जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । केन्द्रीय सूचना आयोग का कहना है कि सरकारी विभागों को नोटबंदी से जुड़ी जानकारियां साझा करनी चाहिए। साथ ही वह यह भी बताएं कि इतने बड़े कदम के पीछे के प्रमुख कारण क्या रहे। नोटबंदी के बारे में जानकारी के अभाव में पारदर्शिता पैनल की ओर से पहली टिप्पणी के रुप में सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा कि सूचना को रोकने का कोई भी प्रयास अर्थव्यवस्था के बारे में गंभीर संदेह पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि निर्णयों के चारों ओर स्टील का किला बनाने की पुरानी आदत को बदलना होगा।
सीआईसी की यह बात इसलिए मायने रखती है क्योंकि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और वित्त मंत्रालय ने आरटीआई के जरिये नोटबंदी की वजह पूछे जाने का जवाब नहीं दिया। पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 8 नवंबर को 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को अमान्य घोषित कर दिया था। आचार्यालु ने आरटीआई एप्लिकेंट रामस्वरूप के मामले में यह बात कही, जिन्होंने पिंटो पार्क एयरफोर्स एरिया के पोस्टऑफिस में कितने नोटों को एक्सचेंज कराया गया, इसकी जानकारी मांगी थी। उन्होंने यह भी पूछा था कि किन लोगों ने पुराने नोटों के बदले नए नोट लिए और इसके लिए अपना आइडेंटिफिकेशन प्रूफ जमा कराया। इस पर पोस्ट डिपार्टमेंट नेकहा था कि उसके पास ये सूचनाएं कंसॉलिडेटेड फॉर्म में नहीं हैं। आचार्यालु ने डिपार्टमेंट को जानकारी देने का आदेश देते हुए कहा कि सभी सरकारी एजेंसियों को नोटबंदी के बारे में जानकारी देनी चाहिए, जिसका देश के हर नागरिक पर असर पड़ा था।
आचार्युलु ने कहा कि नोटबंदी का असर यहां तक कि भिखारियों, रिक्शा चालकों, ठेले वालों तक पड़ा। उन्होंने कहा, ‘अगर नोटबंदी से हुई परेशानी अस्थायी थी और इससे आगे चलकर फायदा होगा, तो आधिकारिक तौर पर लोगों को इसकी जानकारी दी जाए। जो सरकारी संस्थाएं या एजेंसियां नोटबंदी से जुड़ी थीं, उन्हें यह काम करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि अगर ये संस्थाएं जानकारी नहीं देती हैं तो लोगों के मन में गंभीर सवाल आएंगे।