जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । शारदीय नवरात्र बृहस्पतिवार यानि 21 सितंबर से शुरू हो रहा है और 30 सितंबर को नवरात्र का समापन होगा। शास्त्रों के अनुसार अश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्रि व्रत व दुर्गा पूजन किया जाता है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा का विधान है।
कलश स्थापना और राहुकाल
नवरात्र के पहले दिन मंगल कामना के लिए कलश स्थापना का विधान है। ऐसी मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना से पूजन सफल होता है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस वर्ष गुरुवार के दिन नवरात्र आरंभ होने के कारण राहुकाल 1 बजकर 30 मिनट से 3 बजे तक रहेगा। इस समय कलश स्थापना जिसे घटस्थापना भी कहते हैं नहीं करना चाहिए। पंचांग में इसके लिए जो शुभ मुहूर्त बताया गया है उसका ध्यान रखना चाहिए।
घट स्थापना शुभ मुहूर्त कब से कब तक
बृहस्पतिवार को सुबह 10.34 बजे तक प्रतिपदा है, इसलिए जो प्रतिपदा तिथि में घटस्थापना करना चाहते हैं, उनके लिए सुबह 6.30 बजे से 8.19 बजे तक का मुहूर्त शुभ है। इसके बाद मंगलकारी मुहूर्त दोपहर 12.07 बजे से 12.55 बजे तक है जो अभिजीत मुहूर्त है।
नवरात्र घट स्थापना विधि
पंडित अभिमन्यू खां और ताराकांत झा के अनुसार, प्रतिपदा तिथि सुबह 10.57 बजे तक ही है। लेकिन देवी कार्य में उदया तिथि ग्राह्य है। इसलिए दिनभर घटस्थापना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को रात्रि 11. 23 बजे तक हस्त नक्षत्र रहेगा। यह नक्षत्र शुभ माना जाता है। अब घट स्थापना की विधि जानिए।
घट स्थापना, सबसे पहले करें ये काम
सबसे पहले ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ मंत्र से खुद को शुद्ध करलें। इसके बाद दाएं हाथ में अक्षत, फूल, और जल लेकर दुर्गा पूजन का संकल्प करें।
ये है घट स्थापना की विधि
माता की मूर्ति या तस्वीर के सामने कलश मिट्टी के ऊपर रखकर हाथ में अक्षत, फूल, और गंगाजल लेकर वरुण देव का आह्वान करें। कलश में सर्वऔषधी एवं पंचरत्न डालें। कलश के नीचे रखी मिट्टी में सप्तधान्य और सप्तमृतिका मिलाएं। आम के पत्ते कलश में डालें। कलश के ऊपर एक पात्र में अनाज भरकर इसके ऊपर एक दीप जलाएं। कलश में पंचपल्लव डालें इसके ऊपर एक पानी वाला नारियल रखें जिस पर लाल रंग का वस्त्र लपिटा हो। अब कलश के नीचे मिट्टी में जौ के दानें फैला दें। इसके बाद देवी का ध्यान करें- खडगं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर:,
शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम। नीलाश्म द्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम, यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम॥
नवरात्र में न होने पाए वास्तु दोष, वरना हो सकता है नुकसान…
नवरात्र में लोग घर की साफ सफाई करके देवी का आह्वान करते हैं। वास्तु की दृष्टि से भी यह जरूरी है कि पूजा से संबंधित सभी वस्तुएं सही स्थान पर रखी जाएं ताकि किसी भी प्रकार के दोष से बचा जा सके। इन बातों का रखें ध्यान
कौन सी दिशा है उचित
वैसे तो भगवान की मौजूदगी हर दिशा में होती है, लेकिन फिर भी देवी-देवताओं का विशेष स्थान होता है। माना जाता है कि मां दुर्गा का वास दक्षिण दिशा में होता है। इसलिए ध्यान रखें कि पूजा करते समय हमारा मुख दक्षिण या पूर्व दिशा में ही रहे।
किस दिशा में रखें कलश
कलश की स्थापना के लिए उत्तर-पूर्व कोना सबसे उपयुक्त माना जाता है। ध्यान रहे कि कलश कहीं से भी खंडित नहीं होना चाहिए। इतना ही नहीं कलश पर रखे जाने वाले नारियल की दिशा भी सही होनी चाहिए। कलश स्थापित किए जाने वाली भूमि अथवा चौकी पर रोली या हल्दी से अष्टदल कमल बनाएं। तत्पश्चात उस पर कलश स्थापित करें।
