अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली ।लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद पहली बार लालू प्रसाद और नीतीश कुमार हाजीपुर के सुभई में एक मंच पर जनता के सामने आये थे. 23 साल बाद 11 अगस्त, 2014 को सुभई में एक जनसभा को दोनों नेताओं ने संबोधित किया था. दोनों नेताओं ने एकस्वर से भाजपा के खिलाफ मोरचाबंदी करते हुए कहा था कि हमने अपने मतभेद भुला दिये हैं. तीन साल बाद दोनों नेता एक बार फिर अलग-अलग हो गये हैं. बुधवार को दोनों नेताओं ने एक दूसरे पर गठबंधन से अलग होने का जिम्मेवार ठहराया.
वह सुभइ की उमस भरी दुपहरिया थी. स्कूल मैदान में आयोजित सभा में दोनों नेता जब पहुंचे तो सामाजिक न्याय की धारा से रिश्ता रखने वाले लोगों की बांछे खिल गयी थी. नीतीश और लालू ने गरीब-गुरबे और सामाजिक न्याय की धारा को एकजुट करने का आह्ववान किया था. इस सभा में भारी भीड़ उमड़ी थी, देश विदेश की मीडिया की नजरों के सामने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद गले मिले और एक साथ चलने का संकल्प लिया. लोकसभा चुनाव में हाजीपुर के विधायक नित्यानंद राय के सांसद चुने जाने से खाली हुई सीट पर उपचुनाव होना था. दोनों दलों ने मिल कर चुनाव प्रचार में जाने का फैसला किया और साझा चुनाव प्रचार में वह पहुंचे थे.
सुभई की संयुक्त सभा को संबोधित करते हुए दोनों नेताओं ने कहा कि देश गलत लोगों के हाथों में चला गया है. देश को बचाने की जरूरत है. जन समुदाय के बीच लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार को अपना छोटा भाई बताते हुए कहा कि हम दोनों कर्पूरी ठाकुर की झोंपड़ी से निकले हुए एक ही परिवार के लोग हैं. लालू ने यूपी में मायावती और मुलायम से भी शीघ्र गठबंधन करने का सुझाव दिया. दोनों की सभा मोहिउद्दीननगर में भी हुई. लालू की मौजूदगी में नीतीश ने भाजपा पर हमला किया था. नीतीश ने कहा कि कुछ लोगों के सिर सत्ता का नशा चढ़ कर बोल रहा है. दोस्ती का सिलसिला आगे बढ़ा.
इसके बाद जदयू, कांग्रेस और राजद ने मिल कर महागठबंधन बना. विधानसभा चुनाव में सभी सीटें बांटी गयी. जातिगत और सामाजिक समीकरण के आधार पर उम्मीदवारों का चयन हुआ. जदयू व राजद को सौ-सौ सीटें मिलीं और कांग्रेस को चालीस सीटें. बाकी तीन सीट राकांपा के लिया छोड़ा. लेकिन, राकांपा संतुष्ट नहीं हुई. बाद में वह तीनों सीटें भी तीनों दलों के बीच बट गयी. परिणाम आया तो भाजपा चारो खाने चित हो गयी थी. राजद सबसे बड़ा दल बन कर उभरा था , उसके अस्सी विधायक चुनाव जीत कर आये. जदयू के 71 व कांग्रेस के 27 विधायक चुनाव जीत गये. भाजपा के 53 विधायक ही जीते. रालोसपा के दो, लोजपा के दो तथा हम के एकमात्र पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ही जीत पाये.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए उन्हें मर्डर केस का अभियुक्त बता दिया. लालू ने कहा कि नीतीश कुमार पर धारा 302 के तहत मामला दर्ज है. नीतीश इस मामले में डर गये, तभी इस्तीफा दिया है.
उन्होंने कहा कि नीतीश पर एक नागरिक और एक वोटर की हत्या का मामला दर्ज है. लालू ने कहा कि भ्रष्टाचार से बड़ा अपराध हत्याचार है. लालू यादव ने कहा कि 1991 में पंडारक थाने में हत्या के एक मामले में नीतीश कुमार धारा 302 के तहत आरोपी है. लालू ने कहा इस मामले में उन्होंने फर्जी दस्तावेज देकर जमानत ली है. राजद सुप्रीमो में इसको लेकर मीडिया के समक्ष दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि खुद को ईमानदार करार देने वाले नीतीश कुमार को पता था कि अब वे इस मामले में घिरने वाले है. इसको लेकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और भाजपा के साथ फिर से जाने का मूड बना लिया है.
