जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । ओडिशा से आए सिर से जुड़े दो बच्चों जगन्नाथ और बलराम को अलग करने के लिए एम्स में 40 डॉक्टरों की एक टीम कई चरणों में ऑपरेशन कर रही है. एम्स के इतिहास में इस तरह का यह पहला ऑपरेशन है जो कि तकनीकी आधार पर काफ़ी जटिल है.
हालांकि पहले चरण के ऑपरेशन में सफ़लता हासिल हुई है. एम्स में पेडियाट्रिक न्यूरोसर्जन डॉक्टर दीपक गुप्ता ने इस ऑपरेशन के बारे में मीडिया से बात की है. उन्होंने कहा, “इन बच्चों को सिर से अलग करने के लिए कई चरण में ऑपरेशन होंगे और ये इन चरणों में पहला चरण था. एम्स में पहली बार सिर से जुड़े जुड़वा बच्चों पर इस बाईपास तकनीक को इस्तेमाल किया गया है. क्रेनिओपेगस एक बेहद दुर्लभ बीमारी है. इस ऑपरेशन की योजना कुछ इस तरह बनाई गई थी कि दोनों बच्चे कम से कम प्रभाव के साथ बच सकें.”
डॉक्टर दीपक गुप्ता समेत 40 डॉक्टरों की टीम एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉक्टर ए.के. महापात्रा के नेतृत्व में कई स्तरों पर काम कर रहे हैं. डॉक्टर महापात्रा ने बताया है, “सर्जरी में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई है. हालांकि, दोनों बच्चे अभी भी सिर से जुड़े हुए हैं, लेकिन उनके दिमाग का महत्वपूर्ण हिस्सा अलग हो चुका है और उनमें नसों का एक नया बाईपास चैनल बना दिया गया है.”
लेकिन इस सबके बावजूद आईसीयू वॉर्ड में मौजूद जगन्नाथ और बलराम की मां बस अपने बच्चों के सफ़लतापूर्वक अलग होने की दुआ कर रही हैं.
लेकिन ओडिशा से आए हुए इन बच्चों के मां-बाप पुष्पांजलि कंहरा और भुइया कंहरा अभी भी इस डर में जी रहे हैं कि उनके बच्चों को सिर से अलग करने वाले आगामी ऑपरेशन सफ़ल होंगे या नहीं.
दो साल चार महीने के जगन्नाथ और बलराम के पिता भुइया कंहरा कहते हैं, “हमने तो बच्चों को ठीक देखने के लिए अपना सब कुछ लगा दिया है. शुरुआत में जब हम एम्स आए तो हमें काफ़ी डर लग रहा था. लेकिन अब जब पहला ऑपरेशन सफ़ल हुआ है तो हम कुछ-कुछ आश्वस्त हुए हैं. लेकिन अभी भी दिल में एक डर समाया हुआ है. डॉक्टर साहब ने कहा है कि ऑपरेशन ठीक हुआ है और अब चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन फ़िर भी एक डर में तो जी ही रहे हैं हम.”
भुइया कंहरा और उनकी पत्नी पुष्पांजलि कंहरा ओडिशा के कंधमाल ज़िले के रहने वाले हैं. पेशे से किसान कंहार परिवार ने अपने बच्चों का शुरू में कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने की कोशिश की. लेकिन जब ये कोशिशें सफ़ल नहीं हुईं तो भुइया कंहार अपने बच्चों को लेकर वापस अपने गांव चले गए.
भुइया कंहार बताते हैं, “मैं पेशे से किसान हूं. जब मैं अपने बच्चों को लेकर कटक पहुंचा तो डॉक्टरों ने हमें कहा कि कुछ नहीं हो सकता. ये सुनकर तो हमारी उम्मीद ही टूट गई. हमने अपना सब कुछ लगा दिया. लेकिन कुछ नहीं हो रहा था. फ़िर थक-हारकर हम अपने बच्चों को लेकर वापस अपने गांव आ गए.”
कटक के अपने गांव मिलिपाडा पहुंचे भुइया कंहार अपने बच्चों के ठीक होने की पूरी उम्मीद खो चुके थे, लेकिन फ़िर एक मीडिया रिपोर्ट में इन बच्चों का ज़िक्र हुआ. इसके बाद ज़िला प्रशासन ने ज़रूरी कदम उठाकर बच्चों को दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में बच्चों का इलाज कराने के लिए ज़रूरी बंदोबस्त किया.
भुइया ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, “हम उम्मीद खो चुके थे. पूरी तरह निराश थे. लेकिन जब मीडिया में रिपोर्ट आई तो राज्य सरकार और ज़िला प्रशासन ने हमारी मदद की. राज्य सरकार ने हमारे बच्चों के इलाज के लिए एक करोड़ रुपये की राशि भी जारी की है. अब हम एम्स में हैं. अगले महीने अमरीका से एक सर्जन आने वाले हैं. अब हमारी उम्मीद जगी है कि हमारे बच्चे ठीक हो जाएंगे.”