जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । फेडरेशन आफ आल इंडिया व्यापार मंडल के तत्वाधान में मंगलवार 19 सिंतबर को दिल्ली के कन्सटीट्यूशन क्लब में नई कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर यानि जीएसटी पर एक कार्यक्रम जीएसटी मंथन का आयोजन किया गया। इसमें दिल्ली, एनसीआर सहित देश के अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में व्यापारियों ने हिस्सा लेते हुए जीएसटी पर अपने विचार, सुझाव और व्यापार में आ रही समस्याओं को साझा किया। कार्यक्रम में अलग-अलग व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों के अलावा, कर विशेषज्ञ, कर कानून सलाहकार और जीएसटी विशेषज्ञों ने भी भाग लिया। व्यापारियों ने जीएसटी से संबंधित कई समस्याओं को साझा किये। जिसमें जीएसटी की जटिलताएं, कर की पेंचीदगियां और रिटर्न भरने में आ रही दिक्कतों के अलावा जीएसटी की रीढ़ यानि जीएसटीएन का ठीक से काम न करना प्रमुख है।
फेडरेशन के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राधेश्याम शर्मा ने कहा कि जीएसटी प्रणाली को इतना जटिल बनाया गया है कि इसकी पालना विशेषज्ञों की मदद के बगैर संभव ही नहीं है। लघु कारोबारी, कम पढ़े-लिखे दुकानदार के लिए जीएसटी के तहत काम करना लगभग न मुमकिन ही है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह पूरी प्रक्रिया आन लाइन आधारित है। इसलिए बगैर कम्प्यूटर के इसकी पालना संभव नहीं है। समस्या ये है कि जहां 80 फीसदी कारोबारी बगैर कम्प्यूटर के हैं वहीं सभी जगह 24 घंटे बिजली और इंटरनेट की व्यवस्था सुचारू रूप से हो, इस पर प्रश्नचिह्न है। उन्होंने बताया कि हालांकि जीएसटी परिषद समय-समय पर इससे जुड़े सवालों और समस्याओं का समाधान कर रही है। इसके बावजूद कई समस्याएं ऐसी हैं। जिनका समाधान किया जाना जरूरी है। जिसमें सबसे बड़ी समस्या एक ही व्यवसाय में जीएसटी की कई दरों का लागू होना है। मसलन बैरिंग उद्योग पर दो तरह की जीएसटी लगी हुई है। इसी प्रकार कागज उद्योग भी दो तरह की जीएसटी से ग्रसित है।
फेडरेशन राष्ट्रीय महामंत्री वी के बंसल ने कहा कि एक तरफ 20 लाख सालाना टर्न ओवर वाले लघु कारोबारियों को जीएसटी पंजीकरण से छूट दी गई। वहीं दूसरी ओर जीएसटी में ऐसे प्रावधान है कि जीएसटी में गैर पंजीकृत व्यापारी अपना माल पंजीकृत व्यापारियों को नहीं बेच सकते। वे किसी दूसरे राज्यों के गैर पंजीकृत व्यापारी को भी अपना नहीं बेच सकते हैं। वे सिर्फ लोकल कारोबार ही कर सकते हैं जो व्यापार के लिहाज से ठीक नहीं है। बंसल के मुताबिक हाल में ही सरकार की ओर से कर अधिकारियों को दो करोड़ नए कारोबारियों को जीएसटी से जोड़ने का फरमान जारी किया गया है। ऐसे में कर अधिकारी गैर पंजीकृत लघु कारोबारियों पर जीएसटी में पंजीकृत होने का दबाव बना रहे हैं। दरअसल लघु व्यापारियों के सामने समस्या यह है कि उनका कारोबार इतना व्यापक नहीं है कि वे जीएसटी में पंजीकृत होकर काम कर सकें। उन्होंने जीएसटी परिषद से इस मुद्दे पर मानवीय आधार पर विचार कर उचित मार्गदर्शन किए जाने की अपील की है।
हरियाणा उद्योग व्यापार हित मंडल के प्रदेशाध्यक्ष अनिल भाटिया ने बताया कि जीएसटी के तहत फर्नीचर को 28 फीसदी की सर्वोच्च श्रेणी में रखा गया है। इससे घरेलू और लघु निर्माताओं के सामने रोजी-रोटी का संकट छा गया है। ऊंचे कर के चलते खरीददार नहीं मिल रहे हैं। वहीं बड़े फर्नीचर निर्माता और ब्रांडेड कंपनियों को भी इसका खामियाजा उठाना पड़ रहा है। इसका बुरा असर यह हो रहा है कि चीन से आयातित फर्नीचर का कारोबार एक बार फिर से बढ़ने लगा है। खरीददार ऊंचे कर से बचने के लिए सस्ते आयातित चीन के फर्नीचर में रूचि दिखा रहे हैं। फेरडरेशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता सीए राजेश्वर पैन्युली ने कहा कि यदि जीएसटी की कर विसंगतियों और जटिलताओं का सरकार समाधान कर दे तो यह एक बेहतर और अच्छी कर प्रणाली बन सकती है। यही नहीं एक देश एक कर की परिकल्पना भी साकार हो सकती है जो मौजूदा जीएसटी में नहीं दिख रही है।
वरिष्ठ कर विशेषज्ञ सीए आरके गौड़ ने बताया कि सरकार और जीएसटी परिषद की लाख सफाई के बावजूद यह कटु सत्य है कि एक व्यापारी को साल में कुल 40 रिटर्न फाइल करनी ही होंगी। इतनी रिटर्न फाइल करने के बावजूद व्यापारी सिर्फ स्थानीय व्यापार कर सकेगा यदि वह किसी दूसरे राज्य से व्यापार करता है तो उसे साल उस राज्य से व्यापार करने की अलग 40 रिटर्न भरनी होंगी। मतलब यह है कि यदि एक पंजीकृत व्यवसायी 10 राज्यो से व्यापार करता है तो उसे साल में कुल 400 रिटर्न फाइल करनी होंगी। यही नहीं व्यापारियों की सबसे बड़ी समस्या इनपुट क्रेडिट की आ रही है। जो आने वाले दिनो में और बिकराल रूप धारण कर सकती है। व्यापारी के पास इतनी पूंजी नहीं है कि पहले वह अपना माल उधार बेचे और हर महीने सरकार को एडवांस जीएसटी जमा करे और सरकार इनपुट क्रेडिट का भुगतान एक माह के बाद करे। ऐसे में तो पूरा व्यापार का ढ़ांचा ही चरमरा जाएगा।