25 जुलाई को 12.30 बजे से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नाम के साथ ‘पूर्व’ जुड़ जाएगा। मंगलवार को संसद भवन मे उनका विदाई समारोह है। इसके बाद उनका आधिकारिक पता 10 राजाजी मार्ग होगा। यहां कभी पूर्व राष्टपति एपीजे अब्दुल कलाम रहा करते थे।
देश को अब तक कुल 14 राष्ट्रपति मिल चुके हैं, लेकिन उनमें से किसी भी राष्ट्रपति को वैसा विदाई समारोह नहीं मिला है, जो देश के पहले राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को मिला था। राजेंद्र प्रसाद की सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस दिन वे राष्ट्रपति के पद त्यागा था उस दिन राष्ट्पति भवन से लेकर नई दिल्ली स्टेशन तक पहुंचने के लिए किसी नामी गिरामी वाहनों का इस्तेमाल नहीं किया था बल्कि बग्गी में बैठकर स्टेशन पहुंचे थे।
13 मई 1962 उन अविस्मरणीय दिनों में शुमार है जब देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति के पद से मुक्त हुए थे। उस दिन पद त्याग करने के बाद राजेंद्र प्रसाद नए राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन को पदभार देने के बाद बडे़ ही सादगी से राष्ट्रपति भवन से विदा हुए। उनके साथ नए राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन और उपराष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन भी थे। बग्गी से राजेंद्र प्रसाद पहले संसद भवन के प्रांगण में आए और सभी लोगों का अभिवादन स्वीकार किया और फिर संसद मार्ग होते हुए रामलीला मैदान पहुंचे। रामलीला मैदान में उस समय हजारों लोग पहले से ही एकत्रिक थे जिन्होंने उनको भावभीनी विदाई दी। खास बात यह है कि संसद मार्ग से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक सड़क के दोनों किनारे हजारों लोग खड़े होकर राजेंद्र प्रसाद को विदाई दे रहे थे।
राजेंद्र प्रसाद लोगों का अभिवादन स्वीकारने के बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां एक विशेष रेलगाड़ी उन्हें पटना ले जाने के लिए लगाई गई थी।
गिनती के राष्ट्रपति हैं जो अपना पद छोड़ने के बाद दिल्ली के बजाए अपने पैतृक घर या राज्यों में रहना पसंद करते हैं। राजेंद्र प्रसाद ने पद त्याग करने के बाद अपने गृह राज्य बिहार जाकर रहना पसंद किया।
यह अलग बात है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को उनकी विद्वता और शालीन व्यक्तित्व के लिए याद किया जाएगा। एक शिक्षक के तौर पर शुरुआत करने के बाद वह राजनीति में एक जाने-माने नाम बन गये। केंद्र की राजनीति में दशकों का सफर तय करने के बाद वह पांच साल पहले भारत के राष्ट्रपति चुने गए थे। 25 जुलाई, 2012 को उन्होंने देश के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी।
रायसीना पहाड़ी पर बने राष्ट्रपति भवन में रहीं अलग-अलग हस्तियों ने अलग-अलग छाप छोड़ी है। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद दो बार के कार्यकाल के कारण सबसे ज्यादा समय तक इस भवन में रहे। जनता का राष्ट्रपति कहे जाने वाले मिसाइल मैन अब्दुल कलाम भी वहां रहे और संजीव रेड्डी और ज्ञानी जैल सिंह जैसे नाम भी जिनके कार्यकाल को प्रधानमंत्री से उनके मतभेदों के कारण भी जाना जाता है।
इतिहास फखरुद्दीन अली अहमद को ऐसे राष्ट्रपति के रूप में याद रखेगा जिन्होंने आपातकाल के आदेश पर दस्तखत किए थे। आर वेंकटरमण और केआर नारायणन ने भी नये प्रतिमान स्थापित किये । प्रतिभा पाटिल ने प्रथम महिला राष्ट्रपति के तौर पर अपनी भूमिका को बखूबी निभाया। अब जब प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल खत्म हो रहा है तो लोग जानना चाहते हैं कि वह किस तरह की विरासत छोड़ कर जा रहे हैं।
