जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आर्थिक मोर्चे पर घेरने वाले यशवंत सिन्हा भारतीय जनता पार्टी में न संघ से आए थे और न ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से. 24 साल आईएएस की भूमिका निभाने के बाद वो 1984 में राजनीति में आए. 1990 में वो चंद्रशेखर की सरकार में वित्त मंत्री बने. हालांकि यशवंत सिन्हा ख़ुद इस बात को मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में उनकी कोई विशेषज्ञता नहीं थी. सिन्हा ने अपनी किताब ‘कन्फेशन्स ऑफ अ स्वदेशी रिफॉर्मर’ में लिखा है कि उन्होंने केवल 12वीं क्लास में ही अर्थव्यवस्था पढ़ी थी.
सिन्हा ने इतिहास में ग्रैजुएशन किया था और मास्टर्स में राजनीति शास्त्र को चुना था. इसके बाद उन्होंने सिविल सेवा को अपना करियर बना लिया था. यशवंत सिन्हा ने ख़ुद लिखा है आर्थिक मुद्दों को समझना और वित्त मंत्रालय की चुनौतियों से निपटना दोनों अलग चीज़ें हैं.
इस पृष्ठभूमि को जानने-समझने के बावजूद चंद्रशेखर ने यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री बनाया. तब भारत की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में थी. 1990 और 91 में भारत जिन आर्थिक संकटों से जूझ रहा था उसे लेकर जाने-माने अर्थशास्त्री और रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर आइजी पटेल ने कहा था कि यह आज़ाद भारत का सबसे बड़ा आर्थिक संकट है.
यशवंत सिन्हा ने अपनी किताब में लिखा है कि तब सुब्रमण्यन स्वामी वित्त मंत्री बनना चाहते थे, लेकिन कई लोग उनके ख़िलाफ़ थे. सिन्हा ने लिखा है कि स्वामी को मनाने के लिए तब वाणिज्य के साथ क़ानून-न्याय जैसे दो-दो मंत्रालय उन्हें दिए गए थे. सिन्हा ने लिखा है कि वो ख़ुद भी वित्त मंत्री नहीं बनना चाहते थे. उनका मन विदेश मंत्री बनने का था, लेकिन चंद्रशेखर चाहते थे कि देश की अर्थव्यवस्था जिस संकट में है, उससे यशवंत सिन्हा ही निकाल सकते हैं.
हालांकि चंद्रशेखर की सरकार एक साल भी नहीं रही और फिर इस आर्थिक संकट से पीवी नरसिम्हा राव और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को जूझना पड़ा. जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में 1998 में सरकार बनी तो एक बार फिर से यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री बने.यह सरकार भी 13 महीने तक ही चली. 1999 में फिर से वाजपेयी की वापसी हुई और यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्रालय मिला.
आज की तारीख़ में जब एक बार फिर से बीजेपी की सरकार है, तो यशंवत सिन्हा वर्तमान सरकार और वित्त मंत्री अरुण जेटली पर लगातार हमले बोल रहे हैं. सिन्हा ने यहां तक कह दिया है कि जेटली के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है.
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर अटल सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी भी कई बार सवाल उठा चुके हैं. दूसरी तरफ़ बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी भी वित्त मंत्री अरुण जेटली की नीतियों को निशाने पर लेते रहते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि वित्त मंत्री के रूप में यशवंत सिन्हा को लेकर पार्टी के भीतर क्या सोच थी? वाजपेयी सरकार में जब सिन्हा वित्त मंत्री बने तो मोहन गुरुस्वामी से उनका विवाद हुआ था.
दरअसल, मोहन गुरुस्वामी को यशवंत सिन्हा का सलाहकार बनाया गया था. सिन्हा नहीं चाहते थे कि गुरुस्वामी उनके सलाहकार बने, लेकिन आडवाणी के दबाव में उन्हें सलाहकार बनाना पड़ा था.
इस विवाद के बारे में सिन्हा ने कन्फेशन्स ऑफ अ स्वदेशी रिफॉर्मर में लिखा है, ”मैं मोहन गुरुस्वामी को 1984 से ही जानता था. हम दोनों ने चंद्रशेखर के साथ काम करना शुरू किया था. गुरुस्वामी हार्वर्ड से पढ़े थे. चंद्रशेखर गुरुस्वामी से काफ़ी प्रभावित थे. वो चाहते थे कि हम दोनों साथ मिलकर काम करें. हमने तब तक उनके साथ काम किया जब तक कि वो चंद्रशेखर से विश्वनाथ प्रताप सिंह के खेमे में नहीं चले गए. हालांकि उनको मैंने अच्छी तरह से तब जाना जब 1993 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुआ.”
सिन्हा ने आगे लिखा है, ”मैं 1998 में जब वित्त मंत्री बना तो आडवाणी ने गुरुस्वामी को सलाहकार बनाने के लिए कहा. आडवाणी के आसपास ऐसे बहुत लोग थे जो चाहते थे कि गुरुस्वामी वित्त मंत्रालय के साथ काम करें. हालांकि वाजेपयी ऐसा नहीं चाहते थे. मैं गुरुस्वामी से बिल्कुल ख़ुश नहीं था. उनका काम करने का जो तरीक़ा था उससे कई समस्याएं पैदा हो रही थीं. मैंने आडवाणी से कहा कि गुरुस्वामी को वित्त मंत्रालय से जाना होगा और फिर उन्हें हटाया गया. हटाने के बाद गुरुस्वामी ने सरकार के ख़िलाफ़ जमकर आरोप लगाए थे.”
