जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत भारत के नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल उठाए जा रहे हैं. सेना के दो सीनियर जनरलों को दरकिनार कर उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया है.
‘जनरल’ बिपिन रावत के सेवाकाल का सबसे भावुक पल तब था जब वर्ष 1978 की 6 दिसंबर में उन्हें 11वीं गोरखा राइफल की पांचवीं बटालियन में पहली बार ‘कमीशन’ किया गया.
कभी उनके पिता ‘लेफ्टिनेंट जनरल’ लच्चू सिंह रावत को भी इसी बटालियन में पहली बार ‘कमीशन’ किया गया था.
पिता के अलावा भी रावत के परिवार के कई लोग सेना में काम कर चुके हैं.
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे बिपिन रावत की शुरूआती पढ़ाई देहरादून और शिमला में हुई.
उसके बाद वो ‘इंडियन मिलिट्री अकादमी’ देहरादून चले गए जहाँ उन्हें प्रतिष्ठित ‘सोर्ड ऑफ़ ऑनर’ से पुरुस्कृत किया गया.
बहुत कम लोगों को ही पता है कि जनरल रावत ने मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री ली है.
उन्होंने ‘मिलिट्री और मीडिया – सामरिक अध्ययन’ विषय पर शोध किया था.
मगर उससे पहले उन्होंने वेलिंगटन के ‘डिफेन्स सर्विसेज स्टाफ कॉलेज’ से स्नातक की डिग्री ली और फिर उन्होंने ‘फोर्ट लेवेन्वर्थ’ के ‘हायर कमांड कोर्स’ से आगे की पढ़ाई पूरी की.
अभी तक जनरल रावत को उनकी सेवाओं के लिए आती विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, सेवा मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और थल सेना अध्यक्ष की विशेष प्रशस्ति से सम्मानित किया जा चुका है.
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने पूर्वी सेक्टर और ‘लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल’ के अलावा पूर्वोत्तर राज्य और भारत प्रशासित कश्मीर में भी फ़ौज को कमांड किया है.
पूरे कार्यकाल में से दस साल तक उन्होंने सरहद पर से घुसपैठ और हथियारबंद संघर्षों को डील किया जिसमे पहाड़ों की दुर्गम पोस्टिंग भी शामिल है.
इसी दौरान वर्ष 1987 में सुमडोरोंग-चू घाटी में तब कर्नल के रूप में तैनात जनरल रावत उस बटालियन का भी नेतृत्व कर रहे थे जिसने हमला कर रही चीनी फ़ौज से लोहा लिया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया.
मणिपुर में वर्ष 2015 जून माह के दौरान जब नागा विद्रोहियों ने 18 सैनिकों की ह्त्या कर दी थी तो म्यांमार में भारतीय सेना ने सरहद पर कार्यवाही कर नागा विद्रोहियों के कई ठिकानों को नष्ट कर दिया था.
सेना की उस विशेष टुकड़ी यानी 21 पारा (स्पेशल फोर्सेज) की कमान भी जनरल रावत के हाथों में थी.
रावत भारतीय सेना की दक्षिण कमान के ‘जनरल अफसर कमांडिंग इन चीफ़’ भी रह चुके हैं.
देहरादून स्थित ‘इंडियन मिलिट्री अकादमी’ में पढ़ाने के अलावा वो ‘डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो’ में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड के कमांडर भी रह चुके हैं.
दक्षिण कमान के जीओसी की पोस्टिंग के बाद वो भारतीय सेना के उप प्रमुख के तौर पर नियुक्त किए गए.
वरीयता के रूप में सबसे वरिष्ठ माने जाने वाले जनरल बक्शी को अगले सेना प्रमुख के रूप में देखा जाता रहा था क्योंकि वो जनरल बिपिन रावत से सीनियर हैं.
जनरल बक्शी फिलहाल भारतीय सेना के पूर्वी कमान के ‘जनरल अफ़सर कमांडिंग’ के रूप में तैनात हैं.
उन्होंने ने भी ‘वेस्टर्न सेक्टर’ के रेगिस्तान के सरहदी इलाक़ों में ‘आर्मर्ड ब्रिगेड’ के नेतृत्व के अलावा पंजाब और भारत प्रशासित कश्मीर में ‘आर्मी कोर’ का नेतृत्व किया है.
फिलहाल जनरल बक्शी की ज़िम्मेदारी बांग्लादेश, चीन,भूटान, म्यांमार और नेपाल से लगी भारत की सीमा को सुरक्षित रखना.
उन्हें भारतीय सेना की ‘स्किनरस हॉर्स रेजिमेंट’ में वर्ष 1977 में कमीशन किया गया.
लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोमोशन के बाद उन्हें सबसे पहले धर्मशाला में भारतीय सेना की IX वीं कोर का कमांडर बनाया गया और फिर उसके बाद उनके सेना के उधमपुर स्थित उत्तरी कमान का ‘चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़’ बनाया गया.
उन्हें अब तक अतिविशिष्ट सेवा मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया जा चुका है.
संयोग ही है कि लेफ्टिनेंट जनरल पी एम हरिज़ ने जनरल बिपिन रावल से ही भारतीय सेना के दक्षिण कमान के ‘जनरल अफ़सर कमांडिंग इन चीफ़’ से अपना पदभार ग्रहण किया.
जनरल रावत के वाईस चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ के रूप में प्रतिनियुक्ति कर दी गयी थी.
केरल के कोज़ीकोड के रहने वाले जनरल हरिज़ वरीयता की सूची में जनरल दलबीर सिंह दिलबाघ के बाद दुसरे नंबर पर हैं.
1978 में 19 वीं ‘मेकनाइज़्ड इन्फैंट्री बटालियन’ में कमीशन किये गए जिसे उन्होंने बाद में ‘कमांड’ भी किया.
जनरल हरिज़ से वरीयता की सूची में केवल जनरल बक्शी ही वरीय हैं.
दक्षिण कमान की बागडोर संभालने से पहले जनरल हरिज़ शिमला स्थित आर्मी ट्रेनिंग कमान के जनरल अफ़सर कमांडिंग इन चीफ़ थे.
तमिलनाडु के अमरावती स्थित सैनिक स्कूल में शुरुआती पढ़ाई के बाद जनरल हरिज़ ने भी खड़कवासला के राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से स्नातक की डिग्री ली.
जनरल रावत की तरह ही जनरल हरिज़ ने भी भारत के बाहर जाकर कई बड़े सैन्य कार्यवाहियों में हिस्सा लिया. वो अंगोला में संयुक्त राष्ट्र की सेना के क्षेत्रीय कमांडर भी रहे और मिलिट्री ऑब्ज़र्वर भी रहे.
इसके अलावा उन्होंने वेलिंगटन में ‘डिफेंस सर्विसेज़ स्टाफ कालेज’ और मऊ के ‘इन्फैंट्री स्कूल’ में बतौर शिक्षक भी पढ़ाया.
पश्चिमी क्षेत्र में समय समय पर उन्होंने बटालियन, ब्रिगेड, डिवीज़न और कोर का भी नेतृत्व किया है.