जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। गुजरात राज्यसभा चुनाव की जंग अहमद पटेल जीत चुके हैं. प्रदेश कांग्रेस के बागी शंकरसिंह वाघेला के खेमे द्वारा क्रॉस वोटिंग भी बीजेपी चीफ अमित शाह की रणनीति को कामयाब नहीं कर पाई. इस चुनाव में मात खाए शाह और जीत हासिल करने वाले अहमद पटेल गुजरात में ज्यादा आक्रामक होने वाले हैं. शाह, पटेल और वाघेला अब तीनों ही अगले बड़ी जंग की तैयारियों में जुट जाएंगे. पटेल और शाह का राजनीतिक कैरियर की अग्नि परीक्षा विधानसभा चुनाव में होगी.
कांग्रेस हाल के वक्त में भले ही कई तरह के राजनीतिक झटकों की शिकार रही हो लेकिन यह जीत उसमें नई ऊर्जा जरूर डालेगी. अहमद पटेल अब सुपर ऐक्टिव होंगे और बीजेपी के साथ राजनीतिक लड़ाई को ज्यादा पर्सनल लेवल पर लड़ेंगे. पटेल यह कह चुके हैं कि उन्होंने अपने दशकों लंबी राजनीतिक करियर में इस तरह की राजनीतिक लड़ाई कभी नहीं लड़ी. इस जीत की अहमियत उन्हें अब जरूर समझ में आ गई होगी. भले ही अटकलबाजी हो कि अहमद पटेल अब रिटायरमेंट लेंगे, लेकिन माना जा रहा है कि अब वह गुजरात में कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की कोशिशों में जुट जाएंगे. सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल पटेल कुछ दिनों का ब्रेक लेंगे. इसके बाद, वह गुजरात और कांग्रेस, दोनों में ही अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करेंगे. इसके अलावा, अपने राजनीतिक सर्किल में भी कुछ बड़े बदलाव कर सकते हैं.
जहां तक वाघेला का सवाल है, बलवंत सिंह की हार के बाद उनका सियासी प्रभाव कम होना लाजिमी है. वाघेला ने कांग्रेस से 22 विधायकों को तोड़ने की बात कही थी, लेकिन 14 ही विधायक मैनेज कर सके. वाघेला यह सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि वह बीजेपी जॉइन नहीं करेंगे. हालांकि, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जो वाघेला कहते हैं, वैसा वह करते नहीं हैं. सूत्रों के मुताबिक, अब वह गुजरात कांग्रेस को और कमजोर करने की दिशा में काम करेंगे. वह सुनिश्चित करेंगे कि उनके बेटे महेंद्र सिंह और कम से कम 11 कांग्रेसी विधायक बीजेपी जॉइन कर लें. वाघेला के निशाने पर अब गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी और अशोक गहलोत भी होंगे. खुद को साइडलाइन किए जाने के लिए वे इन दोनों को जिम्मेदार मानते हैं.
राज्यसभा चुनाव को लेकर जो भी सियासी ड्रामा हुआ, यह सब कुछ अमित शाह की मर्जी का ही नतीजा है. उन्होंने साफ कर दिया कि चाहे सोनिया गांधी हों या अहमद पटेल, वह किसी को चैन से बैठने नहीं देंगे और कांग्रेस को हमेशा अलर्ट मोड में रहने के लिए मजबूर रखेंगे. यह हार शाह के लिए कोई बड़ा झटका नहीं. उन्होंने कांग्रेस बागी बलवंत सिंह राजपूत पर ऐसा दांव खेला कि पूरी की पूरी कांग्रेस इधर-उधर भागती नजर आई. वहीं, राज्यसभा में अमित शाह की नई भूमिका पीएम नरेंद्र मोदी के लिए बेहद मददगार साबित होगी. पहले वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति बनकर राज्यसभा के पदेन सभापति बनने और अब शाह की वजह से मोदी को राज्यसभा की अब कम चिंता करनी होगी. मोदी और शाह की जोड़ी ने पहले भी कमाल दिखाया है. ऐसे में संसद में दोनों की एक साथ मौजूदगी बीजेपी को आगे बढ़ाने का ही काम करेगी.
अमित शाह ने एक बार फिर साबित किया है कि उनका अपने काम पर पूरी तरह फोकस है. अब वह आराम नहीं करेंगे. अमित शाह अब गुजरात चुनाव में 150+ सीट्स पाने के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करेंगे. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, इसके लिए शाह न केवल बिना थके काम करेंगे, बल्कि वह ‘किसी का भी उसके पूर्व के इतिहास की परवाह किए बिना बीजेपी में स्वागत करने के लिए तैयार हैं.’ सूत्र कहते हैं कि शाह को वाघेला और उनकी राजनीति का तरीका कोई खास पसंद नहीं, लेकिन उन्होंने जिस तरह वाघेला के साथ जुड़ने की उत्सुकता दिखाई , उससे उनका राजनीतिक लचीलापन पता चलता है.