जनजीवन ब्यूरो / परमाणु बम और हाइड्रोजन बम में क्या अंतर होता है और क्या सबूत हैं कि उत्तर कोरिया के पास ऐसा बम बनाने की तकनीक है? उत्तर कोरिया ने रविवार को अब तक का सबसे बड़ा माना जा रहा परमाणु परीक्षण किया. सरकारी मीडिया ने कहा कि एक हाइड्रोजन बम का सफल परीक्षण किया गया और दावा किया कि यह बम किसी मिसाइल में भी लगाया जा सकता है.
चीन के सीमावर्ती इलाक़े यानबियान के लोगों का कहना है कि उन्हें एक तेज़ भूकंप महसूस हुआ. जापान के वैज्ञानिकों के मुताबिक, धमाके से 6.3 की तीव्रता का भूकंप आया. यह एक दशक के भीतर उत्तर कोरिया का छठा परमाणु परीक्षण था.
हाइड्रोजन बम, एटमी बम के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा ताक़तवर होते हैं. एटमी बम में न्यूक्लियर फ़िशन (यूरेनियम या प्लूटोनियम एटम का और छोटे तत्वों में बंट जाना) का इस्तेमाल होता है, जिससे ज़बरदस्त ऊर्जा निकलती है.
जबकि हाइड्रोजन बम में दो चरणों की प्रक्रिया इस्तेमाल होती है. प्राथमिक तौर पर न्यूक्लियर फ़िशन, जिससे एक और ज़्यादा ताक़तवर ‘फ़्यूज़न’ की शुरुआत होती है और अणु विलीन होकर भारी मात्रा में ऊर्जा रिलीज़ करते हैं. इस बम में दोनों प्रक्रियाएं होती हैं, लेकिन बम की विस्फोटक क्षमता के लिए फ़्यूज़न ही ज़िम्मेदार होता है.
डॉक्टर पैट्रिशिया लुइस लंदन के रॉयल इंस्टीट्यूट में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की शोध निदेशक हैं. उन्होंने बीबीसी रेडियो 4 को बताया कि नया बम उत्तर कोरिया का एक बड़ा क़दम हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार संस्थान ने एक बयान जारी किया है, जिससे तो यही लगता है कि यह दो चरणों वाला थर्मोन्यूक्लियर हथियार है. हाइड्रोजन बम काफ़ी जटिल होता है. हिरोशिमा-नागासाकी पर जो बम गिराया गया था, वह फ़िशन बम था, जिसमें यूरेनियम या प्लूटोनियम का इस्तेमाल होता है. जबकि थर्मोन्यूक्लियर बम या हाइड्रोजन बम में यह प्रक्रिया पहले चरण में इस्तेमाल होती है और इसके बाद एक और चरण होता है.’
उन्होंने कहा, ‘हाइड्रोजन बम के पहले चरण से निकली ऊर्जा दूसरे चरण में लगती है, जिसमें न्यूक्लिर फ्यूज़न के तत्व का इस्तेमाल होता है जो हलके होते हैं, मसलन हाइड्रोजन, हीलियम या लिथियम के आइसोटोप. इससे कहीं ज़्यादा बड़ा धमाका होता है.’
डॉक्टर लुइस के मुताबिक, उत्तर कोरिया का नया हथियार विकसित करना बड़ी बात है. उनके मुताबिक, ‘इसका ये भी मतलब है कि कुछ तत्व हलके होते हैं तो आप धमाके को चाहें तो आसानी से छोटा भी रख सकते हैं. इसकी विस्फोटक क्षमता ज़्यादा होती है और इसे बनाने के लिए उससे कहीं उन्नत तकनीक की ज़रूरत है जो 1940 के दशक में इस्तेमाल की गई थी.’
इस बात के क्या सबूत हैं कि उत्तर कोरिया ने इस स्तर की तकनीक हासिल कर ली है? डॉ. लुइस ने बीबीसी को बताया, ‘यह कहीं ज़्यादा बड़ा धमाका था, इससे इस दावे को मजबूती मिलती है.’ हालांकि उनके मुताबिक, कुछ ऐसी बातें भी हैं जो इशारा करती हैं कि यह हाइड्रोजन बम नहीं भी हो सकता है.
वह कहती हैं, ‘यह भी संभव है कि यह कोई बूस्टेड फ़िशन डिवाइस हो. यानी फ़िशन डिवाइस जिसे हवा देने के लिए थोड़ा बहुत फ़्यूज़न मैटीरियल भी डाला गया हो. ऐसा है तो यह हाइड्रोजन बम नहीं था.’
‘हालांकि ऐसा हुआ तब भी यह दो चरण की प्रक्रिया वाला वाला बम है और इस लिहाज़ से एक बड़ा कदम है.’ लुइस के मुताबिक, रेडियोएक्टिव अवशेष और रेडियो न्यूक्लियाइड की जांच के बिना इस बारे में पुख़्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा, ‘अगर आप नोबल गैसों में इस्तेमाल हुए रेडियो न्यूक्लियाइड जमा कर सकें- जैसी कि कोशिश की जा रही है- और यह मौसम और इस पर निर्भर करता है कि परीक्षण से कितना तत्व लीक हुआ. तब आप इसकी जांच कर सकते हैं कि यह दो चरण वाला डिवाइस था या नहीं. ‘