जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली : सवाल यह नहीं उठता है कि नारायण दत्त तिवारी भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं, सवाल यह है कि भाजपा क्यों यह सब कर रही है. उम्र के जिस पड़ाव में आमतौर पर नेता राजनीति से संन्यास ले चुके होते हैं, यूपी और उत्तराखंड के पूर्व सीएम एन.डी. तिवारी नई पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं। जीवन के नौ दशक पूरे कर चुके तिवारी आज अपने बेटे के साथ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। दरअसल, एन.डी. अपने पुत्र रोहित को राजनीति में स्थापित करने को प्रयासरत हैं। यूपी में अखिलेश यादव ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दे रखा था, लेकिन एनडी जैसे अनुभवी राजनेता को पता है कि राजनीति की बुनियाद उस वक्त तक मजबूत नहीं होती, जब तक जनता के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित न हो जाया जाए।
इसलिए पहले उन्होंने बेटे को समाजवादी पार्टी से यूपी की किसी सीट से टिकट दिलाने की कोशिश की। जब उनकी यह कोशिश परवान नहीं चढ़ी तो उन्होंने उत्तराखंड में बीजेपी से टिकट दिलाने की कोशिश शुरू की। वह जिस सीट से टिकट दिलाना चाह रहे हैं, उस सीट पर अभी बीजेपी ने अपना उम्मीदवार घोषित भी नहीं किया है। इसी के मद्देनजर एन.डी. तिवारी के बीजेपी में जाने की चर्चा शुरू हुई। अगर ऐसा हो जाता है तब उत्तरखंड के जितने भी पूर्व सीएम हैं, वह सब के सब बीजेपी के पाले में खड़े दिखाई पड़ेंगे। देहरादून की चकराता, विकासनगर और धर्मपुर और नैनीताल की हल्द्वानी, भीमताल और रामनगर सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की गई है। कांग्रेस से आए 11 में से 9 को टिकट मिला है। दो के परिजनों को भी टिकट दी गई है।
तिवारी 3 बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 2007 में वह आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए थे। इसके अलावा उन्होंने 80 के दशक में योजना आयोग के उपाध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर जिम्मेदारी निभाई है। वह कांग्रेस के पुराने सिपाही और मौजूदा समय में सर्वाधिक राजनीतिक अनुभव वाले व्यक्तियों में से एक हैं।