जनजीवन / नई दिल्ली । कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज केएस पुट्टस्वामी ने सन् 2012 में ‘आधार’ को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस मामले समेत 21 पिटीशंस पर सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों ने फ़ैसला देते हुए कहा है कि प्राइवेसी या निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है.
संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकार के प्रावधान हैं, जिन्हें डॉ. अंबेडकर ने संविधान की आत्मा बताया था. अनुच्छेद-21 में जीवन तथा स्वतन्त्रता का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने अनेक मामलों में निर्णय देकर शिक्षा, स्वास्थ्य, जल्द न्याय, अच्छे पर्यावरण आदि को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना है. संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला देश का क़ानून माना जाता है, और अब प्राइवेसी भी मौलिक अधिकार का हिस्सा बन गई है.
मौलिक अधिकार होने के बाद कोई भी व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिका दायर करके न्याय की मांग कर सकता है.
सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दिया कि प्राइवेसी कॉमन लॉ के तहत कानून तो है पर इसे मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता. इस बारे में सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के पुराने दो फैसलों खड़क सिंह (1954) और एमपी शर्मा (1962) की जोरदार दलील दी गई थी.
पिटीशनर्स के अनुसार संविधान में जनता सर्वोपरि है तो फिर प्राइवेसी को मौलिक अधिकार क्यों नहीं माना जाना चाहिए? पिटीशंस ने अमेरिका में प्राइवेसी के बारे में चौथे अमेंडमेंट समेत कई अन्य दलीलें रखीं.
सुप्रीम कोर्ट ने पिटीशनर्स की तरफ से पेश दलीलों को मानते हुए प्राइवेसी को मौलिक अधिकार मान लिया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले लगाई रोक के बावजूद सरकार द्वारा ‘आधार’ को 92 कल्याणकारी योजनाओं में अनिवार्य बना दिया गया था. ‘आधार’ के तहत लोगों को निजी सूचनाओं के साथ बायोमैट्रिक्स यानि फेस डिटेल्स, अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान देने पड़ते हैं.
‘आधार’ को इनकम टैक्स समेत कई अन्य जगहों पर जरूरी कर दिया गया है. ‘आधार’ की अनिवार्यता और बायोमैट्रिक्स के सरकारी डेटाबेस को प्राइवेसी के ख़िलाफ़ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फ़ाइल हुई थी.
इस मामले में पहले तीन जजों की बेंच में और फिर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की. खड़कसिंह मामले में 8 जजों की बेंच ने फ़ैसला दिया था इसलिए प्राइवेसी के मामले पर फ़ैसले के लिए नौ जजों की बेंच बनाई गई.
आधार के अलावा सुप्रीम कोर्ट में व्हाट्सऐप की प्राइवेसी पालिसी को चुनौती दी गई थी. प्राइवेसी पर संविधान पीठ के फैसले के बाद व्हाट्सऐप मामले पर पांच जजों की बेंच सुनवाई करेगी.
सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान जस्टिस चन्द्रचूड़ ने डिजिटल कम्पनियों द्वारा डेटा कलेक्शन पर चिंता जताई थी. फ़ैसले में जस्टिस सप्रे ने डिजिटल कम्पनियों द्वारा डेटा ट्रान्सफर और प्राइवेसी के उल्लघंन पर चिंता जताई.
फ़ैसले में लिखा गया है कि उबर कम्पनी बगैर टैक्सी के, फ़ेसबुक बगैर कंटेन्ट के और अलीबाबा बगैर सामान के ही विश्व की बड़ी कम्पनी बन गई हैं.
केएन गोविन्दाचार्य ने सन् 2012 में दिल्ली हाईकोर्ट में डिजिटल कम्पनियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े करते हुए इन कम्पनियों के ऑफ़िस और सर्वर्स भारत में स्थापित करने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट में प्राइवेसी पर सुनवाई के दौरान सरकार ने पूर्व जज श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में डेटा प्रोटेक्शन पर क़ानून बनाने के लिए समिति का गठन कर दिया था.
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला उसी दिन से लागू हो गया. प्राइवेसी पर नौ जजों ने सहमति से ऐतिहासिक फ़ैसला दिया है, जिसे तुरंत प्रभाव से सरकार को लागू करना पड़ेगा.
इस फ़ैसले के बाद सरकार को इंटरनेट और मोबाइल कम्पनी द्वारा डेटा के गैर-क़ानूनी कारोबार पर रोक लगानी होगी, जिससे डिजिटल इंडिया के विस्तार पर सवालिया निशान खड़े हो सकते हैं.
इस फ़ैसले के बाद सरकार को आधार कानून में बदलाव करने के साथ डेटा प्रोटेक्शन पर जल्द ही क़ानून बनाना होगा. डिजिटल इंडिया के व्यापक दौर में दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) अपनी भूमिका के निर्वहन में विफल रही है.
प्राइवेसी के क़ानून को लागू करने के लिए सरकार को प्रभावी रेगुलेटरी व्यवस्था बनाना होगा. इस फ़ैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में पिटीशन्स और पीआईएल का दौर आया तो अदालतों में मुकदमों का बोझ और बढ़ जायेगा.
शाहबानो मामले में राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को बदल दिया था. राज्यसभा में बहुमत नहीं होने से सरकार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को शायद ही बदल पाए.
1973 में केशवानंद भारती मामले में 13 जजों की बेंच ने ये फ़ैसला दिया था कि संविधान के बुनियादी ढांचे में बदलाव करने के लिए संसद क़ानून नहीं बना सकती.
इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने संसद द्वारा पारित न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को अक्टूबर-2015 में निरस्त कर दिया था. प्राइवेसी अब मौलिक अधिकार है जिसे संसद के क़ानून द्वारा अब बदलना मुश्किल है.
सरकार की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में यह कहा गया कि विकासशील देश में जनता की भलाई के लिए कुछ अभिजात्य लोगों की प्राइवेसी को देशहित में दर-किनार किया जा सकता है पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से देश के सभी 127 करोड़ लोगों को फ़ायदा हुआ है.
सरकार द्वारा वोटर कार्ड, पासपोर्ट, आधार इत्यादि के लिए अभी भी निजी जानकारी ली जा सकती है, पर इनका थर्ड पार्टी दुरुपयोग नहीं हो सकेगा.
फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप और अन्य डिजीटल कंपनियों द्वारा डेटा के गैर-कारोबार पर रोक लगने से भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को भी फ़ायदा होगा.