अमलेंदु भूषण खां/ नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के पीएम शिंजो एबी की अहमदाबाद में हो रही मुलाकात कई मायनों में अहम होगी। यह मुलाकात मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाने से कहीं ज्यादा अहम है। इस दौरान जापान और भारत के बीच कई मुद्दों पर न सिर्फ चर्चा होगी बल्कि रक्षा से लेकर कूटनीतिक फैसले लिए जा सकते हैं। कुछ मुद्दों पर तो बातचीत अंतिम दौर में है। जापान ने डोकलाम के मुद्दे पर जिस तरह से भारत का साथ दिया है, इस लिहाज से भी यह मुलाकात काफी अहम है। सबसे खास बात यह है कि उनके इस दौरे को दोनों देशों की बढ़ती नजदीकियों के बीच बेहद खास माना जा रहा है। भारत के लिए निकलते समय एबी ने कहा कि दोनों देश एशिया के प्रमुख लोकतंत्र और वैश्विक शक्तियां हैं। उन्होंने कहा कि मोदी एक प्रभावशाली नेता हैं जिनमें चीजों को आगे बढ़ाने की क्षमता है। दोनों देशों के प्रमुख गुजरात में भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। इसके साथ ही, भारत-जापान के शीर्ष स्तरीय व्यापारिक मंडल वार्ता होगी।
सबसे पहले तो इससे यह पता चलता है कि कूटनीतिक मामलों में राज्यों की भागीदारी बढ़ रही है। पीएम मोदी ने जिन देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय रिश्तों को बिल्कुल नई परिभाषा दी है, उसमें जापान भी शामिल है। जापान के साथ भारत के रिश्ते किस तरह से बदले हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि पिछले तीन वर्षों में मोदी और शिंजो एबी की दस बार मुलाकात हो चुकी है। 11वीं दफा इन दोनों की आधिकारिक तौर पर मुलाकात गुरुवार को अहमदाबाद में होगी। विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया) प्रणय वर्मा का कहना है कि दोनों प्रधानमंत्रियों की मुलाकात भारत व जापान के भावी रिश्तों की नींव रखेंगे।
इस बात से जानकार भी इंकार नहीं कर रहे हैं कि भारत और जापान के बीच बढ़ते रिश्ते कई मायनों में अच्छे हैं। ऑब्जॉर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने बताया कि दोनों नेताओं ने आपसी संबंधों को और अधिक मजबूत करने में जो जोश दिखाया है, वह काफी काबिल-ए-तारीफ है। दोनों के बीच होने वाली इस मुलाकात के कई अंतरराष्ट्रीय मायने भी हैं। भारत और जापान दोनों ही एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर को लेकर काफी संजीदा हैं, जो चीन के ओबीओआर का जवाब है। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सैन्य समझौते भी हो सकते हैं। इस बार यह दोनों नेता अहमदाबाद में चौथे समिट में मिलने वाले हैं।
प्रोफेसर पंत मानते हैं कि इन दोनों देशों के संबंधों का असर वैश्विक स्तर पर दिखाई देगा। वह मानते हैं कि दोनों देशों के बीच मधुर संबंधों से चीन जरूर नाखुश हो सकता है। इसकी वजह यह है कि जापान, भारत और अमेरिका के साथ सैन्य अभ्यास ‘मालाबार अभ्यास’ में भागीदार रहा है। इसके खिलाफ चीन काफी समय से अपनी आवाज बुलंद करता रहा है। इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि चीन का जो रुख भारत के साथ रहा है कमोबेश ऐसा ही उसका सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ रहा है। वहीं एशिया में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को केवल और केवल भारत व जापान ही रोक सकते हैं। चीन इस बात को भलीभांति जानता है। वहीं दूसरी तरफ जापान से भारत के बेहतर संबंध उन देशों के लिए अच्छा संकेत हैं। इनमें वियतनाम और फिलीपींस जैसे वह छोटे देश हैं जिन्हें अक्संर चीन अपनी ताकत के दम पर धमकाता रहता है। भारत और जापान दोनों ही एशिया की बड़ी शक्ति होने के साथ-साथ पूरे विश्व मंच पर अहम भूमिका में हैं।
