नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात में कहा, मेरे प्यारे देशवासियों, आप सबको नमस्कार. 26 जनवरी हमारा गणतंत्र दिवस देश के कोने-कोने में उमंग और उत्साह के साथ हम सबने मनाया. मैं आशा करता हूं कि हर स्तर पर, हर वक़्त, जितना बल अधिकारों पर दिया जाता है, उतना ही बल कर्तव्यों पर भी दिया जाए. अधिकार और कर्तव्य की दो पटरी पर ही, भारत के लोकतंत्र की गाड़ी तेज़ गति से आगे बढ़ सकती है.
मोदी ने कहा, कल 30 जनवरी है, हमारे पूज्य बापू की पुण्य तिथि है. एक समाज के रूप में, एक देश के रूप में, 30 जनवरी, 11 बजे 2 मिनट का मौन धारण कर पुज्य बापू को श्रद्धांजलि दें. यह सहज स्वभाव बनना चाहिए. 2 मिनट क्यों न हो, लेकिन उसमें सामूहिकता भी, संकल्प भी और शहीदों के प्रति श्रद्धा भी अभिव्यक्त होती है. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर विभिन्न वीरता पुरस्कारों से, जो वीर-जवान सम्मानित हुए, उनको, उनके परिवारजनों को, मैं बधाई देता हूं.
मैं खास करके नौजवानों से आग्रह करना चाहता हूं. ओप सोशल मीडिया में बहुत एक्टिव हैं. आप एक काम कर सकते हैं. इसबार जिन-जिन वीरों को सम्मान मिला है आप नेट पर खोजिए, उनके संबंध में दो-दो अच्छे शब्द लिखिए और अपने मित्रों के सामने पहुंचाइये.
मोदी ने जम्मू-कश्मीर में हिमस्खलन में शहीद हुए सेना के जवानों को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दिया. मोदी ने कहा, सेना के जवान देश की रक्षा में डटे हुए हैं, वे हिमस्खलन के कारण वीरगति को प्राप्त हुए मैं इन सभी वीर जवानों को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं.
कई वर्षों से, मैं जहां गया, जिसे मिला, परीक्षा एक बहुत बड़ा परेशानी का कारण नज़र आया. परिवार परेशान, विद्यार्थी परेशान, शिक्षक परेशान, एक बड़ा विचित्र सा मनोवैज्ञानिक वातावरण हर घर में नज़र आता है. परीक्षा अपने-आप में एक ख़ुशी का अवसर होना चाहिए.
साल भर मेहनत की है, अब बताने का अवसर आया है, ऐसा उमंग-उत्साह का पर्व होना चाहिए. परीक्षा को ऐसे लीजिए, जैसे मानो त्योहार है. और जब त्योहार होता है तो हमारे भीतर जो सबसे बेस्ट होता है, वही बाहर निकल कर आता है. समाज की भी ताक़त की अनुभूति उत्सव के समय होती है. जो उत्तम से उत्तम है, वो प्रकट होता है.
मैं माता-पिता को ज़्यादा आग्रह से कहता हूँ कि आप इन तीन-चार महीने एक उत्सव का वातावरण बनाइए. पूरा परिवार एक टीम के रूप में इस उत्सव को सफल करने के लिए अपनी-अपनी भूमिका उत्साह से निभाए. देखिए, देखते ही देखते बदलाव आ जाएगा.
कन्याकुमारी से कश्मीर तक और कच्छ से कामरूप तक, अमरेली से अरुणाचल प्रदेश तक, ये तीन-चार महीने परीक्षा ही परीक्षायें होती हैं. हम सब का दायित्व है कि इन तीन-चार महीनों को अपने-अपने तरीक़े से, अपनी-अपनी परंपरा और परिवार के वातावरण को लेते हुए, उत्सव में परिवर्तित करें.
आपको ये पता होना चाहिए, मेमोरी को रिकॉल करने का जो पावर है, वो रिलैक्सेशन में सबसे ज़्यादा होता है. जब टेंशन होती है, तब आपका नॉलेज, आपका ज्ञान, आपकी जानकारी नीचे दब जाती हैं और आपका टेंशन उस पर सवार हो जाता है.
आप जो एक्ज़ाम देने जा रहे हैं, वो साल भर में आपने जो पढ़ाई की है, उसका एक्ज़ाम है. ये आपके जीवन की कसौटी नहीं है. आपने कैसा जीवन जिया, कैसा जीवन जी रहे हो, कैसा जीवन जीना चाहते हो, उसका एक्ज़ाम नहीं है.
हमारे सबके सामने हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी का बड़ा प्रेरक उदाहरण है. वे वायुसेना में भर्ती होने गए, फेल हो गए. मान लिजिए उस विफलता के कारण अगर वो मायूस हो जाते, जिंदगी से हार जाते, तो क्या भारत को इतन बड़ा वैज्ञानिक मिलता, इतने बड़े राष्ट्रपति मिलते, नहीं मिलते.
* ऋचा आनंद का सवाल – आज के दौर में शिक्षा के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती मैं देख पाती हूं, वो यह है कि शिक्षा आज परीक्षा केंद्र होकर रह गयी है. अंक सबसे ज्यादा महत्पूर्व हो गए हैं. इसकी वजह से प्रतिस्पर्द्धा तो बहुत बढ़ी ही है, साथ में विद्यार्थियों में तनाव भी बहुत बढ़ गया है. तो शिक्षा की इस वर्तमान दिशा और इसके भविष्य को लेकर आपके विचारों से अवगत होना चाहूंगी.
इसके जवाब में मोदी ने कहा, जीवन में आपको नॉलेज काम आने वाला है, स्किल काम आने वाली है, आत्मविश्वास काम आने वाला है, संकल्पशक्ति काम आने वाली है. आप में से कोई ऐसा नहीं होगा, जिसने अपने पारिवारिक डॉक्टर को कभी, वे कितने नंबर से पास हुए थे, पूछा होगा. किसी ने नहीं पूछा होगा. किसी वकील के पास जाते हैं, तो क्या उस वकील की अंक पत्र देखते हैं? आप उसके अनुभव को, उसके ज्ञान को, उसकी सफलता की यात्रा को देखते हैं.
‘प्रतिस्पर्द्धा’ एक बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक लड़ाई है. सचमुच में, जीवन को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्द्धा काम नहीं आती है. जीवन को आगे बढ़ाने के लिए अनुस्पर्द्धा काम आती है और जब मैं अनुस्पर्द्धा कहता हूँ, तो उसका मतलब है, स्वयं से स्पर्द्धा करना. आपने खेल जगत में देखा होगा. क्योंकि उसमें तुरंत समझ आता है, इसलिए मैं खेल जगत का उदहारण देता हूं. सचिन तेंदुलकर जी का ही उदाहरण ले लें. 20 साल लगातार अपने ही रिकॉर्ड तोड़ते जाना, खुद को ही हर बार पराजित करना और आगे बढ़ना बड़ी अदभुत जीवन यात्रा है उनकी, क्योंकि उन्होंने प्रतिस्पर्द्धा से ज्यादा अनुस्पर्द्धा का रास्ता अपनाया.
गौरतलब हो कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने नियमित रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के प्रसारण के लिए चुनाव आयोग से अनुमति मांगी थी, जिसे कुछ शर्तों के साथ आयोग ने अपनी हरी झंडी दे दी. चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि मन की बात में वोटरों को प्रभावित करने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए.