कुमारेंद्र / नई दिल्ली । दिल्ली के जंतर-मंतर पर लुंगी, कुर्ते, पायजामे में जमा हो रहे, पतले-दुबले सांवले लोगों में से एक हैं वो – डबडबाई आंखें, जैसे आंसू अब छलक जाएंगे! हालांकि ‘मुसलमानों पर फ़ौज-बौद्धों के ज़ुल्मों से जान बचाकर भागे उन्हें दो साल बीतने को है’ लेकिन ग़म और ख़ौफ़ शायद दिल में इतने गहरे बैठे हैं कि वो अपना नाम हमें बताने को तैयार नहीं होते. कहते हैं, “हमारे गांव पर हमला हुआ. बच्चों तक को नहीं छोड़ा. औरतों के जिस्म के हिस्सों को काट डाल रहे थे. उसके वीडियो बना रहे थे. हम किसी तरह जान बचाकर वहां से भागे.”
अपने कंधे पर पड़े चेक गमछे को वो हाथ लगाते हैं, क्या गिरने को तैयार आंसुओं को पोंछने के लिए? लेकिन फिर रुक जाते हैं और आगे बातें करने लगते हैं, “हम किसी तरह से जान बचाकर वहां से निकले और बांग्लादेश पहुंचे.”
बांग्लादेश से वो भारत आ गए और आजकल दिल्ली के जामिया इलाक़े में रहते हैं. जहां रोहिंग्या मुसलमानों की झुग्गी-बस्ती है. यहां दिहाड़ी मज़दूरी मिल जाये तो शुक्र है वरना….
म्यांमार के रखाइन सूबे में पिछले कुछ सालों से लगातार जारी हमलों से जान बचाकर कम से कम दो लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश, मलेशिया, थाईलैंड और भारत जैसे मुल्कों में पहुंचे हैं. इनमें से क़रीब 16,000 के पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था के कार्ड भी हैं जो उन्हें रिफ़्यूजी के तौर पर भारत में रहने की इजाज़त देते हैं. लेकिन भारत के गृह राज्य मंत्री किरण रिजूजू ने कहा है कि देश में मौजूद 40,000 रोहिंग्या को वापस भेजा जाएगा.
इस मामले पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई भी जारी है लेकिन ज़ाहिर है रोहिंग्या शरणार्थी वापस भेजे जाने की बात सुनकर परेशान हैं और जंतर-मंतर पर जमा होकर उन्होंने अपील की है कि उन्हें तब तक वापस न भेजा जाए जब तक हालात बेहतर न हों.
ये पूछने पर कि अगर भारत फिर भी उन्हें वापिस भेजता है तो? डबडबाती आंखें अब छलक जाती हैं और जवाब आता है, “हम पूरा परिवार के साथ समंदर में समा जाएगा…”