जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : ट्रिपल तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक करार किए जाने के फैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक बताया है. पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा कि कोर्ट के इस फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं को उनका हक मिलेगा और कोर्ट का ये फैसला महिला सशक्तिकरण की ओर एक बड़ा कदम है. सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले ने 32 साल पुरानी याद को ताजा कर दिया है. आज से 32 साल पहले भी इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था जिसे लेकर राजनीतिक वबाल हुआ था और सरकार को संसद में इस फ़ैसले को बदलना पड़ा था. ये बात अलग है कि इस मामले का ताल्लुक़ तलाक़ के क़ानूनी या ग़ैर-क़ानूनी पक्ष से नहीं बल्कि गुज़ारे भत्ते से था लेकिन मौटे तौर पर ये लड़ाई मुस्लिम महिलाओं के हक़ के लिए थी जो शाहबानो ने लड़ी थी.
कांग्रेस ने भी इस फैसले का अभिनंदन किया है. कांग्रेस ने अपने अधिकारिक ट्विटर एकांउट पर ट्वीट कर कहा है – हम तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं, यह भारत में मुसलिम महिलाओं को समानता का हक देने के लिए एक प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष फैसला है. कांग्रेस के इस ट्वीट से पहले उसके कुछ बड़े नेताओं ने मीडिया को दिये बयान में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया था. कांग्रेस नेता व पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह बहुत अच्छा और सुलझा हुआ फैसला है. यह दूरगामी निर्णय है. यह सच्चाई है, वास्तविकता है. यह फैसला सही इस्लाम को उजागर करता है. जिस परंपरा का इस्लाम से ताल्लुक नहीं है, उसे यह फैसला बाहर कर देता है. सुप्री मोर्ट ने मामला केंद्र सरकार को भेजा है.
दरअसल, कांग्रेस के नेता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की वह शख्स थे, जिन्होंने तीन तलाक के संबंध में शाह बानो को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को संसद में कानून पारित कर बदल दिया था. 1986 में कम राजनीतिक अनुभव वाले प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने मुसलिम महिला तलाक अधिकार संरक्षण कानून पारित किया था. यह अपने आप में एक चौंकाने वाली पहल थी और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा व आलोचना हुई थी. भले ही तब तुरंत कांग्रेस को इसका बड़ा राजनीतिक नुकसान नहीं हुआ, लेकिन आने वाले दशकों में उसने विपक्षी भाजपा को एक बड़ा मुद्दा दे दिया, जिस पर भाजपा सालों काम करती रही और मुद्दे को समय-समय पर उठाती रही. आज जब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है तो भाजपा के लिए यह एक नैतिक उपलब्धि है, वहीं कांग्रेस के लिए अपना स्टैंड दुरुस्त करने का मौका. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आज बड़ी शालीनता से कहा है कि यह फैसला किसी की जीत या किसी की हार नहीं है.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस फैसले के बाद मीडिया के सामने आये और पांच पंक्तियों का संक्षिप्त व सधा हुआ बयान जारी किया. उन्होंने कहा कि कई मुसलिम देशों में आज तीन तलाक की व्यवस्था नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से इस पर रोक का फैसला देकर देश की करोड़ों मुसलिम महिलाओं को समानता से जीने का मौका दिया. मैं इस फैसले को स्वागत करता हूं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को इस मामले को ठीक से अदालत के पक्ष रखने के लिए पार्टी की ओर से बधाई देता हूं. आज मुसलिम महिलाओं के लिए स्वाभिमान व समानता के दिन की शुरुआत हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और इसे ऐतिहासिक बताया है.
यूं लड़ी जंग शाहबानो ने
दरअसल इंदौर में रहने वाली शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में राजनीतिक हमगामा मच गया था. राजीव गांधी सरकार ने एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था.
शाहबानो को उसके पति मोहम्मद ख़ान ने 1978 में तलाक़ दे दिया था. 62 वर्षीय शाहबानो के पांच बच्चों की मां थी और तलाक़ के बाद गुज़ारा भत्ता पाने के लिए 1985 में कानूनी लड़ाई लड़ी थी. उच्चतम न्यायालय तक पहुँचते मामले को सात साल बीत चुके थे. न्यायालय ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 के अंतर्गत निर्णय दिया जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो. न्यायालय ने निर्देश दिया कि शाह बानो को निर्वाह-व्यय के समान जीविका दी जाय.
लेकिन केस जीतने पर भी उन्हें हर्ज़ाना नहीं मिल सका था. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरज़ोर विरोध किया था. इस विरोध के बाद 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया जिसके तहत शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया था.
भारत के रूढ़िवादी मुसलमानों के अनुसार यह निर्णय उनकी संस्कृति और विधानों पर अनाधिकार हस्तक्षेप था. इससे उन्हें असुरक्षित अनुभव हुआ और उन्होंने इसका जमकर विरोध किया. उनके नेता और प्रवक्ता एम जे अकबर और सैयद शाहबुद्दीन थे. इन लोगों ने ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड नाम की एक संस्था बनाई और सभी प्रमुख शहरों में आंदोलन की धमकी दी. उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उनकी मांगें मान लीं और इसे “धर्म-निरपेक्षता” के उदाहरण के स्वरूप में प्रस्तुत किया.