प्रदीप शर्मा / नई दिल्ली । 8 जुलाई शनिवार को हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकी कमांडर बुरहान वानी की बरसी है। इस पर कांग्रेस नेता सैफूद्दीन सोज़ ने शुक्रवार को बयान देते हुए कहा कि अगर उनकी सत्ता होती तो बुरहान वानी की कभी भी मृत्यु नहीं होती और वो आज जिंदा होता। सोज़ ने कहा कि अगर कांग्रेस की सरकार होती तो हम वानी के साथ बातचीत कर मामले को सुलझा मैं उससे बातचीत करता और उसे समझाता कि पाकिस्तान, कश्मीर और भारत के बीच दोस्ती हो सकती है, जिसमें वह भी अपनी भागीदारी निभा सकता था, लेकिन बुरहान अब मर चुका है और हमें कश्मीरियों के दर्द को समझना चाहिए। वहीं सोज़ द्वारा एक आतंकी के लिए हमदर्दी दिखाने पर बीजेपी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि एक आतंकी के साथ आतंकियों जैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए।
बुराहन वानी की बरसी को ध्यान में रखते हुए घाटी में भारी पुलिस बल और सेना के जवानों को तैनात किया गया है। सरकार को आशंका है कि शनिवार को वानी की बरसी के मौके पर आसामजिक तत्व उत्पात मचा सकते हैं। वहीं ब्रिटेन में भी बुरहान वानी की याद में एक रैली आयोजित की जा रही थी जिसे रद्द कर दिया गया है। भारत सरकार ने इस संबंध में कड़ा विरोध दर्ज कराया था, जिसके बाद बर्मिंघम सिटी काउंसिल ने बुधवार को इस रैली के आयोजकों को दी गई इजाजत वापस ले ली। भारत ने सोमवार को इस संबंध में ‘नोट वर्बेल’ जारी ब्रिटेन से कहा था कि वह काउंसिल हाउस के बाहर होने वाले ‘कश्मीर रैली’ नाम के कार्यक्रम को रोके। कार्यक्रम के पोस्टर्स और घोषणाओं में वानी की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया था।
गौरतलब है कि 8 जुलाई, 2016 को सेना ने जम्मू-कश्मीर के अनंनतनाग जिले में मुठभेड़ के दौरान बुरहान वानी को मार गिराया था। वानी के मारे जाने के बाद घाटी में सरकार और सेना के खिलाफ पत्थरबाजों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। यह प्रदर्शन करीब 53 दिनों तक चला जिसमें दो सैन्य अधिकारियों समेत 78 लोगों की जान चली गई थी। वानी की बरसी को गंभीर रूप से देखते हुए राज्य सरकार ने पहले ही अलगाववादी नेता सयैद अली शाह गिलानी, मीरवाइड़ उमर फारुख और यासिन मलिक को नजरबंद करने के आदेश दे दिए हैं। सरकार नहीं चाहती की घाटी में पहले की तरह हालात बने और कोई भी अलगाववादी नेता कश्मीरी युवाओं को भड़काए।