जनजीवन ब्यूरो
लखनऊ: नोटबंदी के बाद आपने खर्च में जरूर कटौती की होगी लेकिन राजनीतिक पार्टियों पर इसका उल्टा असर पड़ेगा. पार्टियां ज्यादा खर्चीले हो जायेंगी. उम्मीदवार खर्च करने के नये तरीके ढुढ़ेंगे. ये दावा हम नहीं कर रहे बल्कि एक सर्वे में यह बात कही गयी है.
एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) और यूपी इलेक्शन वाच के सर्वे में कहा गया, ‘‘नोटबंदी का चुनाव प्रचार या खर्च पर असर नहीं होगा.’ सर्वे में 69 फीसदी संभावित प्रत्याशियों और पार्टियों के पदाधिकारियों ने माना कि पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार नोटबंदी के कारण चुनाव लडना दस फीसदी अधिक महंगा होगा.
करीब 65 फीसदी संभावित उम्मीदवारों का कहना है कि अगले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के तौर तरीकों पर कोई असर नहीं होगा जबकि 70 प्रतिशत का मानना था कि वे मतदाताओं को लुभाने के लिए पुराने तरीके ही अपनाएंगे.चुनाव सामग्री बेचने वाले व्यापारियों, इवेन्ट मैनेजर, प्रिंटर और ट्रेवल एजेंटों का कहना है कि प्रचार में दिक्कत होगी. उनमें से 70 प्रतिशत ने माना है कि कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ा है.
सर्वे रिपोर्ट पेश करते हुए इसके मुख्य संयोजक संजय सिंह ने कहा कि नोटबंदी के बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर इसके संभावित असर को लेकर विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में सर्वे किया गया. उन्होंने बताया कि सर्वे उत्तर प्रदेश के दस मंडलों झांसी, लखनऊ, बांदा, कानपुर, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, आगरा और बरेली के 30 विधानसभा क्षेत्रों में किया गया. सिंह का दावा है कि सर्वे के दौैरान ये बात सामने आयी है कि काफी तादाद में चुनावी पैसा जनधन खातों में जमा कराया गया है. सर्वे में प्रत्येक जिले के कम से कम लक्ष्य समूह के सात लोगों से बात की गयी.