अमलेंदु भूषण खां / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को सत्ता में आए तीन साल से ज्यादा हो चुके हैं और देश की तरक्की के नाम पर सिर्फ नोटबंदी और जीएसटी ही सामने आए हैं। पेट्रोल की कीमतों में आग लगी हुई है और आम जनता इसी पेट्रोल का उपयोग अब सत्ता में आग लगाने का उपयोग किया जा सकता है। मोदी को साल 2014 में जो युवा भारी मत देकर सत्ता में काबिज कराया था अब वही युवा मोदी नीति से परेशान दिख रहे हैं।
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ दावा करते हैं कि 2014 में युवाओं का वोट एकतरफा भाजपा के पक्ष में गया था. अब यह उतना भरोसे वाला वोट बैंक नहीं रहा, जितना हुआ करता था.
असम में छात्र संघ का चुनाव हो या राजस्थान या फिर पंजाव विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव सभी जगहों पर कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई ने ही परचम लहराया है। बात यही तक नही रुकती है. दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी को एनएसयूआई ने हराकर देश की राजनीति के बहाव का संकेत भी दे दिया है।
आलम यह है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी का कोई नेता खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। लेकिन इन नेताओं को लग रहा है कि इस हार की वजह बीजेपी के भीतर आपसी खींचतान है। जो पिछले कुछ महीनों से लगातार चल रही थी। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली नगर निगम चुनाव के बाद से ही पार्टी के भीतर गुटबाजी हावी थी। जिसका खामियाजा पार्टी को इन चुनावों में भुगतना पड़ा है।
माना जा रहा है कि डूसू के इन चुनावी नतीजों को कांग्रेस इस तरह से पेश करेगी कि युवा वर्ग का नरेन्द्र मोदी सरकार से मोहभंग हो गया है । बीजेपी भी मान रही है कि इसका असर आने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ सकती है। दरअसल, दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव को हमेशा से अहमियत दी जाती रही है। जब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी, उस वक्त लगातार एनएसयूआई जीत रही थी, लेकिन विधानसभा चुनाव से ऐन पहले हुए डूसू चुनाव में एनएसयूआई को करारी हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त यह माना गया था कि डूसू की हार ने संकेत दिया है कि आने वाले चुनाव में कांग्रेस के लिए जीतना मुश्किल हो जाएगा और वही हुआ।
वित्त मंत्री अरुण जेटली भी दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में अपनी सक्रिय भूमिका निभा चुके है। लिहाजा बीजेपी के लिए यह एक करारा झटका माना जा रहा है।
युवाओं के सामने सबसे अहम सवाल रोजगार का है। इस मोर्चे पर मोदी सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है। नोटबंदी के बाद लगभग 20 लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं और आने वाले समय में बेरोजगारों की तादाद में भारी बढ़ोत्तरी होने की संभावना है।
सबसे हास्यास्पद बात यह है कि मोदी ने साल 2014 के आम चुनाव के समय एक करो़ड़ युवाओं को प्रत्येक साल रोजगार देने का वादा किया था। लेकिन साढ़े तीन साल में मात्र एक लाख लोगों को ही रोजगार मोदी सरकार दे पाई है। निजी क्षेत्रों को तो छोडि़ए केंद्र सरकार के सभी दफ्तरों में लगभग एक करोड़ पद खाली पड़े हैं लेकिन मोदी सरकार उन पदों को भरने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है।