हत्या का यह मामला बाढ़ से जुड़ा है. नवम्बर 1991 में बिहार में हुए लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में तब बाढ़ संसदीय क्षेत्र में सीताराम सिंह नाम के एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. इस मामले को लेकर उस समय ढीबर गांव निवासी अशोक सिंह ने नीतीश कुमार सहित कुछ अन्य लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था. 1 सितम्बर 2009 को बाढ़ कोर्ट के तत्कालीन एसीजेएम रंजन कुमार ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दोषी पाते हुए उनपर इस मामले में ट्रायल शुरू करने का आदेश दिया था.
बाद में इस मामले का हाईकोर्ट में स्थानांतरित करा दिया गया. वर्ष 2009 से लेकर अबतक यह मामला हाइकोर्ट में लंबित है. एक समय न्यायाधीश सीमा अली खान ने इस मामले में नीतीश की पैरवी कर रहे उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. बाद में फिर से मामले पर सुनवाई शुरू हुई जो अभी भी चल रही है.
बाढ़ लोकसभा सीट के लिए 16 नवंबर वर्ष 1991 को हुए उपचुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र पर कांग्रेस कार्यकर्ता और ढिबर गांव निवासी सीताराम सिंह की हत्या कर दी गयी थी. सीताराम सिंह की हत्या के मामले में बाढ़ के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने पूर्व में नीतीश और दुलारचंद को छोड़कर अन्य तीन आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लिया था. वे आरोपी जिनके खिलाफ अदालत द्वारा संज्ञान लिया गया उनमें से एक योगेंद्र यादव द्वारा इस मामले में पटना उच्च न्यायालय में यचिका दायर किए जाने पर उच्च न्यायालय ने आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी.
सीताराम सिंह हत्या मामले के एक गवाह अशोक सिंह ने बाद में बाढ़ के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में एक प्रतिवाद सह शिकायत पत्र दायर कर आरोप लगाया था कि बाढ़ संसदीय उपचुनाव के दौरान 16 नवंबर वर्ष 1991 को वे सीता राम सिंह सहित अन्य लोगों के साथ मतदान करने गये थे तभी वहां नीतीश कुमार जो कि जनता दल के उम्मीदवार थे, दुलारचंद यादव सहित अन्य लोगों के साथ पहुंचे और उन्हें वोट देने से मना किया था.
अशोक सिंह ने अपने परिवाद पत्र में कहा था कि नीतीश कुमार के साथ उस समय तत्कालीन मोकामा विधायक दिलीप सिंह, दुलारचंद यादव, योगेंद्र प्रसाद और बौधु यादव थे और वे बंदूक, रायफल और पिस्तौल से लैस थे. अशोक सिंह ने अपने परिवाद पत्र में आरोप लगाया था कि इन लोगों द्वारा वोट देने से मना किये जाने पर जब सीताराम ने उनकी बात नहीं मानी तो नीतीश ने उन्हें जान से मारने की नीयत से अपनी राइफल से गोली चला दी, जिससे उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गयी.
जबकि उनके साथ आये अन्य लोगों द्वारा की गयी गोलीबारी से सुरेश सिंह, मौली सिंह, मन्नू सिंह एवं रामबाबू सिंह घायल हो गये थे. अशोक सिंह के परिवाद पत्र पर बाढ़ के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार ने 31 अगस्त 2010 को सिंह के बयान और दो गवाहों रामानंद सिंह और कैलू महतो द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर अपराध दंड संहिता 202 के अंतर्गत नीतीश और दुलारचंद यादव को अदालत के समक्ष गत नौ सितंबर को उपस्थित होने का निर्देश दिया था.
बाद में नीतीश द्वारा इस मामले में पटना उच्च न्यायालय का रुख किये जाने पर न्यायालय ने बाढ़ अनुमंडल अदालत के उक्त आदेश पर रोक लगा दी थी तथा इस कांड में नीतीश से जुड़े सभी मामलों को उसके पास भेजने को कहा था.