गुरुस्वामी ने इस मुद्दे पर बीबीसी से कहा, ”वो 20 साल पुरानी बात है. अब उस पर कुछ कहना ठीक नहीं होगा. हालांकि सिन्हा जो सवाल उठा रहे हैं उनमें कई वाजिब बातें हैं. उस समय के जो आंकड़े थे वो बिल्कुल सही थे. उन आंकड़ों को लेकर कोई झूठ नहीं बोल रहा था. उसके बाद यूपीए सरकार भी आई तो उन आंकड़ों में सुधार हुआ.”
गुरुस्वामी ने आगे कहा, ”इनके साथ दिक़्क़त है कि ये मानते ही नहीं हैं. इन्हें चाहे जो भी सच्चाई दिखाओ ये मानते ही नहीं हैं. इन्हें जो चीज़ें पसंद आती हैं उसे ही मानते हैं. हमने सच्चाई छुपाई नहीं. यशवंत सिन्हा चाहे जैसे हों, लेकिन वो झूठ नहीं बोलते हैं. इस सरकार के साथ समस्या है कि वो झूठ बोलती है. हालांकि वित्त मंत्री के लिए दोनों क़ाबिल नहीं थे, लेकिन उन्हें बनाया गया. फिर भी मेरा मानना है कि जेटली से सिन्हा ज़्यादा क़ाबिल थे. वो विषय को जानते थे. उनकी जो पृष्ठभूमि थी वो जेटली के मुक़ाबले ज़्यादा मुफीद थी.”
गुरुस्वामी ने कहा कि इस सरकार में विचार-विमर्श के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा कि मोदी तो जेटली तक की नहीं सुनते हैं. गुरुस्वामी ने कहा कि वाजपेयी यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री नहीं बनाना चाहते थे. उन्होंने कहा कि सिन्हा को वित्त मंत्री आडवाणी ने बनवाया था, जबकि अटल जसवंत सिंह को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे.
सिन्हा ने अपनी किताब में लिखा है, ”जब मैं वित्त मंत्री था तो पार्टी के भीतर ही एक विपक्ष था. सबसे बुरी बात यह थी कि नीति के स्तर पर जो भी पार्टी के भीतर आलोचना होती थी वो गोपनीय नहीं, बल्कि सार्वजनिक हो जाती थी. मेरे बारे में एक छवि यह बनी कि पार्टी का मेरे ऊपर भरोसा नहीं है.”
सिन्हा ने लिखा है, ”संसद के सत्र के दौरान हर मंगलवार को सुबह साढे नौ बजे पार्टी सांसदों की बैठक होती थी. यह बैठक या तो अटल या आडवाणी के नेतृत्व में होती थी. वित्त मंत्रालय की नीतियों में सब्सिडी, कृषि और ग्रामीण विकास को लेकर सवाल उठाए जाते थे. मेरे ऊपर सबसे ज़्यादा सुषमा स्वराज हमलावर रहती थीं. वो पार्टी फोरम और सांसदों की बैठक में भी नीतियों की जमकर आलोचना करती थीं. सुषमा को तब तक मंत्री नहीं बनाया गया था.”
यशवंत सिन्हा ने लिखा है कि वो बजट पेश करने से पहले आरएसएस के साथ भी बैठक करते थे. उन्होंने लिखा है कि आरएसएस का उन पर बहुत भरोसा नहीं रह गया था. सिन्हा ने लिखा है, ”साल 2000 में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक नागपुर में थी. मैंने इस बैठक में शरीक नहीं होने का फ़ैसला किया था. मेरी तबीयत ठीक नहीं थी. बैठक के एक दिन पहले वाजपेयी का फ़ोन आया. वाजपेयी ने कहा कि वो उनके साथ नागपुर चलेंगे. मुझे इरादा बदलना पड़ा.”
सिन्हा ने लिखा है, ”मैं वहां पहुंचते ही सीधे बैठक में गया. मुरली मनोहर जोशी मंच पर बैठे थे. वो मेरे पास आए और कहा कि सुषमा स्वराज आर्थिक नीतियों की जमकर आलोचना कर रही हैं. प्रधानमंत्री जानना चाहते हैं कि इन आलोचनाओं का जवाब वो अभी देंगे या बाद में. मैंने जोशी से कहा कि बाद में जवाब दूंगा.”
यशवंत सिन्हा ने लिखा है कि वो पार्टी के भीतर बढ़ते विरोध से आजिज आ गए थे. उन्होंने एक बार मंत्रालय बदलने के लिए वाजपेयी से कहा, लेकिन पीएम ने कहा कि वो ठीक काम कर रहे हैं.
हालांकि आरएसएस से दबाव बढ़ने के बाद वाजपेयी ने एक दिन ख़ुद यशवंत सिन्हा से कहा कि आप काम ठीक कर रहे हैं, लेकिन बतौर वित्त मंत्री जनता में आपके लिए धारणा ठीक नहीं है. 2002 में यशवंत सिन्हा को वाजपेयी ने विदेश मंत्री बना दिया और जसवंत सिंह को वित्त मंत्री.