अमलेंदु भूषण खां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में उनकी साख दांव पर लगी हुई है. यहीं कारण है कि केंद्र सरकार के दो दर्जन से ज्यादा मंत्री वाराणसी में डेरा डाले हुए हैं. स्वयं मोदी तीन दिनों से वाराणसी में गुजार रहे हैं. शनिवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती भी अपनी रैली कर एक दूसरे पर हमला करेंगे.
माना जा रहा है कि वाराणसी की कम से कम पांचों सीटों पर बीजेपी की जीत होने पर ही मोदी की साख बच पाएगी. 8 मार्च को वोट डाले जाएंगे. पिछली बार यहां की आठ सीटों में से तीन बीजेपी के पास थी. वाराणसी शहर की आबोहवा यही संकेत दे रही है कि लोग मोदी के विकास के दावों पर भरोसा नहीं जता पा रहे हैं.
बनारस में गंगा किनारे अस्सी घाट पर सुबह ए बनारस की छटा निराली होती है. किसी शास्त्रीय गायक की मधुर आवाज या फिर कानों में रस घोलने वाला वीणा वादन. आप उस संगीत में खोने ही लगते हैं कि आपकी नजरें सुबह-ए-बनारस के पीछे की तरफ सौ मीटर दूर गंगा किनारे की तरफ जाती है. वहां लोग खुले में शौच करते और गंगा में कपड़े धोते नजर आ जाते हैं. आप वहां से नजरें हटाते हैं और घाट की सीढ़ीयां उतर गंगा किनारे चले जाते हैं. वहां लोग स्नान कर रहे हैं, पिंडदान करवा रहे हैं, हवन में लीन हैं. बची हुई पूजा सामग्री, फूल मालाएं, पॉलीथीन की थैलियां वहीं छोड़ लोग हर हर गंगे का नारा लगा गरम चाय पीने लगते हैं. जगह-जगह कचरा दिखता है. कुत्ते उस कचरे के ढेर में भोजन तलाशते दिख जाते हैं.
हालांकि अस्सी घाट से राजेन्द्र घाट तक तो सफाई दिखती है. लोग इसके लिए मोदी का शुक्रिया अदा करते हैं लेकिन साथ ही कहते हैं कि मोदी ने जो वादे किए थे उसका बीस फीसद काम ही पूरा हुआ है बाकी अस्सी फीसद बकाया है. काशी हिन्दू विश्वविद्दालय से रिटायर हुए पंडित अनंत कुमार गौड़ रोज सुबह आधा घंटा गंगा किनारे सफाई करते हैं और यह सिलसिला पिछले 48 सालों से चला आ रहा है. एक बार एक महिला को फूल मालाएं गंगा में डालने से रोका तो कहने लगी कि तुम क्या यहां के ठेकेदार हो, एक अकेली औरत को अकेला देख कर डराते हो, शर्म नहीं आती. ऐसे में गंगा को साफ करने की नमामि गंगे योजना का क्या होगा…इस पर वह मुस्करा कर रह जाते हैं.
अस्सी के नाले से रोज करोड़ों लीटर गंदा पानी सीधे गंगा में समा रहा है. शहर से तीस करोड़ लीटर गंदा पानी हर रोज निकलता है. लेकिन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ( एसटीपी ) सिर्फ दस करोड़ बीस लाख लीटर गंदे पानी को ही साफ कर पाता है. बाकी का बीस करोड लीटर गंदा पानी शहर के अस्सी नाले जैसे छोटे बड़े 37 नालों के जरिए गंगा में सीधे मिल जाता है. पिछले ढाई साल में नया एसटीपी लगाने का काम आगे नहीं बढ़ा है. कुछ जगह जरुर पम्पिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं जो नालों के गंदे पानी को पुराने एसटीपी तक पहुंचाने का काम करेंगे.