साफ सफाई का रखें ध्यान
-पूजा से पहले साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। साफ-सुथरे घर में ही देवी का वास होता है। ऐसे में सुख समृद्धि आना भी स्वाभाविक है। मन एकाग्र होकर भक्ति में रम जाता है।
किस दिशा में हो पूजा संबंधी सामान
पूजा से संबंधित सारा सामान दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। नवरात्र में वातावरण को शुद्ध और पवित्र करने के लिए घर में गुग्गुल, लोबान, कपूर, देशी घी आदि के धुएं का प्रयोग करें।
भूलकर भी न करें ये काम
नवरात्र के दिनों में स्वनियंत्रण रखना बहुत आवश्यक है। ऐसे में मास मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें। कोशिश करें नवरात्र के शुरू होने से पहले ही बाल, नाखून आदि कटवा लें।
रामलीलाः भगवान राम के जन्म में उनके जीजा का योगदान
नवरात्र के नौ दिनों में रामचरित मानस पाठ और रामलीला का आयोजन किया जाता है। रामायण में भगवान राम और उनके तीन भाईयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का उल्लेख तो कई जगह मिलता है लेकिन उनकी बहन भी थी, इस बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता। आइए आज जानते हैं भगवान राम के तन्म के इस अनोखे और दिलचस्प प्रसंग के बारे में…
अंगदेश की राजकुमारी बनी भगवान राम की बहन
रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा की तीन रानियां थीं, कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा। राजा दशरथ और कौशल्या की एक बेटी थी, नाम था शांता। एक बार कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी और उनके पति रोमपद अयोध्या आते हैं। राजा रोमपद अंगदेश के राजा थे। उन्हें कोई संतान नहीं थी। शांता को देखकर उनके मन में यह भाव आता है कि काश उनकी भी शांता की ही तरह कोई बेटी होती। इस पर राजा दशरथ उन्हें शांता को गोद लेने को कहते हैं। इस तरह वह अपनी बेटी वचनबद्ध होकर अंगदेश के राजा को सौंप देते हैं। बाद में, शांता का विवाह ऋंग ऋषि से हो जाता है।
ऋषि वशिष्ठ ने दामाद से यज्ञ कराने की दी सलाह
राजा दशरथ और उनकी तीनों रानियां इस बात से चिंतित रहते थे कि उनके कोई पुत्र नहीं है। अपने वंश की चिंता के कारण वे ऋषि वशिष्ठ के पास गए। उन्होंने सलाह दी कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठी यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।
यज्ञ के बाद प्रसाद के रूप में मिली खीर
यह सुनकर राजा दशरथ दामाद ऋंग ऋषि के पास पुत्रेष्ठी यज्ञ करवाने की याचना लेकर जाते हैं। इस यज्ञ के बाद प्रसाद के रूप में खीर मिलती है। इस प्रसाद को रानी कौशल्या रानी कैकई के साथ बांटती हैं। फिर दोनों रानियां अपने हिस्से में से एक-एक हिस्सा रानी सुमित्रा को देती हैं। इस तरह राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म होता है।
कुल्लू में है श्रृंग ऋषि का मंदिर
भारत के कुल्लू में श्रृंग ऋषि का मंदिर है और वहां से 60 किलोमीटर की दूरी पर देवी शांता का मंदिर स्थित है।
माता को करना है प्रसन्न तो पहनें इस रंग के कपड़े
नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन दिनों मां का श्रृंगार भी नौ अलग-अलग रंग के वस्त्रों से किया जाता है। ऐसे में माना जाता है कि भक्त भी प्रत्येक नौ दिन अलग-अलग रंग के कपड़े पहनकर मां की पूजा करें तो माताजी निश्चित ही प्रसन्न होंगी।
पहले दिन
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन के लिए सबसे शुभ रंग पीला माना जाता है। पीला रंग सुख और ऊर्जा का प्रतीक है। हो सके तो इस दिन गाढ़ा पीला रंग कतई न पहनें।
दूसरे दिन
