जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । डोकलाम विवाद आखिरकार सुलझा ही लिया गया. चीन ने भारत की शर्त को माना और दोनों देश साथ-साथ विवादित इलाके से सेनाएं हटाने के लिए राजी हुए. चीन इससे पहले, सिर्फ भारत पर सेनाएं हटाने के लिए दबाव बना रहा था. कूटनीतिक एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस मामले का वैश्विक परिदृश्य में भारत और चीन, दोनों के कद पर बड़ा असर होगा.
चीनी सरकारी मीडिया और कुछ अफसरों की तरफ से लगातार भड़काऊ बयान दिए जाने के बावजूद, भारत ने संदेश दिया कि वह संकट के वक्त में एक दोस्त (भूटान) के साथ खड़ा है. इससे एशियाई देशों के साथ भारत का सहयोग मजबूत हुआ है. खास तौर पर दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशिया में भारत की स्थिति मजबूत हुई है.
बता दें कि सिक्किम सेक्टर में चीन, भारत और भूटान के ट्राइजंक्शन पर स्थित डोकलाम इलाके में दो एशियाई महाशक्तियों के बीच तनातनी पर महाद्वीप के दूसरे देशों की भी नजरें थीं. खास तौर पर उन देशों की, जिनका क्षेत्रीय या समुद्री सीमा को लेकर चीन के साथ विवाद है. चीन के विदेश नीति के एक जानकार का मानना है कि इस टकराव से यही मेसेज निकला है कि चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षा को रोका जाना मुमकिन है.
डोकलाम पर जारी तनाव के दौरान जापान ने भारत का खुलकर साथ दिया था. वहीं, वियतनाम और दूसरे दक्षिणी पूर्वी एशियाई देश बेहद नजदीक से हालात पर नजर रखे हुए थे. ये वही देश हैं, जिनसे चीन का टकराव होता रहा है. भारत के रुख से उत्साहित चीन के ये पड़ोसी मुल्क अब क्षेत्रीय विवादों के वक्त उसकी ज्यादती का मजबूती से विरोध करेंगे. वहीं, आर्थिक ताकत के सहारे छोटे देशों पर प्रभाव जमाने में जुटे चीन की एकतरफा पहल पर भी लगाम लगेगी.
डोकलाम में टकराव के दौरान भारत अपने इस रुख पर कायम रहा कि विवादित इलाके में पूर्व की स्थिति बनी होनी चाहिए. अब दुनिया के देशों के बीच भारत एक उभरती ताकत के तौर पर बेहतर छवि बनेगी. हालांकि, यह मान लेना सही नहीं है कि चीन के साथ आखिरी टकराव डोकलाम में हुआ. जानकार मानते हैं कि पड़ोसी मुल्क दोबारा से वैसा ही सब कुछ शुरू कर सकता है. भारत ने डोकलाम के नजदीक के इलाकों में चौकसी जारी रखी है. भविष्य में चीन न केवल डोकलाम, बल्कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर कहीं भी दोबारा से टकराव मोल ले सकता है.