अमलेंदु भूषण खां
नई दिल्ली । पंजाब में अब से 24 घंटे बाद यानि शनिवार को सभी उम्मीदवारों का भाग्य मतदान पेटियों में बंद हो जाएगा. लेकिन इस चुनाव में कई दिलचस्प नजारे देखने को मिल रहे हैं. जलालाबाद सीट से पंजाब के मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल का मुकाबला तीन सांसदों से है.
“चार फ़रवरी को जिस दिन पंजाब में मतदान होगा, उसे आज़ादी दिवस के तौर पर मानाया जाएगा. 4 फ़रवरी को अगले पाँच साल तक सरकारी छुट्टी होगी और पंजाब के लोगों को अकाली दल और कांग्रेस से छुटकारा मिलेगा.”
पंजाब के जलालाबाद में अपनी चुनावी रैलियों में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भगवंत मान लोगों को यही सपना दिखा रहे हैं.
जलालाबाद सीट से मुकाबला दो मौजूदा सांसदों और एक उपमुख्यमंत्री के बीच है. सुखबीर जलालाबाद के पुराने खिलाड़ी. पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के सामने आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान हैं. दूसरी ओर कांग्रेस ने युवा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते और सांसद रवनीत सिंह बिट्टू हैं. सुखबीर 2009 के उपचुनाव में जलालाबाद सीट जीतने के बाद से ही वहाँ से विधायक हैं तो बाकी दोनों के लिए मैदान नया है.
जलालाबाद से सुखबीर बादल वर्तमान विधायक हैं. भगवंत मान और रवनीत बिट्टू उन्हें चुनौती दे रहे हैं. दोनों के मैदान में होने की वजह से अकाली दल के खिलाफ़ वाला वोट बंट सकता है. इसके अलावा अकाली दल के स्थानीय सांसद रहे शेर सिंह घुबाया ने भी अकाली दल का साथ छोड़ दिया है और कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं.
जहाँ कांग्रेस के युवा नेता रवनीत सिंह दावा कर रहे हैं कि मुकाबला ‘मुनाफ़ा कमाने वाले बिज़नेस परिवार’ और ‘पंजाब के लिए कुर्बानी देने वाले बेअंत सिंह के पोते के बीच है’.
वहीं रवनीत पर चुटकी लेते हुए सुखबीर पत्रकारों से कहते हैं- “रवनीत तो इलाक़े में नया है, प्रचार के दौरान यहाँ की गलियाँ ढूँढनी पड़े तो मैं उन्हें घुमा सकता हूँ.”
इस बीच रैलियों में भगवंत मान अकाली दल और कांग्रेस को निशाने पर लेते रहे हैं.
“ये दोनों पार्टियाँ अंदर ही अंदर मिली हुई हैं.”मैंने अमरिंदर सिंह को जलालाबाद से लड़ने के लिए चुनौती दी थी. लेकिन वो ‘भतीजे सुखबीर’ के खिलाफ़ नहीं लड़ेगें.” , भगवंत मान अपने अंदाज़ में कहते हैं.
सुखबीर बादल की बात करें तो वरिष्ठ पत्रकार जगतार सिंह कहते हैं, “पंजाब में 2007 के चुनाव में अकाली दल को मिली जीत से उनका कद ऊँचा हुआ. 2012 में अकाली दल को दोबारा मिली जीत ने उन्हें एक तरह से पार्टी सुप्रीमो बना दिया.
“उन्होंने अपने इलाके में विकास भी कराया. लेकिन बहुत से इलाक़े अब भी वंचित हैं. सत्ता-विरोधी लहर का नुकसान उन्हें झेलना पड़ सकता है. मुकाबला तगड़ा है. ”
वहीं लुधियाना से मौजूदा सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के नाम की घोषणा पंजाब चुनाव से महज़ 15-17 दिन पहले हुई और प्रचार के लिए उनके पास सीमित मौका रहा है. साथ ही वे इलाक़े में नए हैं.बेअंत सिंह के वारिस हैं रवनीत. हालांकि 2014 के लोक सभा चुनाव में भी लुधियाना सीट उनके लिए नई थी पर वे वहाँ से जीते थे.
इससे ठीक उलट आम आदमी पार्टी ने पिछले साल नवंबर में ही अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी थी कि पंजाब में उनकी पार्टी का लोकप्रिय चेहरा भगवंत मान सुखबीर बादल को चुनौती देगा.
90 के दशक में उनका टीवी पर एक मशहूर कॉमेडी किरदार था जुगनू जिसके डायलॉग अब भी मशहूर हैं. मसलन कोर्ट में वो कहते हैं- मैं जो भी कहूँगा सच कहूँगा. झूठ बोलने के लिए दस हज़ार रुपए वकील को जो दिए हैं.
पेशे से कॉमिडियन और गायक रहे भगवंत मान ने 2014 के लोक सभा चुनाव में संगरूर से ससंद का चुनाव जीत कर सबको हैरत में डाल दिया था.
इस बीच वो कई विवादों में भी घिरे. कभी संसद में शराब पीकर आने का आरोप तो कभी संसद की सुरक्षा को ख़तरे में डालने का.
पंजाब की राजनीति पर नज़र रखने वाले जगतार सिंह कहते हैं, “तीनों उम्मीदवारों की अपनी यूएसपी और है अपनी कमज़ोरियाँ. सुखबीर ऐसी पार्टी से हैं जो भारत की सबसे पुरानी पार्टियों में से हैं. अकाली दल का अपना वफ़ादार वोटर बेस है.”
“कांग्रेस से लोगों का एतिहासिक जुड़ाव है तो सत्ता में रहने के कारण लोग उसकी नाकामियाँ भी गिनाते हैं. वहीं आम आदमी पार्टी के भगवंत मान के पास अनुभव की कमी है पर नई पार्टी होने की वजह से कोई हिस्टॉरिकल बैगेज नहीं है यानी अतीत का बोझ नहीं है. ”
पंजाब में त्रिकोणीय मुकाबला है और कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए एक-एक सीट कीमती रहेगी. हालांकि सीट हारने की सूरत में भगवंत मान और रविंदर बिट्टू के पास सांसद बने रहने का फ़ायदा रहेगा.
प्यार से उनके पिता और मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सुखबीर को काका जी बुलाते हैं..
अपनी सीट और पंजाब चुनाव जीतकर सुखबीर के पास दुलारे ‘ काका जी’ की छवि से आगे बढ़कर ये साबित करने का मौका रहेगा कि अब असली बॉस वही हैं.