जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : मेक इन इंडिया के तहत भारत के रक्षा सेक्टर में प्रॉडक्शन यूनिट्स बिठाने की तैयारी में लगी अमेरिकी कंपनियां तकनीक पर अपना नियंत्रण चाहती हैं। अरबों डॉलर के सौदे हासिल करने की चाह रखने वाली अमेरिकी रक्षा कंपनियां भारत सरकार से इस बारे में मजबूत आश्वासन चाहती हैं। इसके अलावा ये कंपनियां भारतीय कंपनियों की साझेदारी में तैयार हुए रक्षा सामानों में गड़बड़ी की जिम्मेदारी लेने से भी इनकार कर रही हैं। अब बड़ा सवाल है कि बिना तकनीक के ट्रांसफर के रक्षा उत्पादों को लेकर भारत की आयात निर्भरता कैसे खत्म होगी और मेक इन इंडिया का लक्ष्य कैसे पूरा होगा।
तकनीक पर स्वामित्व को लेकर आश्वासन के लिए एक बिजनस लॉबी ग्रुप ने भारत के रक्षा मंत्री को पत्र भी लिखा है। तकनीक पर स्वामित्व के अलावा ये कंपनियां यहां के स्थानीय पार्टनर्स के साथ मिलकर तैयार किए गए प्रॉडक्ट्स में किसी गड़बड़ी की जिम्मेदारी लेने को भी तैयार नहीं हैं। गौरतलब है कि पीएम मोदी के मेक इन इंडिया प्लान के तहत भारत में मिलिटरी इंडस्ट्रियल बेस बनाने की तैयारी चल रही है। इसके तहत विदेशी कंपनियों को भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर यहीं प्रॉडक्शन यूनिट्स की स्थापना करनी है।
लॉकहीड मार्टिन और बोइंग, दोनों ही कंपनियां भारतीय सेना को लड़ाकू विमानों की आपूर्ति करने के लिए बोली लगा रही हैं। सोवियत युग के मिग विमानों को हटाने की तैयारी में जुटी भारतीय सेना लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रही है। भारत द्वारा घरेलू जेट बनाने का प्रयास भी लगातार देरी की वजह से तीन दशकों से लटका हुआ है।
मेक इन इंडिया ड्राइव के तहत लॉकहीड मार्टिन ने एफ-16 विमानों की प्रॉडक्शन यूनिट को टेक्सस से हटाकर भारत में लाने का ऑफर दिया है। हालांकि इसके लिए कंपनी की एक शर्त है। लॉकहीड के ऑफर के मुताबिक अगर भारत कम से कम 100 सिंगल इंजन फाइटर जेट बनाने का ऑर्डर देता है तो वह अपना दुनिया का एकमात्र कारखाना यहीं बना देगी।
इस अमेरिकी कंपनी ने भारतीय रक्षा मंत्रालय के नए स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप मॉडल के तहत टाटा अडवांस्ड सिस्टम को अपना लोकल पार्टनर चुना है। इस नए मॉडल के तहत विदेशी मूल उपकरण निर्माता (OEMs) किसी भारतीय प्राइवेट फर्म के साथ जॉइंट वेंचर में 49 फीसदी तक का शेयर रख सकता है। यानी इस मॉडल के तहत किसी भी जॉइंट वेंचर में 51 फीसदी या उससे अधिक शेयर भारतीय निजी फर्म के पास ही रहेंगे।
यूएस-इंडिया बिजनस काउंसिल (USIBC) ने पिछले महीने भारतीय रक्षा मंत्री को एक चिट्ठी लिखी है। इसमें भारत की तरफ से इसका आश्वासन मांगा गया है कि जॉइंट वेंचर में जूनियर पार्टनर होने के बावजूद अमेरिकी कंपनियों को संवेदनशील प्रौद्योगिकी पर अपना नियंत्रण रखने दिया जाएगा। 400 कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली बिजनस लॉबी ने अपने खत में लिखा है कि सार्वजनिक और निजी रक्षा साझेदारियों की तलाश में जुटी सभी कंपनियों के लिए स्वामित्व प्रौद्योगिकियों पर नियंत्रण एक महत्वपूर्ण मसला है। बिजनस लॉबी ने इंगित किया है कि पॉलिसी डॉक्युमेंट में इस बात को स्पष्ट नहीं किया गया है, इसीलिए वे सरकार से आश्वासन चाहते हैं।
क्वॉलिटी के मसले पर भी अमेरिकी फर्मों को ऐतराज
USIBC ने उस नियम का भी विरोध किया है जिसके तहत मिलिटरी को उपलब्ध कराई गई चीजों की क्वॉलिटी के लिए उन्हें भी संयुक्त रूप से जिम्मेदार बनाया गया है। USIBC ने खत में कहा है कि रक्षा मंत्रालय इस बात की पुष्टि करे कि विदेशी कंपनियां अपने नियंत्रण के बाहर के दोषों के लिए उत्तरदायी नहीं होंगी।
फिर तकनीक ट्रांसफर का क्या?
पीएम मोदी के मेक इन इंडिया प्रयासों का मूल लक्ष्य देश में ही इंडस्ट्रियल बेस बनाकर आयात पर से निर्भरता को खत्म करना है। हाल के वर्षों में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक बनकर उभरा है। पिछले रक्षा सौदों में पूरी तरह से तकनीक का ट्रांसफर नहीं होने की वजह से भारतीय रक्षा कारखाने असेंबलिंग यूनिट्स की तरह काम करते रहे हैं। टैंकों और एयरक्राफ्ट का प्रॉडक्शन भी विदेशी निर्माताओं के लाइसेंस के तहत ही किया जाता रहा है।
पीएम मोदी के सलाहकारों ने इसमें बदलाव की सलाह देते हुए तकनीक के ट्रांसफर की बात कही थी ताकि भारत रक्षा जरूरतों के मुताबिक खुद निर्माण में सक्षम हो सके। ऐसे में अगर तकनीक का ट्रांसफर नहीं हुआ तो मेक इन इंडिया का लक्ष्य कैसे पूरा होगा, यह बड़ा सवाल है।
USIBC के डिफेंस और एयरोस्पेस के डायरेक्टर बेंजामिन श्वॉर्ट्ज ने कहा कि भारत की नई नीति अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के बीच साझेदारी स्थापित करने के लिए एक रोडमैप की पेशकश करती है। साथ ही साथ उनका कहना है कि यह कंपनियों के लिए कुछ सवाल भी खड़ा करती है। उन्होंने कहा कि फिलहाल वे उन कंपनियों के नाम बताने की स्थिति में नहीं हैं जिन्होंने भारतीय नीति पर चिंता जताई है। हालांकि उनका कहना है कि कंपनियां कई मामलों में स्पष्टता चाहती हैं जिसमें तकनीक का स्वामित्व भी शामिल है।