जनजीवन ब्यूरो/
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप के दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखी है। जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने फैसला सुनाया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषियों को फांसी की सजा सुना चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च को सुनवाई पूरी कर लिया था और फैसला सुरक्षित कर लिया था।
गैंगरेप के चार दोषियों मुकेश, अक्षय, पवन और विनय को साकेत की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिस पर 14 मार्च 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी। इसके बाद तीन जजों की बेंच को मामले को भेजा गया और कोर्ट ने केस में मदद के लिए दो एमिक्स क्यूरी नियुक्त किए गए।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई प्रत्येक सोमवार, शुक्रवार और शनिवार को होती रही । देशभर को दहला देने वाली इस वारदात के बाद मुख्य आरोपी ड्राइवर राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित खुदकुशी कर ली थी, जबकि नाबालिग अपनी तीन साल की सुधारगृह की सजा पूरी कर चुका है।
जानें कब-क्या हुआ
16 दिसंबर, 2012: दिल्ली के वसंत विहार इलाके में चलती बस में छह लोगों ने पैरामेडिकल छात्रा से गैंगरेप किया। घटना के बाद युवती और उसके दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया गया।
18 दिसंबर, 2012: राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को इस मामले में अरेस्ट किया गया। 21 दिसंबर को मामले में एक नाबालिग को दिल्ली से और छठे अभियुक्त अक्षय ठाकुर को बिहार से पकड़ा गया।
29 दिसंबर, 2012: 13 दिन संघर्ष करने के बाद पीड़िता ने सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया।
जनवरी, 2013: पुलिस ने पांच बालिग अभियुक्तों के खिलाफ हत्या, गैंगरेप, हत्या की कोशिश, अपहरण, डकैती आदि आरोपों के तहत चार्जशीट दाखिल की। फ़ास्ट ट्रैक अदालत ने पांचों अभियुक्तों पर आरोप तय किए।
11 मार्च 2013: राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या की। कहा गया कि आत्मग्लानि के चलते उसने ऐसा कदम उठाया।
31 अक्टूबर, 2013: जुवेनाइल बोर्ड ने नाबालिग को गैंगरेप और हत्या का दोषी माना और उसे बाल सुधार गृह में तीन साल गुजारने का फैसला सुनाया।
सितंबर, 2013: फ़ास्ट ट्रैक अदालत ने चार आरोपियों को 13 अपराधों के लिए दोषी ठहराया। सितंबर को मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को फांसी की सजा सुनाई गई।
13 मार्च, 2014: दिल्ली हाई कोर्ट ने चारों दोषियों की मौत की सजा को बरकरार रखा।
2014-2016: दोषियों ने फांसी की सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और शीर्ष अदालत फिलहाल इस पर सुनवाई कर रही है।
27 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर फैसला सुरक्षित रखा।