अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली। एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार एम वेंकैया नायडू को जय आंध्र आंदोलन ने जिंदगी को नई दिशा दे दी और इसके बाद वे कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखे। राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी वेंकैया उपराष्ट्रपति की कुर्सी के लिए कई नेताओं को पीछे छोड़ दिए। आंध्र प्रदेश से लेकर तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल तक वेंकैया को लोग बेहद करीब से जानते हैं। जहां तक उपराष्ट्रपति के पद का सवाल है वो संसदीय तौर पर देश का दूसरा सबसे बड़ा पद है, लेकिन उपराष्ट्रपति का मुख्य काम होता है राज्य सभा को चलाना।
वेंकैया नायडू का जन्म 1 जुलाई 1949 को चावटपलेम, नेल्लोर जिला, आंध्र प्रदेश के एक कम्मा परिवार में हुआ था। उन्होंने वी।आर। हाई स्कूल, नेल्लोर से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और वी।आर। कॉलेज से राजनीति तथा राजनयिक अध्ययन में स्नातक किया। वे स्नातक प्रतिष्ठा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये। तत्पश्चात उन्होंने आन्ध्र विश्वविद्यालय, विशाखापत्तनम से कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। 1974 में वे आंध्र विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुये। कुछ दिनों तक वे आंध्र प्रदेश के छात्र संगठन समिति के संयोजक भी रह चुके हैं।
वेंकैया नायडू की पहचान हमेशा एक ‘आंदोलनकारी’ के रूप में रही है। वे 1972 में ‘जय आंध्र आंदोलन’ के दौरान पहली बार सुर्खियों में आए। उन्होंने इस दौरान नेल्लोर के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुये विजयवाड़ा से आंदोलन का नेतृत्व किया। छात्र जीवन में उन्होने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रभावित होकर आपातकालीन संघर्ष में हिस्सा लिया। वे आपातकाल के विरोध में सड़कों पर उतर आए और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। आपातकाल के बाद वे 1977 से 1980 तक जनता पार्टी के युवा शाखा के अध्यक्ष रहे। वर्ष 2002 से 2004 तक उन्होने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का उतरदायित्व निभाया। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रहे और वर्तमान में वे भारत सरकार के अंतर्गत शहरी विकास, आवास तथा शहरी गरीबी उन्मूलन तथा संसदीय कार्य मंत्री है।
इसके लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो राज्य सभा को अच्छी तरह से संभाल पाएं क्योंकि यहाँ अभी तक एनडीए को पूरा बहुमत नहीं है। संसदीय कार्य के दौरान सरकार के लिए जितनी समस्याएं पैदा होती हैं वो राज्य सभा से ही होती हैं। ज़रूरी विधेयक अटक जाते हैं, कांग्रेस और विपक्ष के एकजुट होते हैं और सरकार को कटघरे में खड़ा कर देते हैं, जिसके चलते सदन कई कई दिन तक नहीं चल पाता है। इस भूमिका में देखा जाए तो पार्टी को एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो सदन को ठीक से चला पाएं।
ऐसा नहीं है कि वेंकैया नायडू केवल बीजेपी या एनडीए तक ही सीमित हैं। उनके कांग्रेस में भी मित्र हैं, समाजवादी पार्टी और जदयू में मित्र हैं। तो ये जो दोस्ती उन्होंने बनाई है वो उनके लिए फायदेमंद हो सकती है।
ये बात सच है कि वेंकैया नायडू दक्षिण भारत से भाजपा के बहुत पुराने नेता है। वो वैसे तो आंध्र प्रदेश से हैं और वहां से विधानसभा सदस्य रह चुके हैं। आंध्रप्रदेश से वो एक बार एमपी चुनाव भी लड़े थे लेकिन हार गए थे। लेकिन तमिलनाडु में उनकी अच्छी पकड़ है, उनका परिवार चैन्नई में बस गया है। वो कई बार कर्नाटक से राज्य सभा में सासंद रह चुके हैं तो वो उस राज्य को भी बेहतर समझते हैं।
इसे एक संकेत माना जा रहा है कि जब राष्ट्रपति उत्तर भारत से हैं तो उपराष्ट्रपति तो दक्षिण भारत से ही होना था। लेकिन उनका दक्षिण भारत पर अच्छी पकड़ होना एक कारक ज़रूर है।
जानिए वेंकैया के राजनीतिक सफर को
1973-1974 : अध्यक्ष, छात्र संघ, आंध्र विश्वविद्यालय
1974 : संयोजक, लोक नायक जय प्रकाश नारायण युवजन चतरा संघर्ष समिति, आंध्र प्रदेश
1977-1980 : अध्यक्ष, जनता पार्टी की युवा शाखा, आंध्र प्रदेश
1978-85 : सदस्य, विधान सभा, आंध्र प्रदेश (दो बार)
1980-1985 : नेता, आंध्र प्रदेश भाजपा विधायक दल
1985-1988 : महासचिव, आंध्र प्रदेश राज्य भाजपा
1988-1993 : अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश राज्य भाजपा
1993 – सितंबर, 2000 : राष्ट्रीय महासचिव, भारतीय जनता पार्टी, सचिव, भाजपा संसदीय बोर्ड, सचिव, भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति, भाजपा के प्रवक्ता
1998 के बाद : सदस्य, कर्नाटक से राज्यसभा (तीन बार)
1 जुलाई 2002 से 30 सितंबर 2000 : भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री
5 अक्टूबर 2004 से 1 जुलाई 2002 : राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी
अप्रैल 2005 के बाद : राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी
26 मई 2014 : शहरी विकास और संसदीय मामलों के केंद्रीय मंत्री