अभूखा
क्या हिंदी-चीनी भाई-भाई का दूसरा अध्याय मुमकिन नहीं? चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के उस हालिया बयान पर भारत गंभीरता से चिंतन करे जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर भारत के सेवा उद्योग और चीन के उत्पादन उद्योग हाथ मिला लें तो दोनों देश दुनिया पर राज कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी माह चीन का दौरा करने वाले हैं। वो गुजरात के मुख्यमंत्री की हैसियत से चीन गए थे जहाँ उनका स्वागत एक राष्ट्रीय नेता की तरह हुआ था। इस बार प्रधानमंत्री के रूप में बीजिंग में शायद उनका स्वागत और भी शानदार हो।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने पाकिस्तान के दौरे के समय कहा था कि पाकिस्तान उस समय चीन का साथ दिया था जब चीन के साथ कोई खड़ा नही था। यह इस बात का संकेत देता है कि भारत की तुलना में चीन पाकिस्तान को अहमियत देता है। मोदी के दौरे के समय शायद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ पाकिस्तान में चीनी मदद वाले उस इकोनोमिक कॉरिडोर पर भी बात हो जिस पर चीन और पाकिस्तान के बीच 46 अरब डॉलर का समझौता हुआ है। इस आर्थिक गलियारे से चीन की पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के रास्ते अरब महासागर तक सीधी पहुँच हो जायेगी। ये गलियारा चीन की उस विशाल योजना का एक हिस्सा है जिसे आम तौर से ‘समुद्री सिल्क रोड’ के नाम से जाना जाता है और जिसपर चीन 40 अरब डॉलर खर्च कर रहा है।
लगभग 3000 किलोमीटर लम्बा ये रास्ता कश्मीर के उस हिस्से से होकर गुजरेगा जो भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित है। भारत इसे लेकर चिंतित है। वर्ष 1993 में चीन ने पहली बार बर्मा और नेपाल में रेल, सड़कें और दूसरी बुनियादी ढाँचे बनाने का काम शुरू किया था। तब भी कहा जा रहा था कि ये भारत के लिए चिंता का विषय है। असम में इसको लेकर कितनी चिंता थी क्योंकि वर्ष 1962 की जंग में चीन इसकी राजधानी के एकदम करीब तक घुस गया था।
अब तो चीन भारत के अन्य पडोसी देशों में भी बंदरगाह, रेल और रोड बनाने का काम कर रहा है। एक तरह से देखें तो चीन ने भारत को चारों तरफ से अपने असर में घेर लिया है। भारत चिंतित है, लेकिन ये भारत का नजरिया है। चीन तो अमरीका की जगह पर दुनिया का सबसे प्रभावशाली देश बनने का सपना देख रहा है।
चीन और पाकिस्तान के बीच 46 अरब डॉलर के आर्थिक समझौते हुए है. बल्कि इस सपने को साकार करने के लिए जी-जान से कोशिश कर रहा है। समुद्री सिल्क रोड हो या अफ़्रीका, दक्षिण एशिया और लातिनी अमरीका, चीन ने दुनिया भर में निवेश का जाल बिछा दिया है।
दुनिया की अधिकतर बड़ी कंपनियों में चीनी निवेश आम बात है। अब तो हाल ये है कि अगर चीन की अर्थव्यवस्था डगमगाई तो दुनिया भर में आर्थिक भूकंप आ सकता है। तो ये है असर चीन का दुनिया पर। लेकिन इसके बावजूद भारत में चीन से मुकाबला करने की एक आदत सी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘मेक इन इंडिया’ योजना के तहत भारत को चीन की तरह निर्माण का गढ़ बनाने का लक्ष्य रखा है। 15 साल पहले तक भारत का मुकाबला पाकिस्तान से होता था। लेकिन धीरे-धीरे ये धारणा बनी कि अगर मुक़ाबला करना ही है तो चीन से करो, जो आबादी और साइज में भारत की तरह है।ऐसी स्थिति में भी भारत को चीन तक पहुँचने के लिए 20 साल लगेंगे।
चीन से बराबरी करना एक अच्छा ख्याल जरूर है लेकिन ये हकीकत पर आधारित नहीं है। चीन भारत से कहीं आगे निकल चुका है। इसके नजदीक आने के लिए भारत की कई पीढ़ियों को इंतजार करना पड़ सकता है। चीन इस समय विश्व में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
साल 2014 के आर्थिक आंकड़ों पर नजर डालने से ही स्पष्ट हो जाता है कि भारत और चीन की तुलना करना ना इंसाफी है। आर्थिक मामले में भारत दुनिया के दसवें नंबर पर है जबकि चीन नंबर दूसरे स्थान पर। भारत का सकल घरेलू उत्पाद 1. 9 खरब डॉलर का है जबकि चीन का 9. 2 खरब डॉलर है। भारत 317 अरब डॉलर का निर्यात करता है जबकि चीन 2.3 खरब डॉलर का। इसी तरह भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 343 अरब डॉलर का है जबकि चीन का चार खरब डॉलर का है।
यह साफ संकेत देता है कि फिलहाल चीन से बराबरी करना बेहद मुश्किल है। इसलिए आपसी सहयोग में ही फायदा दिखता है। भारत ने चीन के साथ सरहदों के मतभेद के बावजूद एक मजबूत व्यापारिक रिश्ता बना रखा है जो फल फूल रहा है। लगभग 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ चीन भारत का सब से बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। लेकिन अब जरुरत इस बात की है कि भारत चीन के उस निमंत्रण को स्वीकार कर ले जो उसने समुद्री सिल्क रोड के निर्माण में भारत को दिया है।