जनजीवन ब्यूरो / अहमदाबाद । गुजरात के कई इलाके बाढ़ से डूबे हुए हैं. लोगों के घाव पर मरहम तो नहीं लगाया जा रहा है बल्कि बाढ़ के सैलाब पर राजनीति की रोटी जरुर सेंकी जा रही है. लोगों की बरसों से जमा की गई पूंजी बारिश में बह रही है, लेकिन गुजरात में बाढ़ से हताहत लोगों से ज़्यादा सुर्खियां बाग़ी नेता बटोर रहे हैं.
गुजरात में बाढ़ से अबतक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. मरने वालों में कई लोग अपने घर की छत पर घंटो तक खड़े रहने के बाद पानी के चपेट में आ गए. बाढ़ में सबसे ज़्यादा नुकसान उत्तरी गुजरात में हुआ है..
अरावली ज़िले में तो क़रीब 2000 लोगों ने सरकार पर राहत काम में नाकाम होने का आरोप लगाते हुए मोडासा के पास हाइवे पर चक्का-जाम कर दिया था. गुजरात में 203 में 30 बांध छलक रहे हैं और क़रीब 50 से अधिक बांधों पर अलर्ट घोषित किया गया है.
लेकिन इन सबके बीच कुछ और है जिससे राज्य लड़ रहा है. वह है एक राजनैतिक सैलाब. इसके चलते गावों और शहरों के नेता लोगों को डूबने से बचाने के बजाय अपने प्रतिद्वंदियों को डुबाने की साज़िश में लगे हैं.
हालांकि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कुछ दिनों के लिए बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित बनासकांठा ज़िले में डेरा डाल दिया है. वह अब वहीं से राहत कार्यों का मुआयना करेंगे.
हालांकि पीड़ितों से मिलने के तुरंत बाद रूपाणी ने बाढ़ ग्रस्त इलाके में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधा. गुजरात में जारी राजनीतिक उथल-पुथल की शुरुआत कांग्रेस के शंकर सिंह वाघेला के इस्तीफ़े से हुई.
वाघेला के बाद पांच और कांग्रेस नेताओ ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया और तीन बीजेपी में जाकर मिल गए.
कांग्रेस जो गुजरात में पिछले चार राज्य चुनावों से हार का सामना कर रही है, वह इस साल के अंत में हो रहे चुनाव से पहले बिखरती दिख रही है.
पार्टी छोड़ रहे नेताओ को रोकने के लिए कांग्रेस ने अपने 40 से अधिक विधायकों को गुजरात से बेंगलुरु के एक रिज़ॉर्ट में भेज दिया है.
बेंगलुरु में रह रहे ये विधायक रिज़ॉर्ट के स्वीमिंग पूल में तैरते हुए पार्टी को डूबने से बचाने की तरकीबों पर चर्चा कर रहे हैं.
लेकिन उत्तर गुजरात में जहां के कई कांग्रेस विधायक बेंगलुरु में हैं, वहां के लोग शायद सोच रहे होंगे कि हमने इन्हें किस लिए वोट किया था.
इसका जवाब गुजरात कांग्रेस के सबसे बड़े नेता अहमद पटेल ने दिया है. पटेल ने पत्रकारों से कहा, “विधायक बेंगलुरु से स्थिति पर नज़र बनाए रखे हैं और हर मुमकिन मदद भी कर रहे हैं.”
अहमद पटेल गुजरात की राजनीति का वह चेहरा हैं जो दिखते कहीं नहीं हैं पर होते हर जगह हैं. पटेल कभी राजीव गाँधी के क़रीबी थे और 2001 से वह सोनिया गाँधी के राजनीतिक सचिव हैं.
पटेल 1993 से हर बार गुजरात से राज्यसभा की ओर रुख करते रहे हैं. कांग्रेस से लेकर बीजेपी में हर कार्यकर्ता जब इबादत करता है तो वह भगवान से पटेल जैसा नसीब मांगता है.
पटेल वह नेता हैं जो गुजरात में कांग्रेस को एक भी चुनाव जीतने में मदद नहीं कर पाए. लेकिन उनके वर्चस्व पर सवाल उठाने वाले परास्त हो गए.
शंकर सिंह वाघेला उन परास्त हुए नेताओ में से एक थे और अब वह पटेल के सामने आ खड़े हुए हैं.
फिर चाहे पाटीदार हो या दलित आंदोलन, पटेल कभी गुजरात कांग्रेस को अपनी जगह बनाने में मदद नहीं कर पाए. इसका फ़ायदा बीजेपी को मिलता रहा है.
अगस्त 8 को राज्यसभा चुनाव होने हैं. इस चुनाव को जीतने के लिए पटेल को 46 वोटों की ज़रूरत है. कांग्रेस के पास 183 सदस्यों वाली गुजरात विधानसभा में अब 51 विधायक हैं.
कांग्रेस पार्टी ने कुछ और विधायकों के बागी होने के डर से 44 विधायकों को बेंगलुरु भेज दिया है और उन्हें 8 तारीख़ के आसपास वापस लाया जाएगा.