अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जेनेरिक दवाओं को अनिवार्य करने की घोषणा के बाद केंद्र सरकार अब अपने सभी अस्पतालों और जिकित्सा केंद्रों में जेनेरिक दवा की ही आपूर्ति करेगी. केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री अनन्त कुमार ने खास बातचीत में बताया कि जल्द ही सभी राज्य सरकारों को इस बबात पत्र लिखा जाएगा.
अनन्त कुमार ने बताया कि जो युवा या सहकारी समिति जेनेरिक दवा का स्टोर जिला अस्पतालों में खोलेंगे उन्हें केंद्र सरकार ढाई लाख रुपए तक की सहयोग राशि देगी. इतना ही नहीं रेल मंत्रालय से बातचीत कर सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र भी खोलने जाएंगे.
उन्होंने बताया कि सभी ब्रांडेड दवाओं के नाम के ऊपर उसका जेनेरिक नाम लिखने की अनिवार्यता भी केंद्र सरकार करने जा रही है. जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता के सवाल पर उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकता पर खड़ी उतरने वाली 1400 दवा कंपनिया जेनेरिक दवाओं का उत्पादन कर रही हैं इसलिए गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता.
केंद्र सरकार अब दवाओं के ब्रांडेड कंपनियों के बजाय जेनेरिक दवाओं को महत्व दिया जाएगा. इसके लिए इस साल के अंत तक प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र 3000 खोले जाएंगे. अभी एक लाख करोड़ का दवा व्यापार होता है जिसमें लगभग 75 हजार करोड़ का हिस्सा ब्रांडेड कंपनियों के उन दवाओं का है जिसके कम कीमत वाले जेनेरिक दवा मौजूद हैं.
जन औषधि केंद्र के द्वारा जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. देश में अभी जेनेरिक दवाओं का व्यापार महज तीन करोड़ रुपये का है जिसे इस साल 60 करोड़ तक पहुंचाने की योजना केंद्र सरकार की है. जेनेरिक दवाओं की कीमत अमूमन ब्रांडेड दवाओं की तुलना में एक तिहाई होती हैं.
केंद्र सरकार ये आग्रह करने जा रही है कि सभी डॉक्टर अपने प्रिसक्रिप्शन में सिर्फ जेनेरिक दवाओं को ही लिखे. अभी एमसीआई और आईएमए इस संबंध में सरकार के कहने पर सर्कुलर जारी कर चुका है लेकिन उसमें कहा गया था कि ‘जहां तक संभव हो’. अब इसको ‘अनिवार्य’ करने के लिए सरकार से कहा जाएगा.
केमिस्ट को ये अधिकार दिया जाएगा कि अगर कोई ब्रांडेड दवा वाले प्रिसक्रिप्शन लेकर आए तब भी वह उसके जगह पर जेनेरिक दवा को दे सकेगा. एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार किया जा रहा जिसमें ब्रांडेड कंपनी की दवा का नाम लिखते ही उसके जेनेरिक विकल्प का नाम और कीमत आ जाए. प्राइवेट नर्सिंग होम के लाइसेंस को जेनेरिक दवा केंद्र की अनिवार्य शर्त से जोड़ा जाएगा.
जेनेरिक दवाएं और भ्रम-
जेनेरिक दवाएं बिना किसी पेटेंट के बनाई और सरकुलेट की जाती हैं. हां, जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है लेकिन उसके मैटिरियल पर पेटेंट नहीं किया जा सकता. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से बनी जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती. ना ही इनका असर कुछ कम होता है. जेनेरिक दवाओं की डोज, उनके साइड-इफेक्ट्स सभी कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसे ही होते हैं. जैसे इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए वियाग्रा बहुत पॉपुलर है लेकिन इसकी जेनेरिक दवा सिल्डेन्फिल नाम से मौजूद है. लेकिन लोग वियाग्रा लेना ही पसंद करते हैं क्योंकि ये बहुत पॉपुलर ब्रांड हो चुका है. इसकी खूब पब्लिसिटी इंटरनेशनल लेवल पर की गई है. वहीं जेनेरिक दवाइयों के प्रचार के लिए कंपनियां पब्लिसिटी नहीं करती. जेनेरिक दवाएं बाजार में आने से पहले हर तरह के डिफिकल्ट क्वालिटी स्टैं र्ड से गुजरती हैं.
क्या होती है जेनेरिक दवा-
किसी एक बीमारी के इलाज के लिए तमाम तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार किया जाता है जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दवा की शक्ल दे दी जाती है. इस साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है. कोई इसे महंगे दामों में बेचती है तो कोई सस्ते. पर साल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक सामान रहता है, जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है लेकिन उसके मैटिरियल पर पेटेंट नहीं किया जा सकता. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से बनी जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती. ना ही इनका असर कुछ कम होता है. जेनेरिक दवाओं की डोज, उनके साइड-इफेक्ट्स सभी कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसे ही होते हैं.