भले ही दूर दूर से लोग गंगा में डूबकी लगाकर बाबा विश्वनाथ की पूजा करने के लिए जाते हैं लेकिन वाराणसी के कई लोग ऐसे हैं जो दो दशक पहले गंगा में डूबकी लगाए थे. उसके बाद उनकी हिम्मत नहीं हुई. राजेन्द्र घाट से आगे गंदगी इस कदर है कि वहां जाना दूभर है. अस्सी घाट को शोरुम की तरह सबको दिखाया जा रहा है क्योंकि यही तक सीधे गाड़ी आती है. बाकी घाटों का हला बुरा है और किसी का भी उस तरफ ध्यान नहीं है. वैसे मोदी के आने के बाद गंगा में नावें जरुर घूमने लगी हैं जो नदी में बहाए शवों को निकाल कर मर्णिकर्णिका के घाट पर ले जाती हैं. जानवरों की लाशें भी गंगा से हटाई जा रही हैं. लोग गंगा किनारे के सभी शवदाह गृह बंद कर दिए जाने की वकालत कर रहे हैं.
वाराणसी का नाम दो नदियों पर पड़ा है. अस्सी और वरुणा. मोदी ने अगर अस्सी घाट को सजाया है तो वरुणा घाट पर रिवर फ्रंट बनवा रहे हैं अखिलेश यादव. 219 करोड़ की परियोजना है. वरुणा नदी में गिरने वाले नालों का गंदा पानी फिल्टर भूमिगत पाइपों से एसटीपी तक पहुंचाया जा रहा है ताकि वरुणा को साफ किया जा सके. दोनों तरफ सीढ़ियां भी बनाई जा रही हैं.
लोगों का कहना है कि मोदी के गंगा को साफ करने के अभियान के बाद ही वरुणा की याद अखिलेश को आई. रोजगार को लेकर लोग एक स्वर में मोदी और अखिलेश को कोसते हैं. सबका विकास के सुनहरे सपने दिखा कर चुनाव जीतना चाहते हैं लेकिन दोनों में से किसी के पास बेरोजगारों के लिए कोई योजना नहीं है.
शहर की बीस लाख की आबादी है. रोज 600 मीट्रिक टन कचरा निकलता है. सफाईकर्मियों की संख्या 2700 है और लगभग इतनों की कमी भी बताई जाती है. वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री मोदी ने सांसद कार्यालय भी खोल रखा है. इसे मिनी पीएमओ भी कहा जाता है. यहां रोज औसतन सौ से ज्यादा शिकायतें आती हैं. इन दिनों तो चुनाव के कारण बंद पड़ा है कार्यालय और चुनावी गतिविधियों के लिए ज्यादा काम आ रहा है.
जब सब कुछ इतना खुशनुमा है तो यहां की आठों सीटों को लेकर बीजेपी को आश्वस्त हो जाना चाहिए. मोदीजी को प्रतीक के रुप में सिर्फ एक ही रैली करनी चाहिए लेकिन यह क्या. बनारस में अमित शाह डेरा डाले हुए हैं, मोदी सरकार के दो दर्जन से ज्यादा मंत्री रोज शहर में कहीं पत्रकारों से रुबरु हो रहे हैं तो कहीं जनता से. खुद मोदी तीन दिन के बनारस दौरे पर हैं. मोदी के संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की पांच सीटें आती हैं.
कहा जा रहा है कि इसमें से एक को छोड़ कर बाकी में कांटे की टक्कर है. पिछली बार बीजेपी ने तीन सीटें जीती थी और इस बार इरादा सभी सीटों पर कमल खिलाने का है. इसे पूरा करने के लिए संघ ने भी पूरा जोर लगा दिया है. साफ है कि चूंकि यूपी में बीजेपी मोदी के चेहरे और जादू के भरोसे हैं लिहाजा यहां की पांच सीटे पूरे यूपी की 403 सीटों पर भारी पड़ रही हैं.