जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : बिहार कांग्रेस नेताओं को आरजेडी का साथ रास नहीं आ रहा है जिसके कारण पार्टी टूट के कगार पर है. माना जा रहा है कि 27 में से 14 विधायक नीतीश कुमार के साथ जाने के लिए उतावले हैं.
बिहार कांग्रेस में अंदरखाने उबल रहे नेताओं को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तलब किया. बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी और विधानमंडल दल के नेता सदानंद को कांग्रेस आलाकमान ने तलब किया था.
बिहार में बगावत के सुर तीखे होते देख कांग्रेस आलाकमान हरकत में आई, सदानंद और अशोक चौधरी को तलब किया गया. सूत्रों की मानें तो दोनों नेताओं को कड़ी फटकार लगाई गई है और कांग्रेस के कुनबे को साथ रखने की हिदायत दी गई है. यही वजह है कि सोनिया गांधी के आवास से बाहर निकलते वक्त अशोक चौधरी और सदानंद मीडिया से बचते हुए नजर आए.
हालांकि, अशोक चौधरी ने मीडिया के सामने ऐसी तमाम अटकलों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘यह सब अफवाह है और हम बिहार के संगठन को कैसे मजबूत करें इसकी चर्चा के लिए यहां पर आए थे. इस बैठक में गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल और सीपी जोशी साहब भी थे. कांग्रेस में टूट की खबर का कोई आधार नहीं है.’
बहरहाल, बिहार कांग्रेस पर मुसीबत के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में नीतीश और मोदी की जोड़ी के सामने 2019 तक कांग्रेस को अपने कुनबे को साथ रखना एक बड़ी चुनौती होगी.
दरअसल, बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद से ही कांग्रेस में उथल-पुथल तेज है. 2015 में कांग्रेस ने 20 साल का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया और महागठबंधन की छत्रछाया में 27 विधायक जीत कर भी आये. फिर क्या था एक बार फिर कांग्रेस के नेता मंत्री बने और सत्ता का सुख भोगने का मौका मिला. लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि गठबंधन की गांठ इस तरह उलझ जाएगी और एक बार फिर से साल 2017 में उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ेगा.
कांग्रेस के अशोक चौधरी, अवधेश सिंह, मदन मोहन झा और अब्दुल जलील मस्तान को नीतीश सरकार में मंत्री का पद दिया गया था. मगर, महागठबंधन टूटने के बाद वो बस विधायक ही रह गए.
वहीं जनाधार बरकरार रखने को लेकर भी चिंता है. कांग्रेस के अधिकतर विधायकों का मानना है कि नीतीश कुमार की साफ सुथरी छवि के चलते उनकी गरिमा विधानसभा क्षेत्र में कायम रहेगी. दरअसल, 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के कई विधायक नीतीश कुमार की पसंद थे और जदयू की मदद से जीते थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद महागठबंधन के दम पर कांग्रेस ने चुनाव लड़े थे जिसमें जीत हासिल करके वह बिहार के सत्ता में लौटी. बिहार में आए सियासी घमासान के बाद कांग्रेस के हाथों से सत्ता का सुख पूरी तरह निकल गया. सूत्रों के अनुसार इसी के चलते पार्टी के करीब 10 विधायक भाजपा के साथ हाथ मिलाना चाहते हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, नीतीश कुमार ने चुनावों में अपने करीबी नेताओं को कांग्रेस पार्टी से टिकट दिलाने का काम भी किया था और उनमें से कुछ को जीत भी मिली थी. अब उन विधायकों को ही जदयू में शामिल करने की लगातार खबरें आ रही है. कहा जा रहा है कि यह सब नीतीश कुमार अपनी पार्टी को पूरी तरह मजबूत करने के लिए कर रहें हैं.
आपको बता दें कि कांग्रेस में टूट की एक वजह राजद का साथ भी माना जा रहा है. कुछ विधायकों को राजद का साथ बहुत ज्यादा खटक रहा है. कुछ विधायकों के अनुसार अगर कांग्रेस पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को लेकर अपना पक्ष स्पष्ट रुप से सामने रख देती तो आज उन्हें सत्ता से बाहर कतई नही होना पड़ता.