हरीश लखेड़ा / नई दिल्ली। देव भूमि उत्तराखंड में पाकिस्तान की खुफिया ऐजेंसी आईएसआई अपने नए मिशन में लगी है। आईएसआई की योजना है कि उत्तराखंड में मसजिदें और दरगाहों का जाल फैला दिया जाए । हर मंदिर के बगल में मसजिद बनाई जाए। देव भूमि को भी दंगों की चपेट में लाया जाए। भारत में बैठ उनके गुर्गे इस योजना पर अमल करने में जुटे हैं। पौड़ी जिले के सतपुली कस्बे में हाल की घटना इस साजिश की ओर इंगित कर रही है।
आईबी ने केंद्र सरकार को आगाह किया है कि उत्तराखंड इस्लामी कट्टर पंथियों के निशाने पर है। सतपुली की घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी आईबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाक खुफिया ऐजेंसी आईएसआई उत्तराखंड में मसजिदें और दरगाहों बनाकर अपना जाल फैलाना चाहती है। उत्तराखंड के शहरों हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर,कोट्द्वार से लेकर दुगड्डा, बागेश्वर, अल्मोड़ा, श्रीनगर, समेत लगभग सभी जगह मसिजदें बन चुकी हैं। सरकारी जमीनें हड़पकर दरगाहें भी बनाई जा रही हैं। खासतौर पर पिथौरागढ़ और नेपाल के सीमांत क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मसजिदें बनाई जा रही हैं। धारचूला में बरेली के एक ठेकेदार ने मसजिद बनवाई हैं।
आईबी ने कहा है कि सुनियोजित तरीके से उत्तराखंड में नजीबाबाद, सहारनपुर, रामपुर, मुरादाबाद,बरेली, मेरठ आदि क्षेत्रों से मुसलिम आबादी को बसाया जा रहा है। प्रदेश में अब लगभग 18 फीसदी आबादी मुसलिम हो चुकी है। इनमें बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भी हैं।चूंकि उत्तराखंड के गांव पलायन के कारण खाली होते जा रहे हैं। इसलिए वहां पाकिस्तानी खुफिया ऐजेंसी को अपना खेल खेलने की आजादी जैसी मिल चुकी है।प्रदेश में लगभग 3000 गांव उजड़ चुके हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों सतपुली कस्बा साम्प्रदायिक दंगे की भेंट चढ़ते-चढ़ते बच गया। नजीबाबाद निवासी फल विक्रेता वसीम ने वॉट्सऐप, फेसबुक पर केदारनाथ मंदिर को लेकर आपत्तिजनक फोटो अपलोड कर दी। इस केदार मंदिर की आपत्तिजनक फोटो के वायरल होते ही हिंदू संगठनों से जुड़े तमाम कार्यकर्ता युवक नारेबाजी करते हुए अभियुक्त की दुकान पर पहुंच गए। उन्होंने पूरा सतपुली बाजार बंद कराकर इसका भारी विरोध किया था।
दरअसल ,उत्तराखंड की डेमोग्राफी लगातार बदल रही है। विशेषतौर पर उत्तर प्रदेश के सीमांत जिलों से बड़ी संख्या में मुसलमान उत्तराखंड में बस रहे हैं। बांग्लादेशी मुसलमान भी उत्तराखंड में आ चूका है। कई जगह इनको प्रदेश के कांग्रेस नेता भी बसाने में मदद करते रहे हैं। इनके अलावा नेपाली और बिहारी भी पहाड़ में बड़ी संख्या में आ गए हैं।
एक ओर पहाड़ मूल के लोगों का शहरों की ओर लगातार पलायन हो रहा है जबकि दूसरी ओर उत्तराखंड के लगभग सभी क्षेत्रों में मुसलिम आबादी बढ़ी है। रिपोर्ट 2011 की जनगणना पहले ही गवाह है कि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी 11.9 से 13.9 प्रतिशत हो चुकी है। लेकिन वास्तविक आंकड़े इससे ज्यादा हैं। अब मुस्लिम आबादी 18 प्रतिशत पार कर चुकी है। इनमें बांग्लादेशी भी बड़ी संख्या में उत्तराखंड में बस रहे हैं।
देहरादून, रुडक़ी, हरिद्वार, कोटद्वार, रामनगर, काशीपुर, हल्द्वानी, टनकपुर से में कम से कम 25 से 30 फीसदी मुसलमान बस गया है। हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए उत्तर प्रदेश के सीमांत जिलों, सहारनपुर, नजीवाबाद, रामपुर, मुरादाबाद, बरेली से बड़ी संख्या में मुसलमान पहाड़ आया। पहाड़ के लगभग हर कस्बे में इनकी मस्जिदें और दरगाहें बन गई हैं। कोटद्वार में सुरेंद्र सिंह नेगी और हल्द्वानी में इंदिरा हृदयेश की भूमिका हमेशा संदिग्ध रही है। हरीश रावत ने चुनाव के दौरान जुमे की नमाज के लिए छुट्टी को जो ऐलान किया उससे वे चुनाव ही हार गए। पहाड़ में लगभग हर धंधे में मुसलनान काम कर रहे हैं। दरअसल, पहाड़ में सब्जी बेचना, नाई, मीट बेचना आदि काम यही लोग संभाल रहे हैं। इसमें सबसे खराब बात यह है कि पहाड़ से महिलाएं भगाने में भी इन जिलों के लोग सबसे आगे हैं। यह पुलिस रिकार्ड में है।
देश की जनगणना में पहले ही आ चुका है कि देश की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ गया है। 2001 में कुल आबादी में मुसलमान 13.4 प्रतिशत थे, जो 2011 में बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो गये। असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, केरल, उत्तराखंड, हरियाणा और यहाँ तक कि दिल्ली की आबादी में भी मुसलमानों का हिस्सा पिछले दस सालों में काफी बढ़ा है। असम में 2001 में कऱीब 31 प्रतिशत मुसलमान थे, जो 2011 में बढ़ कर 34 प्रतिशत के पार हो गये। पश्चिम बंगाल में 25.2 प्रतिशत से बढ़ कर 27, केरल में 24.7 प्रतिशत से बढ़ कर 26.6, उत्तराखंड में 11.9 प्रतिशत से बढ़ कर 13.9, जम्मू-कश्मीर में 67 प्रतिशत से बढ़ कर 68.3, हरियाणा में 5.8 प्रतिशत से बढ़ कर 7 और दिल्ली की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 11.7 प्रतिशत से बढ़ कर 12.9 प्रतिशत हो गया।
देश के मुक़ाबले असम और पश्चिम बंगाल में मुसलिम आबादी में हुई भारी वृद्धि के पीछे बांग्लादेश से होनेवाली घुसपैठ भी एक बड़ा कारण है।
आज से सौ साल से भी ज़्यादा पहले 1901 में अविभाजित भारत में आबादी के आँकड़े आये और पता चला कि 1881 में 75.1 प्रतिशत हिन्दुओं के मुक़ाबले 1901 में उनका हिस्सा घट कर 72.9 प्रतिशत रह गया था। मुसलमानों की आबादी हिन्दुओं या और दूसरे धर्मावलम्बियों के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है। 1961 में देश में केवल 10.7 प्रतिशत मुसलमान और 83.4 प्रतिशत हिन्दू थे, जबकि 2011 में मुसलमान बढ़ कर 14.2 प्रतिशत हो गये