जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कई मुस्लिम बहुल देशों पर सख्ती दिखाई है, लेकिन सख्ती बरते जाने वाले देशों में पाकिस्तान का नाम नहीं है.
आख़िर इसकी वजह क्या है? पाकिस्तान पर इतनी मेहरबानी क्यों? शायद इसलिए क्योंकि नए अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने शुरू में ही अपनी थाली बहुत भर ली है.
ट्रंप खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन, अल क़ायदा और खुद अपनी ही ख़ुफिया एजेंसी सीआईए के साथ दो-दो हाथ करने में लगे हैं.
फ़िलहाल पाकिस्तान उनकी प्राथमिकता में नहीं दिखता.
ट्रंप ने अब तक पाकिस्तान के साथ रिश्ते से संबंधित कोई स्पष्ट नीति नहीं बताई है.
अक्सर सरकारी अधिकारी, राजनयिक विश्लेषक और आम नागरिक का ध्यान इसी पर केंद्रित है कि वह पहले की तरह कभी ‘कैरेट और कभी स्टिक’ में से किसका इस्तेमाल ज़्यादा करेंगे.
या कहीं ऐसा तो नहीं कि वो पाकिस्तान के संदर्भ में कोई बिल्कुल ही नई नीति अपनाएंगे.
पाकिस्तान पर कोई स्पष्ट नीति नहीं होने की वजह से ही राष्ट्रपति ट्रंप को ख़तरनाक माना जा रहा है.
ऐसे में अटकलें ही लगाई जा सकती हैं.
पहला: किसी बड़े चरमपंथी हमले के बाद जिसके तार कथित तौर पर पाकिस्तान से जुड़ते हों तो राष्ट्रपति ट्रंप क्या करेंगे?
दूसरा: अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी फौजियों पर हक्कानी नेटवर्क की ओर से कोई बड़ा हमला होता है, तो ट्रंप की क्या प्रतिक्रिया होगी?
तीसरा: पड़ोसी देश भारत पर कोई बड़ा हमला होता है, तो अमरीकी राष्ट्रपति क्या करेंगे?
अफ़ग़ानिस्तान की सीमा तक तो पाकिस्तान ने कहना शुरू कर दिया है कि अफ़ग़ान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क वापस अपने देश जा चुके हैं.
कोई इस रुख़ को स्वीकार करता है या नहीं वो बात अलग है, लेकिन पाकिस्तानी अधिकारी दुनिया को यह बताने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.
जहां तक बात भारत की है तो सोमवार की रात अचानक जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद की नज़रबंदी का फैसला शायद अमरीकी सत्ता में आए बदलाव के संदर्भ में देखा जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र ने जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध तो नौ साल पहले लगाया था और हाफिज सईद और उनके संगठन तो पाकिस्तान सरकार की ‘वॉच-लिस्ट’ में पहले से थे तो अचानक क्या हुआ कि उन्हें नज़रबंद कर दिया गया है?
ज़ाहिर है पाकिस्तान सरकार तो इससे इनकार करेगी, लेकिन अगर ऐसा है तो उसे इस संगठन के ख़िलाफ़ ताज़ा सबूत सार्वजनिक करने होंगे.
इस सबमें पाकिस्तान क्या चाहता है?
राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने अपने पहले संबोधन में दुनिया से इस्लामी चरमपंथ की समाप्ति की बात की तो पाकिस्तान ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि चरमपंथ को किसी एक धर्म के साथ जोड़ना सही नहीं है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नफीस ज़करिया ने पिछले हफ्ते पत्रकारों से बात करते हुए इस संबंध में अमरीका की मदद करने की पेशकश की थी.
पाकिस्तान से पूर्ण समर्थन की वक़ालत करते हुए ज़करिया ने कहा था, “हम नए (अमरीकी) प्रशासन के साथ मिलकर काम करने की उम्मीद कर रहे हैं, हमारा अमरीका के साथ एक लंबा रिश्ता रहा है. हमारे बीच मंत्री स्तर पर एक व्यापक वार्ता जिसे सामरिक संवाद कहते हैं, होती रही है, इसकी एक बैठक पिछले साल हुई और 2013 से लगातार मुलाकातें हो रही हैं.”
एक पाकिस्तानी विश्लेषक के मुताबिक “पुरानी फिल्म अब नहीं चलेगी.”
पिछली अमरीकी सरकार ज़ुबानी दावे करती थी पर नए राष्ट्रपति को इससे आगे बढ़कर अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ठोस कार्रवाई करनी होगी.