जनजीवन ब्यूरो / पटना । आदित्य सचदेवा हत्याकांड में मनोरमा देवी के पुत्र राकेश रंजन यादव उर्फ रॉकी, चचेरे भाई राजीव कुमार उर्फ टेनी यादव, एमएलसी के बॉडीगार्ड राजेश कुमार उर्फ रामलखन प्रसाद को अदालत ने दोषी करार दिया है. लोग अदालत के निर्णय का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. लेकिन अपने जवान बेटे को खोने वाले माता-पिता यह नहीं चाहते हैं कि दोषियों को फांसी की सजा हो.
नौजवान और होनहार बेटे को खोने की पीड़ा क्या होती है, यह मुझसे बेहतर कौन जान सकता है. मेरे कलेजे के टुकड़े को मार दिया गया. मेरा सीना हर दिन फटता है, पर इसका बदला मैं किसी और मां के बेटे को फांसी दिलाकर क्यों लूं. यह कोई सजा नहीं है.
न्यायालय दूसरे तरीके से भी दंड दे सकता है पर रॉकी को सजा-ए-मौत ना दी जाए. जब भगवान कृष्ण अभिमन्यु को वापस नहीं ला सके तो मैं अपने लाडले को कैसे वापस ला सकती हूं? मुझे पता है, मेरा आदित्य अब कभी नहीं आएगा. मेरी आंखें उसे कभी देख नहीं पाएंगी.
मेरे परिवार को आदित्य की मौत का गहरा सदमा लगा है. मैं अब भी अपने लाडले को दूर नहीं समझती. रोज उसकी तस्वीर को सिरहाने रखकर सोती हूं. मेरी तरह आदित्य की बहनें भी राखियां भेजती हैं. अपने भाई की तस्वीर को तिलक लगाती हैं.
आदित्य के हत्यारों को उनके गुनाह की सजा मिलेगी या नहीं, इसको लेकर मेरे, आदित्य के पिता, उसकी दादी अन्य परिजनों के मन में बार-बार सवाल कौंध रहे थे. एक बार भरोसा तब डिगा था जब रॉकी को जमानत मिल गई. लगा था कि सच्चाई की जगह बाहुबल और धनबल की जीत हो जाएगी.
घटना के वक्त आदित्य के साथ रहे उसके चारों दोस्त गवाही के दौरान मुकर गए. क्या करते, वे भी मजबूर थे जबकि उनकी आंखों के सामने यह सब हुआ था. उनके मुकर जाने के बाद मु झे फिर लगा कि शायद न्याय नहीं मिल पाए. लेकिन सरकार, न्यायालय और पुलिस-प्रशासन ने अंतत: सच्चाई को मुकाम पर पहुंचा दिया. न्यायालय के फैसले के बाद मुझे लगा कि मानवता और इंसाफ आज भी जिंदा है.