जनजीवन ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में चुनावी गहमागहमी के बीच समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहु अपर्णा यादव आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के स्वर में स्वर मिलाया है. जातिगत आरक्षण समाप्त करने को लेकर अपर्णा ने बयान दे दिया था. अपर्णा के आरक्षण विरोधी बयान पर विवाद इस कदर बढ़ गया है कि भाजपा ने इसके विरोध में मोर्चा ही खोल दिया है. समाजवादी पार्टी की ओर से अपर्णा यादव को लखनऊ कैंट से चुनाव लड़ाने की तैयारी की जा चुकी है.
केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने अपर्णा के बयान देने के बाद मुलायम सिंह यादव और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जवाब मांगा है. उनके आरक्षण विरोधी बयान के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर आरक्षणी जिन्न निकलकर बाहर आ गया है.
एक न्यूज वेबसाइट को दिये साक्षात्कार में अपर्णा यादव ने स्वयं को जातिगत आरक्षण का विरोधी बताया था. साक्षात्कार को सामने आने के बाद भाजपा के नेताओं ने इसे हाथोंहाथ लपक लिया और आनन-फानन में मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जवाब तक मांग लिया गया. उत्तर प्रदेश में राजनीति के दिग्गजों का कहना है कि सपा ने भाजपा को बैठे-बिठाये मुद्दा दे दिया है.
मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 41 फीसदी अन्य पिछड़ी जाति के मतदाता हैं. वहीं, 21 फीसदी आबादी दलितों की है. देखा जाये, तो उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों को 49.5 फीसदी आरक्षण मिलता है. इसके अलावा, मतदाताओं के लिहाज से देखें, तो अन्य पिछड़ा वर्ग में यादव मतदाताओं की संख्या करीब आठ फीसदी के आसपास है. वहीं, अन्य पिछड़ा वर्ग में ही लोध जाति की आबादी सात फीसदी, मौर्य, शाक्य व कुशवाहा समाज की संख्या 14 फीसदी और कुर्मी मतदाताओं की आबादी तीन से चार फीसदी के करीब है. बताया यह भी जाता है कि यादव जाति के लोगों को छोड़कर बाकी जातियों पर भाजपा की अच्छी पकड़ है.
यादवों को छोड़कर अन्य पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक का बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में है. यही वजह है कि भाजपा इस मुद्दे को हवादेने में जुटी है. वहीं, अपर्णा इस मामले में अपनी सफाई देकर विवाद को ठंडा करने की कोशिश में जुट गयी हैं.