जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । प्रीति हुड्डा से मिलवाते हैं. प्रीति ने हिंदी माध्यम से पढ़ाई करके सिविल सेवा परीक्षा पास की है.
हरियाणा के बहादुरगढ़ के साधारण परिवार से आने वाली प्रीती कहती हैं कि मेरे पिता दिल्ली परिवहन निगम (DTC) की बस चलाते हैं. बचपन में कभी नहीं सोचा था कि सिविल सेवा की तैयारी करूं. इतने आगे तक पढ़ाई करने वाली मैं अपने परिवार की पहली लड़की हूं.
पापा का सपना था कि मैं आईएएस बनूं. फिर मैं जेएनयू आई और यहां इस बारे में ज्यादा पता चला कि तैयारी कैसे की जाए. मैंने ये तैयारी एमफिल के बाद शुरू की.
उन्होंने कहा कि जब यूपीएससी का रिजल्ट आया, तब पापा डीटीसी की बस चला रहे थे. पापा बहुत खुश हुए. मेरे पापा कभी मुंह पर तारीफ नहीं करते हैं. लेकिन इस बार पापा ने फोन पर बोला- ‘शाबाश मेरा बेटा, मैं बहुत खुश हूं.’
एक लड़की होने के नाते जेएनयू में मुझे वो माहौल मिला कि मैं कॉन्फिडेंस के साथ सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर सकूं.
उनके अनुसार जेएनयू आपको एक प्लेटफॉर्म और आत्मविश्वास देता है कि अगर आप मेहनत करते हैं तो आप कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं. फिर चाहे आप साधारण पृष्ठभूमि से ही क्यों न हों.
जेएनयू जब आई थी तो पहली बार इतनी आज़ादी से लड़कियों को खुले में घूमते देखा. यहां इतना सुरक्षित महसूस करती हूं, जितना अपने घर की गली में भी महसूस नहीं करती थी.
जेएनयू में पढ़ाई के दौरान मुझ में बात करने का कॉन्फिडेंस भी आया.
धैर्य बिलकुल मत खोइए. जो लोग सब कुछ वक्त के हिसाब से करते हैं, उन्हें दिक्कत हो सकती है. तैयारी करते वक्त मस्ती करें, फ़िल्में भी ज़रूरी हैं. कॉन्फिडेंस के साथ धीरे-धीरे सिलेबस को पूरा कीजिए.
10 घंटे तैयारी करने से अच्छा है कि थोड़ा सोचकर दिशा तय करके पढ़ाई कीजिए. बहत सारी किताबें नहीं पढ़नी चाहिए. सीमित पढ़ें और बार-बार पढ़ें.
जब मैंने दूसरी बार प्रीलिम्स एग्जाम दिया था, तब बहुत निराशा हुई थी. क्योंकि तब समझ नहीं आया कि कहां गलती हुई.
ऐसे में फिर धैर्य न खोने की सीख काम आती है. दरअसल मेरी पढ़ाई की सामग्री में दिक्कतें थीं.
घर के माहौल की बात करूं तो मैंने वो वक्त भी देखा है, जब घर पर 50 पैसे भी नहीं थे.