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भारत-जापान की इस 12वीं सालाना बैठक के एजेंडे में मुख्य तौर पर रणनीति से जुड़े मसले सबसे ऊपर होंगे। हाल ही में चीन के साथ डोकलाम विवाद पर जापान ने जिस तरह से मुखर तौर पर भारत का समर्थन किया है, उसके बाद यह बैठक और अहम हो जाती है। दोनों देशों के बीच हथियार निर्माण में सहयोग पर पिछले कुछ वर्षों से बातचीत चल रही है। जानकारों का कहना है कि अब यह बातचीत अंतिम दौर में पहुंच चुकी है। मोदी और शिंजो एबी इसे अमलीजामा पहनाने का रोडमैप दे सकते हैं।
इसके अलावा इनके बीच सैन्य क्षेत्र में सहयोग बढ़ा है, लेकिन दोनों देश मान रहे हैं कि अभी संभावनाएं काफी ज्यादा हैं। खास तौर पर सैन्य अभ्यास के क्षेत्र में। हाल ही में अरुण जेटली की जापान यात्रा के दौरान यह सहमति बनी है कि मालाबार सैन्य अभ्यास का विस्तार किया जाएगा। भारत व अमेरिका के बीच होने वाले इस नौसैनिक अभ्यास में जापान भी शामिल हो रहा है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि भारत व जापान मिलकर तीसरे देश में बुनियादी ढांचे के विकास पर पहले ही तैयार हो चुके हैं। अब इन्हें यह तय करना है कि किन-किन देशों में किन परियोजनाओं को शुरू किया जाए।
एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट से ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा मिलेगा। इससे भारत और जापान दोनों देशों की कंपनियों के बीच अनेक संयुक्त उद्यम स्थापित होंगे, जो बुलेट ट्रेन के लिए इंजन, बोगियों तथा कलपुर्जों आदि का निर्माण करेंगे। इससे भारत में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी आने के साथ-साथ हजारों-लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा।
मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना से भारत के निर्माण क्षेत्र को नई ताकत मिलेगी। इसमें नया निवेश आएगा। इस परियोजना निर्माण के दौरान ही लगभग 20 हजार निर्माण मजदूरों को रोजगार मिलने की संभावना है। इसके लिए इन मजदूरों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। बुलेट ट्रेन का पूरा ट्रैक गिट्टी रहित होगा। लिहाजा मजदूरों को गिट्टी रहित ट्रैक के निर्माण का अनुभव हासिल होगा। यह आगे चलकर अन्य रेल परियोजनाओं में काम आएगा।
परियोजना के तहत वडोदरा में एक हाईस्पीड रेल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की स्थापना भी होनी है। यहां रेल कर्मियों को सिमुलेटर के जरिये बुलेट ट्रेन चलाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। बता दें कि जापान में सिमुलेटर पर ही यह ट्रेनिंग दी जाती है। यह इंस्टीट्यूट 2020 तक काम करने लगेगा। अगले तीन वर्षों में यहां तकरीबन 4000 रेलकर्मी बुलेट ट्रेन संचालन का प्रशिक्षण हासिल करेंगे। आगे चलकर देश में जितनी भी बुलेट ट्रेन परियोजनाएं स्थापित होंगी, सभी के लिए यहीं पर ऑपरेशन स्टाफ तैयार होगा।
भारतीय रेलवे के 300 युवा अधिकारी अभी जापान में बुलेट ट्रेन का प्रशिक्षण ले रहे हैं। दीर्घकालिक योजना को ध्यान में रखते हुए जापान सरकार ने हर साल 20 भारतीय अधिकारियों को जापानी विश्वविद्यालयों में परास्नातक कोर्स प्रदान करने का प्रस्ताव दिया है। प्रशिक्षण कार्यक्रम का पूरा खर्च जापान सरकार उठा रही है।
जापानी शिंकांशेन तकनीक को उसकी विश्वसनीयता व सुरक्षा के लिए जाना जाता है। जापान में पचास वर्षों में एक भी ट्रेन दुर्घटना न होना इसका प्रमाण है। यही नहीं, समय पालन में भी इसका कोई जवाब नहीं है। जापानी ट्रेनें कभी एक मिनट से ज्यादा लेट नहीं होतीं। इसका मतलब कि भारत में बुलेट ट्रेन भी पूर्णतया सुरक्षित और समय की पाबंद होगी। आपदा पूर्वानुमान तकनीक के साथ काम करने के कारण किसी प्राकृतिक आपदा के वक्त भी ये ट्रेन दुर्घटना का शिकार नहीं होगी।
