जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने स्टेंट को दवाओं की तर्ज पर मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाकर इसकी कीमत में काफी कम कर दी है। मंगलवार को राष्ट्रीय औषधि मूल्य नियंत्रण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने स्टेंट की अधिकतम कीमतें तय कर दी हैं। अब 129404 रुपये में बिक रहा स्टेंट लोगों को महज 29600 रुपये में मिलेगा।
केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्री अनंत कुमार ने मंगलवार को एक प्रेस कांफ्रेस में स्टेंट के दामों में कमी की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दो तरह के स्टेंट बाजार में बिक रहे हैं। एक ड्रग इल्युटिंग स्टेंट है जिसकी कीमत 129404 रुपये तक है। लेकिन मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने के बाद लोगों को यह अधिकतम 29600 में मिलेगा। 90 फीसदी मरीजों को यही स्टेंट लगाया जाता है। जबकि दूसरा स्टेंट बेरे मैटल स्टेंट है जिसकी बाजार में कीमत 45095 रुपये है। लेकिन इसकी अधिकतम कीमत 7260 रुपये तय कर दी गई है।
एनपीपीए के अनुसार बढ़ी हुई कीमतें तत्काल प्रभाव से लागू हो गई हैं। कंपनियों को अस्पतालों, मेडिकल स्टोरों में उपलब्ध अपने स्टेंट को वापस लेना होगा या संशोधित दरों पर बेचना होगा। स्टेंट को नियंत्रित मूल्य से ज्यादा में बेचने की शिकायत मिलती है तो एनपीपीए कार्रवाई करेगा। कंपनियों से ज्यादा वसूली गई राशि 15 फीसदी ब्याज के साथ वसूल की जा सकती है।
एनपीपीए ने स्टेंट के निर्माण की लागत का अध्ययन करने के बाद ये कीमतें तय की हैं। इस दौरान पाया गया कि स्टेंट बनाने वाली कंपनियां चार सौ फीसद तक मुनाफा कमा रही हैं। एनपीपीए ने लागत का आकलन किया और पाया कि ड्रग इल्युटिंग स्टेंट की कुल लागत 16918 रुपये है। जबकि बेरे मैटल स्टेंट की लागत 5450 रुपये आ रही है। सरकार ने कहा कि जो कीमतें तय की गई हैं, उसमें कंपनियों का पर्याप्त मुनाफा भी रखा गया है। इस मूल्य के अलावा ग्राहकों को सिर्फ वैट चुकाना होगा।
कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार के इस फैसले से शल्य क्रिया कराने जा रहे दिल के मरीज को औसतन 80-90 हजार रुपये का फायदा होगा। दूसरे, एक साल में सभी मरीजों का कुल फायदा 4450 करोड़ का होगा।
कोरोनरी स्टेंट सर्जरी तीन सौ फीसदी बढ़ी-केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में स्टेंट डालकर कोरोनरी आट्ररीज के इलाज के मामलों में तकरीबन तीन सौ फीसदी का इजाफा हुआ है। कोरोनरी आट्ररीज में स्टेंट डालकर उसे फुलाया जाता है ताकि रक्त का प्रवाह में रुकावट नहीं आए। ड्रग इल्युटिंग स्टेंट में दवा भी लगी होती है। नेशनल इंटरवेंशनल काउंसिल (एनआईसी) हैदराबाद द्वारा इसके आंकड़े रखे जाते हैं। जिसके अनुसार 2010 में 117420 आपरेशन किए गए जो 2015 में बढ़कर 353346 तक पहुंच गए। इनमें कुल 4.73 लाख स्टेंट लगाए गए। 2016 में यह आंकड़ा पांच लाख से भी ऊपर पहुंचने का अनुमान है। जबकि इसी बीमारी का बाईपास सर्जरी के जरिये भी इलाज होता है लेकिन देश में सालाना बाईपास सर्जरी की संख्या अभी भी 70-80 हजार सालाना ही होती हैं।
देश में दिल के एक हजार मरीजों में से तीन का ही स्टेंट डालकर उपचार होता है। जबकि अमेरिका में 32 मरीजों को स्टेंट लगता है। इसलिए आने वाले समय में इसमें और बढ़ोत्तरी होगी।
एनआईसी की रिपोर्ट के अनुसार देश में 41 फीसदी लोग अपने खर्च पर स्टेंट लगवाते हैं जबकि 43 फीसदी मामलों में सरकारी मदद मिलती है। सिर्फ 17 फीसदी मामलों में बीमा लाभ मिल रहा है। लेकिन बीमा में भी पूरी राशि का क्लेम नहीं मिलता है। लेकिन अब दाम कम होने यह समस्या भी दूर होगी।
मौजूदा समय में देश में दिल के मरीजों की संख्या करीब 3 करोड़ होने का अनुमान है। अमेरिकी व्यक्ति की तुलना में भारतीय को कोरोनरी हार्ट डिजीज का खतरा चार गुना, जापानी की तुलना में बीस गुना तथा चीनी की तुलना में छह गुना ज्यादा खतरा है।
दो करोड़ मरीज 40 साल से कम उम्र के होने की आशंका है। दिल की बीमारी से भारत में जो मरीज मरते हैं उनमें से 50 फीसदी की आयु 70 साल से कम होती है। जबकि पश्चिमी देशों में सिर्फ 22 फीसदी मरीज 70 साल से कम उम्र में मरते हैं।
मूल्य नियंत्रण के दायरे में अभी 1415 दवाएं हैं। अब सरकार ने मेडिकल उपकरणों को भी दायरे में लाने की पहल शुरू कर दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय तय करता है कि किस दवा या उपकरण को दायरे में लाया जाएगा। उसे आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) में शामिल किया जाता है। रसायन मंत्रालय क्रियान्वयन करता है।