जनजीवन ब्यूरो / सहारनपुर । उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में राजपूतों और दलितों के बीच हाल में हुई हिंसक झड़पों के बाद चर्चा में आई भीम आर्मी के सदस्यों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करके अपनी ताकत का अहसास राज्य व केंद्र सरकार को कराई. आर्मी के संस्थापक और पेशे से वकील चंद्रशेखर आज़ाद का आरोप है कि पुलिस उन्हें फंसाने की कोशिश कर रही है.
गिरफ़्तारी से बचने के लिए भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने हुलिया बदल लिया है, उनका आरोप है कि उत्तर प्रदेश पुलिस सहारनपुर के जातीय संघर्ष को संभालने के बदले बिगाड़ रही है.
पांच मई को शब्बीरपुर गांव में दलितों के घर जलाए जाने के चार दिन बाद सहारनपुर में दलितों के प्रदर्शन हुए थे. इसके बाद चंद्रशेखर पर कथित रूप से हिंसा भड़काने को लेकर पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की है.
हिंसक झड़प के दौरान एक राजपूत युवक की मौत हो गई थी, हालाँकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसकी मौत की वजह ‘दम घुटना’ बताया गया था.
वहीं सहारनपुर के डीएम एनपी सिंह ने मीडिया से बताया कि चंद्रशेखर गांधी पार्क में नौ मई को दलितों के महापंचायत का आयोजन करना चाहते थे, जिसकी अनुमति प्रशासन ने नहीं दी और इसके बाद दलित सड़कों पर प्रदर्शन करने उतर गए. जिस पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा था.
चंद्रशेखर कहते हैं, “यूपी पुलिस जितनी मुस्तैदी के साथ भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई कर रही है, अगर उसने पांच मई को शब्बीरपुर में हिंसा फैलाने वालों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की होती तो आज स्थिति इतनी विस्फ़ोटक नहीं होती”.
उनका कहना है कि “शब्बीरपुर में दलितों के 25 घर और दर्जनों दुकानें जला दी गईं, लेकिन जब इसके विरोध में प्रदर्शन हुआ तो 37 लोगों को जेल में डाल दिया गया और क़रीब 300 लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया.”
हिंसक प्रदर्शन के बाद पुलिस ने भीम आर्मी और नक्सलियों के बीच संबंधों की जांच कराए जाने की बात कही थी. राजपूत समुदाय की ओर से चंद्रशेखर के नक्सलियों से कथित संबंधों को लेकर ज़िला प्रशासन के पास शिकायत भी की गई है.
लेकिन चंद्रशेखर का दावा है- “हम अपने समुदाय के लिए संघर्ष कर रहे हैं. संविधान के दायरे में रहकर हक़ की आवाज़ उठाने पर प्रशासन मुझे नक्सली कहता है, तो मुझे इससे कोई गुरेज़ नहीं.”
चंद्रशेखर भीम आर्मी को गैर-राजनीतिक और सामाजिक संगठन बताते हुए कहते हैं कि उनका अहिंसा में भरोसा है. वे कहते हैं, “हम प्रशासन के रवैये से निराश हैं, पर संविधान को एक उम्मीद के रूप में देखते हैं”.
भाजपा और आरएसएस पर सीधे आरोप लगाते हुए वो कहते हैं, “भाजपा और आरएसएस इस देश में बाबा साहब के संविधान की जगह हिंदू संविधान लागू करने की कोशिश कर रहे हैं और इससे पहले कि ऐसा हो, लोगों को सतर्क हो जाना चाहिए.”
चंद्रशेखर बताते हैं कि भीम आर्मी की स्थापना दलित समुदाय में शिक्षा के प्रसार को लेकर अक्टूबर 2015 में हुई थी, इसके बाद सितंबर 2016 में सहारनपुर के छुटमलपुर में स्थित एएचपी इंटर कॉलेज में दलित छात्रों की कथित पिटाई के विरोध में हुए प्रदर्शन से ये संगठन चर्चा में आया.
चंद्रशेखर का दावा है कि भीम आर्मी के सदस्य दलित समुदाय के बच्चों के साथ हो रहे कथित भेदभाव का मुखर विरोध करते हैं और इसी के कारण इस संगठन की पहुंच दूर दराज़ के गांवों तक हुई है.
वहीं सहारनपुर की पुलिस और प्रशासन का दावा है कि चंद्रशेखर दलित युवाओं को व्हाट्सएप के ज़रिए भड़काऊ संदेश देकर जातीय हिंसा के लिए उकसाते रहे हैं.
वैसे चंद्रशेखर को सुर्खियां तब भी मिली जब उन्होंने अपने गांव घडकौली के सामने ‘द ग्रेट चमार’ का बोर्ड लगाया है. वो बताते हैं, “इलाके में वाहनों तक पर जाति के नाम लिखे होते हैं और उन्हें दूर से पहचाना जा सकता है. जैसे द ग्रेट राजपूत, राजपूताना. इसलिए हमने भी ‘द ग्रेट चमार’ का बोर्ड लगाया. इसे लेकर विवाद भी हुआ लेकिन आज भी इसकी मौजूदगी है.”
लड़ने भिड़ने की बात हो या बराबरी की बात, 30 साल के दलित का भरोसा देखते ही बनता है और इसके चलते पिछले कुछ महीनों में दलित युवाओं में उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी है. जंतर मंतर पर उमड़ी सैकड़ों की भीड़ इसकी तस्दीक करती है.
देहरादून से लॉ की पढ़ाई करने वाले चंद्रशेखर खुद को ‘रावण’ कहलाना पसंद करते हैं. इसके पीछे वो तर्क देते हैं- “रावण अपनी बहन शूर्पनखा के अपमान के कारण सीता को उठा लाता है लेकिन उनको भी सम्मान के साथ रखता है.”
चंद्रशेखर कहते हैं, “भले ही रावण का नकारात्मक चित्रण किया जाता रहा हो लेकिन जो व्यक्ति अपनी बहन के सम्मान के लिए लड़ सकता हो और अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता हो वो ग़लत कैसे हो सकता है.”