द्वितीया को मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। नवरात्र के दूसरे दिन का रंग होता है हरा। हरा रंग वातावरण की दृष्टि से भी अनुकूल माना जाता है। इस रंग के कपड़े पहनना नवरात्र में काफी शुभ होता है।
तीसरा दिन
तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित होता है। माता के इन शुभ दिनों में तीसरे दिन ग्रे रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। ग्रे कलर के अलावा इस दिन सिल्वर कलर के कपड़े पहनना भी काफी शुभ होता है।
चौथा दिन
नवरात्र का चौथा दिन होता है मां कूष्मांडा का। इस दिन के लिए सबसे उपयोगी रंग है नारंगी। नारंगी रंग रचनात्मकता और उत्सुकता का प्रतीक समझा जाता है।
पांचवां दिन
पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। मां को प्रसन्न करने के लिए पांचवें दिन सफेद रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। सफेद रंग शुद्धता और शांति का प्रतीक समझा जाता है। इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनने से न सिर्फ मानसिक शांति मिलती है बल्कि आपका मन भी प्रसन्न रहता है।
छठां दिन
नवरात्र के छठें दिन मां कात्यायिनी की पूजा होती है। इसलिए इस दिन आप लाल रंग के वस्त्र पहनें तो मां निश्चित ही प्रसन्न होंगी। वैसे भी माना जाता है कि लाल रंग मां को सबसे अधिक प्रिय है। इसके अलावा लाल रंग शक्ति का भी प्रतीक है।
सातवां दिन
सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। सप्तमी के दिन मां को प्रसन्न करने के लिए नीले रंग के कपड़ों को पहनना लाभकारी हो सकता है। यह रंग आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ ही आपके व्यक्तित्व को भी निखारता है।
आठवां दिन
नवरात्र के आठवें दिन को अष्टमी कहा जाता है। अष्टमी को महागौरी की पूजा होती है। इस दिन के लिए सबसे उपयोगी रंग गुलाबी माना जाता है। यह रंग पवित्र प्रेम का द्योतक माना जाता है।
नौंवा दिन
आठ दिन व्रत रखने के बाद नौवें दिन माता को विदा करने का होता है। नवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है। अत: इस दिन के लिए सबसे उपयोगी बैंगनी रंग माना जाता है।
तो इसलिए होती है महिषासुर की पूजा
मां दुर्गा का एक नाम महिषासुरमर्दिनी है क्योंकि इन्होंने तीनों लोको को कष्ट देने वाले असुर महिष का वध करके धर्म की पुर्नस्थापना की थी। इसलिए नवरात्र के दिनों में जनसमुदय मां दुर्गा की पूजा करती है। लेकिन एक समुदाय ऐसा भी है जो नवरात्र के दिनों में दुख और शोक में डूबा रहता है और मां दुर्गा की पूजा नहीं करते हैं। इसका कारण जान आप हैरान हो सकते हैं।
महिषासुर के मरने का दुख मनाते हैं ये लोग
उत्तरी बंगाल के पुरुलिया में एक समुदाय के लोग मां दुर्गा की पूजा करने की बजाय नौ दिन महिषासुर के मरने का दुख मनाते हैं। ये लोग माता जी को नहीं बल्कि महिषासुर को अपना भगवान मानते हैं।
दुर्गा मां ने किया था संहार
महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का भक्त था और ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता।
महिषासुर स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। सारे देवताओं ने मिलकर उसे फिर से परास्त करने के लिए युद्ध किया परंतु वे फिर हार गए।
ऐसे हुआ मां दुर्गा का सृजन
महिषासुर से परास्त होने के बाद कोई उपाय न पाकर देवताओं ने उसके विनाश के लिए दुर्गा का सृजन किया जिसे शक्ति और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया।
इसलिए होती है महिषासुर की पूजा
जहां देवगण मां दुर्गा को अपना तारणहार मानते थे वहीं असुर महिषासुर को अपना राजा मानते थे। उसके संहार से सभी राक्षस शोक में डूब गए। पश्चिम बंगाल में कुछ समुदाय के लोग आज भी महिषासुर को अपना भगवान मानकर उसकी पूजा करते हैं।