जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली।आईएमए डॉक्टरों को सुरक्षित माहौल देने के लिए वचनबद्ध है। इस बारे में एक सर्वे स्पैश्लिस्ट डॉक्टरों की बढ़ती हिंसा के मामले केबारे में राय जानने के लिए करवाया गया। इस सर्वे में 80 प्रतिशत के करीब डॉक्टरों ने कहा कि मरीज़ों और उनके जानकारों से हिंसा और गुस्से का सामना करना पड़ता है।
आईएमए के राष्ट्रीय प्रेसीडेंट एंव एचसीएफआई के प्रेसीडेंट डॉ केके अग्रवाल एवं आईएमए के जनरल सेक्रेटरी डॉ आरएन टंडनने कहा कि हिंसा के ज़्यादातर मामलेंएमरजेंसी मामलों में होते हैं। सर्वे में शामिल 90 प्रतिशत डॉक्टरों ने कहा कि मरीज़ के रिश्तेदार अक्सर डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार, गाली—गलौच और मारपीटसर्जरी के बाद करते हैं।
सर्वे की कुछ अहम बातें—
- 83 प्रतिशतमामलों में डॉक्टर के तैय समय से देरी से आने पर मरीज़ गुस्सा हो जाते हैं।
- 30 प्रतिशतमरीज़ों के रिश्तेदार डॉक्टर के आने पर खड़े नहीं होते।
- 17 प्रतिशतलोगों का मानना है कि फ़ीस को बांटना अनैतिक है
डॉ अग्रवाल कहते हैं कि इसमें एक बड़ी समस्या डॉक्टरों द्वारा ऐसे मामलों में सूचना काफी कम दी जाती है। सर्वे में बिना नाम बताए तो सब अपनी बात रख देते हैंलेकिन सामान्य दिनों में या तो डर की वजह से या मरीज़ की देखभाल के मद्देनज़र इस बारे में जानकारी देने से कतराते हैं। उन्हीं मामलों में जानकारी दी जाती हैजब स्थिति हाथ से बाहर हो जाती है और डॉक्टर को लगता है कि उसकी या उसके परिवार की ज़िंदगी ख़तरे में है।
बढ़ते मामलों के मद्देनज़र आवश्यक हो जाता है कि सुरक्षा का इंतज़ाम किया जाए। ज़िम्मदारी और खुलापन बढ़ा कर ही हिंसा के मामलों को कम किया जा सकताहै।