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलता रहता था। लेकिन धीरे धीरे देश में जातिवाद का जहर फैलता गया और आम जनता जातिगत आधार पर मतदान को प्रमुखता देने लगी। लेकिन वर्ष 2०14 के लोकसभा चुनाव के दौरान एकबार फिर आम जनता ने जातिगत भावना से ऊपर उठकर मतदान किया, जिसके कारण भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई।
पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव के पार्टी अध्यक्ष रहने के दौरान कांग्रेस पार्टी कई टूकड़ों में बंट गई थी। जिसमें से एक ममता बनर्जी की नेतृत्ववाली तृणमूल कांग्रेस व शरद पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी है। इसके अतिरिक्त कांग्रेस के कई पुराने नेता मसलन बिहार में जगन्नाथ मिश्र, जीतन राम मांझी भी कांग्रेस नेताओं के व्यवहार से तंग आकर अलग हो गए। बताया जाता है कि कांग्रेस पार्टी पूरे देश में अपना अस्तित्व मे वापस लौटने के लिए सभी पुराने कांग्रेसियों की घर वापसी करना चाहती है। इसके लिए पार्टी के अंदरखाने कवायद भी चल रही है। बताया जाता है कि वर्ष 2००9 के आम चुनाव के दौरान एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को आश्वस्त किया था कि जल्द ही उनकी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया जाएगा।
लेकिन ऐसा नहीं हो सका। सूत्रों का कहना है कि वर्ष 2०14 के आम चुनाव के बाद जब वापसी की बात कांग्रेस नेता ने किया तो पवार ने ना तो हां किया और ना ही ना।
इसी तरह टीएमसी नेता ममता बनर्जी भी कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी के विलय को लेकर सोच रही है। कांग्रेस सूत्रों की माने तो बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए ममता से संपर्क साधा जा रहा है। हालांकि ममता को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत है लेकिन जिस तरह से भाजपा पश्चिम बंगाल में अपना पांव पसार रही है वह ममता के लिए चिंता का विषय है। पश्चिम बंगाल में वामपंथ एक अध्याय बनकर रह गया और अब दक्षिण पंथ का उदय माना जा रहा है। हालांकि ममता कांग्रेस के साथ केंद्र सरकार में अपनी भूमिका निभा चुकी हैं लेकिन कुछ मतभेद के कारण उनकी पार्टी सरकार से बाहर हो गई थी।
बकौल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह नेहरू-गांधी विचारधारा के
लोगों का जमा होना देश के लिए अच्छी बात होगी। देश और समाज में जिस तरह से असुरक्षा की भावना बन रही है वह बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि एक विचारधारा के लोग एक मंच पर आ जाएं।
भूमि अधिग्रहण विधेयक हो या कोई अन्य मसले टीएमसी और एनसीपी हमेशा कांग्रेस के पक्ष में खड़ी रही हैं। बताया जाता है कि वामपंथियों के बीच भी यह संदेश गया है कि यदि अपनी साख बचानी है तो कांग्रेस का अस्तित्व में आना जरूरी है। वामदल कई बार केंद्र सरकार में शामिल हो चुकी है। इसलिए वामदल भी चाहते हैं कि कांग्रेस फिर से मजबूत हो।