जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । 25 जुलाई के 12.30 बजे के बाद से भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पूर्व राष्ट्रपति कहलाने लगेंगे, लेकिन राष्ट्रपति भवन में उनकी छाप आगे आने वाले वर्षों तक दिखाई पड़ेगी। प्रणव अपने पीछे जो विरासत छोड़ गए हैं, वह आने वाले समय में याद किया जाएगा।
उन्होंने राष्ट्रपति भवन की धरोहरों को संवारने और सुरक्षित रखने में काफी अहम भूमिका निभाई है। ऐसा समझ लीजिए कि उन्होंने राष्ट्रपति भवन को नया जीवन, नया कलेवर दिया है। जानें, राष्ट्रपति के तौर पर प्रणव दा अपनी क्या परंपरा छोड़ गए हैं।
प्रणब मुखर्जी ने कलाकारों के लिए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे खोल दिए। कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने 2013 में इन-रेज़िडेंस कार्यक्रम शुरू किए।
इनमें लेखकों और कलाकारों को शामिल किया गया। चुनिंदा स्कॉलर्स को राष्ट्रपति भवन में रुकने और इसके जीवन को करीब से देखने का मौका दिया गया।
प्रणव मुखर्जी बंगाल से ताल्लुक रखने वाले भारत के पहले राष्ट्रपति बने। उनके राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन के अंदर बंगाल की मिठास घुलने लगी। मिठाइयों के साथ बंगालियों का रिश्ता किसी से छुपा नहीं।
इसी का असर था कि मशहूर बंगाली मिठाई संदेश को राष्ट्रपति भवन में जगह मिली। बस इतना ही नहीं, मिठाई के साथ-साथ संगीत की मिठास भी यहां फैलने लगी। प्रणव की पत्नी सुव्रा रविंद्र संगीत को काफी पसंद करती थीं।
यह प्यार कुछ यूं परवान चढ़ा कि रायसिना हिल्स के म्यूजिक बैंड ने अलग-अलग मौकों पर रविंद्रनाथ टैगोर के मशहूर गानों को बजाना शुरू कर दिया।
13 जुलाई 1957 को प्रणव मुखर्जी की शादी सुव्रा से हुई थी। बतौर राष्ट्रपति प्रणव जब बांग्लादेश के दौरे पर गए, तब इतने सालों में पहली बार वह अपनी ससुराल भी गए। उनकी ससुराल भद्रबिला में है।
अपने सास-ससुर के घर पर प्रणव और सुव्रा मुखर्जी का स्वागत किसी नवविवाहित जोड़े की तरह किया गया। उनकी आरती उतारी गई और पारंपरिक वाद्य बजाए गए।
प्रणव जब आइवरी कोस्ट की यात्रा पर गए, तो वहां उन्हें एक नया नाम मिला। उन्हें यहां के पारंपरिक कबीलाई नाम ‘असितो’ से नवाजा गया। इसका मतलब ऐसी मिसाल है, जिसका पालन युवाओं को करना चाहिए। उन्हें अबिदिजान का सदस्य बनाकर सम्मानित किया गया। ये ही सदस्य यहां के मशहूर मंदिर की देखरेख करते हैं।
प्रणव ने फांसी की सजा पा चुके कई दोषियों की क्षमायाचिका को खारिज कर दिया। अफजल गुरु, याकूब मेमन और अजमल कसाब भी इन्हीं लोगों में शामिल थे। लेकिन इसी साल 1 जनवरी को उन्होंने सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ जाते हुए फांसी की सजा पा चुके 4 दोषियों की सजा को घटाकर उम्रकैद कर दिया।
प्रणव के कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन के ऊपर 13 किताबें लिखी गईं। यह सब प्रणव के प्रयासों से ही मुमकिन हो सका। भारत की आजादी के बाद से लेकर अब तक राष्ट्रपति भवन आने वाले सभी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों की यात्राओं का भी एक संकलन बनाया गया और इसे पुस्तक की शक्ल दी गई।
प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन परिसर में आने वाले पक्षियों का भी एक संग्रह तैयार करवाया। इसमें 111 प्रजाति के पक्षियों की पहचान कर उनकी तस्वीरें ली गईं। यहां के खूबसूत बगीचे में हर साल बड़ी संख्या में विदेशी पक्षी आते हैं।
बतौर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में 140 राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी प्रतिनिधियों का स्वागत किया। 2012 से लेकर अबतक वह 21 देशों की आधिकारिक यात्रा कर चुके हैं।
प्रणव ने राष्ट्रपति भवन के अंदर इसकी ऐतिहासिक विरासतों का एक संग्रहालय भी तैयार कराया है। इसमें कई दुर्लभ चीजें रखी गई हैं। राष्ट्रपति भवन के ऐसे कमरे जिनका लंबे समय से कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा था, उनके अंदर से खोज-तलाशकर दुर्लभ चीजें जमा की गई हैं। बंद कमरों में रखे संदूकों और अलमारियों से निकालकर कई बेशकीमती चीजें इस संग्रहालय में रखी गई हैं।
म्यूजियम में एक पियानो भी है, जो तकरीबन 100 साल पुराना है। दीमक द्वारा जर्जर किए जा चुके एक बेशकीमती जरदोजी कालीन को 200 कश्मीरी जुलाहों और बुनकरों की मदद से दोबारा ठीक कराया गया है। इस संग्रहालय में ऐतिहासिक दिल्ली दरबार के समय की भी कुछ चीजें रखी गई हैं।
इस म्यूजियम में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से जुड़ी चीजें और उनका सामान भी रखा गया है। यहां उनकी एक खास तस्वीर भी है। इस लंबी गौरवशाली परंपरा को सहेजने में दिया गया प्रणव मुखर्जी का योगदान हमेशा याद किया जाएगा।
88 साल पुराने राष्ट्रपति भवन की इमारत के पुनर्निर्माण और इसकी देखरेख में प्रणव मुखर्जी ने काफी दिलचस्पी दिखाई।
जिन हिस्सों का लंबे समय से इस्तेमाल नहीं हो रहा था, उनकी मरम्मत कराई गई। प्रणव मुखर्जी के निर्देश पर सभी पेंटिंग्स और फ़र्निचर से जुड़े सामानों की लिस्ट तैयार हुई। 2012 से ही प्रणव ने ये सारे काम शुरू करा दिए थे।
अपने कार्यकाल के पहले ही साल प्रणब ने एक ऐसी इमारत को पुस्तकाल में तब्दील करा दिया, जिसे गिराने की योजना बनाई जा रही थी। राष्ट्रपति भवन परिसर में रहने वाले लोगों के लिए यह पुस्तकालय तैयार कराया गया।