शिंकांशेन तकनीक के भारत में आने से भविष्य में कई बुलेट ट्रेन परियोजनाएं शुरू होने की संभावना है। इन सभी में 7-8 घंटे का ट्रेन का सफर दो घंटे में पूरा होने की संभावना है। मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के साथ सरकार ने दिल्ली-चंडीगढ़, दिल्ली-कोलकाता, दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-नागपुर, मुंबई-चेन्नई और मुंबई-नागपुर रूटों पर भी बुलेट ट्रेन चलाने की रूपरेखा तैयार की है। मुंबई-अहमदाबाद प्रोजेक्ट का कार्यान्वयन करने वाला नेशनल हाईस्पीड रेल कॉरपोरेशन इन सभी पर काम कर रहा है।
बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को लेकर रेल मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि यह ट्रेन भारतीय रेलवे में वह परिवर्तन लेकर आएगी, जो मारुति कार ऑटोमोबाइल क्षेत्र में लेकर आई थी। इस कदम से रेलवे का कायाकल्प हो जाएगा। उनका कहना है कि मारुति कार आने के बाद तीस साल में भारत का ऑटोमोबाइल क्षेत्र एकदम बदल गया। इसी तरह का परिवर्तन बुलेट ट्रेन आने के बाद रेलवे में दिखाई देगा। मारुति से शुरुआत होने के बाद अब भारत की सड़कों पर एक से बढ़कर एक आधुनिक कारें दिखाई देती हैं। परंतु रेलवे में ऐसा नहीं हुआ। वह आज भी पुरानी तकनीक पर चल रही है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने आते ही देश में बुलेट ट्रेन लाने का निश्चय किया, ताकि रेलवे में भी नई से नई तकनीक आ सके। बुलेट ट्रेन आने से रेलवे में बड़े परिवर्तन देखने को मिलेंगे। इससे आधुनिक तकनीक आने के साथ अर्थव्यवस्था को लाभ के साथ रोजगार के लाखों नए अवसर पैदा होंगे।
रेल मंत्री ने कहा कि एक बार बुलेट ट्रेन आने से रेलवे में एक नया नजरिया पैदा होगा। भारत बुलेट ट्रेन की लागत कम कर विदेशों में उसका निर्यात कर सकता है। इससे अन्य ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने तथा उन्हें सुरक्षित चलाने की प्रेरणा भी मिलेगी, क्योंकि आज तक एक भी दुर्घटना न होने के कारण जापानी शिंकांशेन बुलेट ट्रेन तकनीक विश्व में सर्वाधिक सुरक्षित मानी जाती है। गोयल के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी के प्रभाव के कारण भारत को बुलेट ट्रेन के लिए 0.1 फीसद की नगण्य ब्याज दर पर कर्ज मिला है। यह अनुदान जैसा ही है। 50 सालों में शायद ही किसी परियोजना के लिए इतनी सस्ती दर पर ऋण मिला होगा। इस कारण बुलेट ट्रेन की लागत काफी कम होगी। आगे चलकर जब कई बुलेट ट्रेन परियोजनाएं बनेंगी तो लागत और घटेगी।
गोयल ने कहा कि परियोजना को 2023 में पूरा होना है। भारतीय इंजीनियरों की कार्यकुशलता को देखते हुए मुझे भरोसा है कि हम इसे 2022 में ही पूरा करने में कामयाब हों जाएंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि बुलेट ट्रेन का किराया सबके वहन करने योग्य होगा। इस परियोजना की कुल लागत 1.08 लाख करोड़ रुपये है। जापान 88 हजार करोड़ रुपये का ऋण दे रहा है। बाकी धन भारत सरकार खर्च करेगी। इस कर्ज की वापसी 15 वर्ष बाद से करनी होगी।
चीन के साथ भारत के डोकलाम विवाद के दौरान जापान ऐसा पहला देश जिसने खुलकर भारत का समर्थन किया था। उसके मुकाबले बाकी देशों ने भारत के समर्थन में भले ही बोला हो लेकिन उनकी आवाज उतनी मुखर नहीं थी। ऐसे में डोकलाम विवाद खत्म होने के बाद जिस तरह जापान के प्रधानमंत्री भारत दौरे पर है उसे ना सिर्फ चीन बल्कि यूरोप और अमेरिका समेत बाकी दुनिया के देशों की भी नजर होगी।
बुलेट ट्रेन भारत में ट्रेन को रफ्तार देने की एक नई परंपरा की शुरुआत होगी। आज बुलेट ट्रेन जैसी बेहद तेज़ रफ्तार से चलनेवाली ट्रेनों की बेहद जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में जिस तरह से जापान ने सामने आकर बुलेट ट्रेन के लिए भारत की मदद की है ऐसे में बुलेट ट्रेन का चर्चा में होना स्वाभाविक है।
किसी भी देश के विकास में वहां की यातायात का अहम स्थान है। बुलेट ट्रेन की शुरूआत और जापान के प्रधानमंत्री का यहां पर आना इससे वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ेगी। बुलेट ट्रेन जहां एक तरफ देश में रोजगार के अवसर पैदा होंगे तो वहीं दूसरी तरफ देश की आधारभूत संरचनाएं भी मजबूत होगी।