बीस साल बाद पहली बार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 16 वीं सदी से चली आ रही एक परम्परा को पुनरुज्जीवित करते हुए बुधवार को गणतंत्र दिवस की समापन परेड (बीटिंग रिट्रीट) के लिए घोड़े -बग्गी पर सवार होकर राजपथ पर सैन्य बलों की टुकड़ियों को गाजे-बाजे के साथ बैरकों में वापस भेजा। यह वही बग्गी है जिसे कभी भारतीय सेना ने तकदीर का सिक्का उछालकर विभाजन के समय जीता था। यह बग्गी अविभाजित भारत के गवर्नर जनरल्स बाडीगार्ड की संपत्ति थी। बंटवारे के समय भारत और पाकिस्तान में से कोई भी इस पर जब अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं हुआ तो सिक्का उछाला गया जिसमें भारत ने इस बग्गी को जीत लिया था।
राजेंद्र प्रसाद की सादगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन 1934 ई. में बिहार में आए भूकम्प के समय डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी बेजोड़ संगठन शक्ति का परिचय दिया। भूकम्प की विभीषिका से बिहार की जनता कराह रही थी। डॉ राजेन्द्र प्रसाद से यह पीड़ा देखी नहीं गई। वह बीमार थे लेकिन अपनी बीमारी की चिंता न कर वह सहायता कार्य में लग गए। वह उन लोगों के लिए जिनके घर नष्ट हो गये थे, उनके लिए भोजन, कपडा और दवाइयां इकट्ठी करते।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद की सरलता, सादगी और समाज सेवा की घटनाएँ अनेक हैं । अपने को विशिष्ट या अन्य लोगों से अलग समझने की भावना उनमे कभी नहीं रही। एक अवसर पर डॉ राजेन्द्र प्रसाद पटना से दरभंगा जा रहे थे, उस समय अत्यंत गर्मी थी। रास्ते में सोनपुर स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो लोग प्यास से बुरी तरह त्राहि- त्राहि कर रहे थे। कुछ ही दिन पूर्व आये भूकम्प के कारण स्टेशन के नल की व्यवस्था नष्ट हो चुकी थी। एक छोटी – सी प्याऊ थी, जहाँ पर बैठा अकेला व्यक्ति सब की आवश्यकता पूरी नहीं कर पा रहा था।
उन्होंने तत्काल अपना लोटा उठाया और पानी भर – भर कर लोगों को पिलाना शुरु कर दिया। लोग उन्हें आवाज देते- ‘ए पानी – इधर पानी लाना’। यह सुनकर डॉ राजेन्द्र प्रसाद उधर ही दौड़ पड़ते। कहीं कोई संकोच या झिझक नहीं। अपनी समाज सेवा से डॉ राजेन्द्र प्रसाद को देशव्यापी ख्याति मिली। वह महात्मा गाँधी तथा पंडित जवाहर लाल नेहरू की तरह देश के अग्रणी नेता बन गए। सन् 1934 ई. में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
वह सन् 1962 ई. तक लगातार दो बार भारत के प्रथम राष्ट्रपति रहे। राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हुए वह 10 हजार रूपये के वेतन के स्थान पर केवल 2 हजार 8 सौ रूपये वेतन लेते थे। 12 वर्षो के लिए राष्ट्रपति भवन उनका घर था।
राष्ट्रपति भवन में पहुंचकर भी डॉ राजेन्द्र प्रसाद की सरलता, सादगी और भारतीय संस्कृति के प्रति गहन आस्था में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आई। अपने व्यक्तिगत मित्रों और परिचितों का स्वागत वे अपने पारम्परिक तरीके से ही करते थे। उन्होंने एक बार संसद सदस्य श्रीमति सुमित्रा कुलकर्णी और उनके पति श्री गजानन को अपने यहाँ भोजन के लिए आमन्त्रित किया। इसका वर्णन करते हुए श्रीमति कुलकर्णी ने लिखा है- ” मैं सोचती थी की हम लोग पाश्चात्य ढंग से औपचारिक भोज पर जा रहे हैं। मगर भोजन के लिए राजेन्द्र बाबू हमें एक छोटे से भोजन के कमरे में ले गये। वहां गोलमेज पर हम तीनो के लिए थालियाँ लगी थीं और डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी भोजन गरम कर रही थीं और परोस भी रही थीं।