जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । केंद्र सरकार का तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम विवादों से घिरा हुा है। एक तरफ जहां तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध लगा रही है वहीं दूसरी ओर मुंह के कैंसर से पीड़ीतों के इलाज के लिए धन उपलब्ध करा रही है। जबकि कैंसर मरीजों में मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या आधी है। खासबात यह है कि जिस वर्ग के मरीजों को सरकार धन उपलब्ध करा रही है वही वर्ग गुटके व तंबाकू उत्पादों का सेवन करता है।
मुंह के कैंसर के लिए धूम्रपान और गुटके को माना जाता है। केंद्र सरकार इन मौतों को रोकने के लिए गुटके की बिक्री पर प्रतिबंध तो लगाई है लेकिन उत्पादों पर नहीं। सरकार तर्क देती है कि उत्पादों पर प्रतिबंध से लाखों लोगों के सामने रोजगार की समस्या खड़ी हो जाएगी। जबकि हकीकत यह है कि गुटके कंपनियां राजनीतिक नेताओं को लाभ उपलब्ध करा रही है।
टाटा मेमोरियल हास्पिटल मुंबई के आंकड़े पर गौड़ करें तो सात लाख कैंसर के नए मरीज प्रत्येक साल सामने आ रहे हैं । इसमें तीन लाख कैंसर मरीज तंबाकू से संबंधित होते हैं। हास्पिटल के वरिष्ठ डॅाक्टर पंकज चतुर्वेदी की माने तो ज्यादातर मरीज गरीब तबके के होते हैं जिनके पास इलाज के पैसे तक नहीं होते हैं।
केंद्र सरकार कैंसर मरीजों के इलाज के लिए 11वीं योजना में 2400 करोड़ उपलब्ध कराई है। योजना के तहत सरकार गरीब तबके के प्रत्येक कैंसर मरीजों को एक लाख रुपए उपलब्ध कराती है। यानि एक तरफ गुटके के उत्पादन को बढ़ावा और दूसरी तरफ सहायता राशि की उपलब्धता । मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार सहायता राशि पाने के लिए मरीजों की लंबी लाइन लगी हुई है।