नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के खिलाफ अवमानना और झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने की धमकी दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर वह दोषी पाए गए तो उन्हें जेल जाना पड़ सकता है. अदालत ने कहा, ‘‘आप अदालत को गुमराह करने का प्रयास क्यों कर रहे हैं? अगर आप झूठी गवाही के आरोपों से बचना चाहते हैं तो आपको माफी मांगनी चाहिए.
अदालत ने बीसीसीआई प्रमुख को याद दिलाया कि ठाकुर ने बतौर बोर्ड अध्यक्ष आईसीसी सीईओ से यह पत्र मांगा था कि क्रिकेट संगठन में कैग के मनोनीत सदस्य की नियुक्ति स्वायत्ता से समझौता होगी और यह सरकारी हस्तक्षेप के जैसा होगा.
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड की पीठ ने अदालत को गुमराह करने का प्रयास करने के लिए बीसीसीआई की खिंचाई की और ठाकुर को चेताया कि अगर शीर्ष अदालत झूठी गवाही की कार्यवाही के संबंध में अपना आदेश सुनाती है तो उन्हें जेल जाना पड़ सकता है.
अदालत ने कहा, ‘‘आप अदालत को गुमराह करने का प्रयास क्यों कर रहे हैं? अगर आप झूठी गवाही के आरोपों से बचना चाहते हैं तो आपको माफी मांगनी चाहिए. हर चरण में आप बाधा पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं. हर कोई जाकर 70 वर्ष के बाद भी पद पर बैठे रहना चाहता है. यह इतना लुभावना कारोबार है कि हर कोई हमेशा के लिए बना रहना चाहता है.’ अदालत ने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी आपको आदेश से असहमत होने की अनुमति देती है लेकिन आप आदेश के क्रियान्वयन में बाधा नहीं डाल सकते.
अगर हम (झूठी गवाही की कार्यवाही में) आदेश सुनाएंगे तो आपके पास जेल के अलावा कहीं और जाने की जगह नहीं होगी.’ शीर्ष अदालत ने वर्तमान आईसीसी प्रमुख शशांक मनोहर के एक पत्र का भी जिक्र किया और कहा कि यहां तक कि उन्होंने भी कहा कि ठाकुर ने ऐसे पत्र के लिए कहा जिससे उन्होंने इंकार कर दिया.
पीठ पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लै को बीसीसीआई का पर्यवेक्षक नियुक्त करने के न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति की सिफारिश के मुद्दे पर विचार कर रही थी. बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘हमारी कड़ी आपत्ति है लेकिन मैं सार्वजनिक रुप से कारण नहीं बताना चाहता.’
शीर्ष अदालत ने हालांकि अनुराग ठाकुर के आचरण पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा, ‘‘अगर आप आईसीसी से एक पत्र मांग रहे हैं तो हम पहली नजर में महसूस करते हैं कि आपने अवमानना की और हम पहली नजर में यह भी महसूस करते हैं कि आप शपथ लेकर झूठी गवाही के लिए जिम्मेदार हैं और हम अभियोजन शुरू करने के इच्छुक हैं.” पीठ ने कहा, ‘‘मनोहर ने बहुत साफ कहा. आपने उनसे आईसीसी से एक पत्र मांगा कि बीसीसीआई में कैग का मनोनीत सदस्य बोर्ड की स्वायत्ता को प्रभावित करेगा. आपके लिए यह बात कहने का क्या मौका था? कैग सदस्य पारदर्शिता बनाए रखने के लिए था.”
पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत के फैसले के बाद यह मुद्दा उठाने का क्या मौका था? आप आईसीसी सीईओ से ऐसा पत्र देने को कैसे कह सकते हैं कि इस अदालत ने कैग के सदस्य के बारे में अपने फैसले में जो कहा वह सरकारी हस्तक्षेप है. इसमें शपथ लेकर झूठी गवाही का मामला बनता है.” शीर्ष अदालत ने कहा कि आईसीसी से ऐसा पत्र लिखने के लिए कहकर बीसीसीआई का इरादा फैसले के उद्देश्य को नुकसान पहुंचाना था, वह भी तब जब पीठ ने स्पष्ट किया कि कैग के सदस्य की नियुक्ति क्रिकेट संगठन में पारदर्शिता लेकर आएगी.
पीठ ने कहा, ‘‘आपकी फैसले के पूरे उद्देश्य को नुकसान पहुंचाने की इच्छा है. जब हमने स्पष्ट निर्देश दिये तो ऐसा करने का क्या मौका था? हमें नही पता कि आपकी मंशा क्या है. उच्चतम न्यायालय का आदेश आने के बाद आप आईसीसी के पास गये और उनसे यह पत्र लिखने को कहा कि सुझाये गए सुधार सरकारी हस्तक्षेप हैं.” सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा कि शीर्ष अदालत जो भी कर रही है वह खेल की बेहतरी के लिए है लेकनि पीठ को बोर्ड को अपनी बात रखने की भी अनुमति देनी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय जो कह रहा है वह कानून है और बाध्यकारी है लेकिन मैं फिर भी असहमत हो सकता हूं. मुझे यह आजादी होनी चाहिए.” इस पर पीठ ने पलटवार करते हुए कहा, ‘‘मुद्दा यह है कि आप (बीसीसीआई) हमारे द्वारा स्वीकार लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने में पूरी तरह से सक्षम हैं या नहीं. अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना या शपथ लेकर झूठी गवाही के लिए अभियोजन चलता है तो वह पद पर कैसे बना रह सकता है? अगर व्यक्ति आदेश लागू करने में बाधा पैदा करता है तो वह कैसा बना रह सकता है?”
हालांकि सिब्बल ने कहा, ‘‘मैं अदालत के सामने पूरे रिकार्ड रख सकता हूं. अगर अदालत को लगता है कि मैं अदालत को गुमराह कर रहा हूं तो मैं माफी मांग सकता हूं. कोई भी उच्चतम न्यायालय के साथ ऐसा करने की हिम्मत नहीं कर सकता.” बीसीसीआई में पर्यवेक्षक की नियुक्ति के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि इससे कोई रचनात्मक कदम नहीं उठेगा.
हालांकि पीठ ने सिब्बल से कहा, ‘‘क्या आप पर्यवेक्षकों के पैनल के लिए कुछ नाम देना चाहते हैं?” शुरुआत में सिब्बल ने अपनी अनिच्छा जताई लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि वह निर्देश प्राप्त करके नामों की सूची सौंपेगे. इसके बाद पीठ ने उनसे एक सप्ताह में सूची सौंपने को कहा. पीठ ने कहा कि वह इस बात पर आदेश देगी कि ठाकुर के खिलाफ अवमानना और झूठी गवाही देने की कार्यवाही शुरू की जाए या नहीं.
सुनवाई की शुरुआत में अदालत को न्यायमित्र के रुप में मदद कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने पीठ को बताया कि ठाकुर और बीसीसीआई सचिव अजय शिरके द्वार दायर हलफनामों में स्पष्ट दिखता है कि बीसीसीआई अदालत का फैसला लागू नहीं कर सकती. ठाकुर द्वारा आईसीसी से पत्र के लिए कहने के मुद्दे पर सुब्रमण्यम ने कहा कि मनोहर ने भी कहा था कि पत्र मांगा गया.