जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । क्षेत्रीय दलों को लेकर तमाम तरह के सवाल किे जाते रहे हैं, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तो यहांतक कह दिया है कि क्षेत्रीय दलों के अजेंडे के चलते राष्ट्रीय हित प्रभावित होते हैं इसलिए इस पर देश में गंभीर चर्चा किए जाने की जरूरत है। खासतौर पर गठबंधन सरकारों पर प्रधानमंत्री अपने मन-मुताबिक फैसले लेने में सक्षम नहीं रहता है। यहां तक कि वह मंत्रियों और उनके विभागों का चुनाव भी अपने मुताबिक नहीं कर पाता है। अजेंडे के चलते राष्ट्रीय हित प्रभावित होने के विषय पर देश में गंभीर चर्चा किए जाने की जरूरत है। खासतौर पर गठबंधन सरकारों पर प्रधानमंत्री अपने मन-मुताबिक फैसले लेने में सक्षम नहीं रहता है। यहां तक कि वह मंत्रियों और उनके विभागों का चुनाव भी अपने मुताबिक नहीं कर पाता है।
प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वह इसलिए पीएम नहीं बन सके क्योंकि वह हिंदी में कमजोर थे। उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह अच्छे पीएम रहे, लेकिन मैं इसलिए नहीं बन सका क्योंकि मैं जनता की भाषा यानी हिंदी में कमजोर था।
प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘डॉक्टर साहिब (मनमोहन सिंह) हमेशा बहुत अच्छे विकल्प रहे। निसंदेह वह बहुत अच्छे पीएम थे। मैं तब भी कहा था और बाद में भी कि कांग्रेसियों में पीएम के तौर पर सबसे अच्छे विकल्प मनमोहन सिंह ही थे। मैं पीएम के तौर पर उपयुक्त नहीं था क्योंकि मैं हिंदी में कमजोर होने के चलते जनता के साथ संवाद नहीं कर सकता था। कोई भी व्यक्ति जनता से संवाद करने की भाषा में सक्षम न होने पर पीएम नहीं बना सकता, जब तक कि कोई अन्य राजनीतिक कारण न हों।’
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय दलों के अजेंडे के चलते राष्ट्रीय हित प्रभावित होने के विषय पर देश में गंभीर चर्चा किए जाने की जरूरत है। खासतौर पर गठबंधन सरकारों पर प्रधानमंत्री अपने मन-मुताबिक फैसले लेने में सक्षम नहीं रहता है। यहां तक कि वह मंत्रियों और उनके विभागों का चुनाव भी अपने मुताबिक नहीं कर पाता है। प्रणब ने कहा कि यूपीए के कार्यकाल में क्षेत्रीय दलों से निपटना चुनौती था। हालांकि बीजेपी फिलहाल पूर्ण बहुमत से सत्ता में है, लेकिन अब भी उसके लिए यह चैलेंज बना हुआ है।
प्रणब दा ने कहा, ‘मैं सोचता हूं कि गठबंधन सरकारों में फैसले लेने की क्षमता नहीं रहती क्योंकि इन पर क्षेत्रीय दलों को प्रभाव अधिक होता है। इसकी वजह यह है कि क्षेत्रीय दल सिर्फ एक राज्य तक ही सीमित हैं। सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टियों की मौजूदगी एक से अधिक राज्य में है। गठबंधन में शामिल ज्यादातर दल एक राज्य तक सीमित हैं। ऐसे में क्षेत्रीय हितों के साथ राष्ट्रीय हितों का तालमेल मुश्किल हो जाता है।’
हालांकि मुखर्जी ने इस बारे में किसी खास घटना का जिक्र नहीं किया। लेकिन उनका इशारा क्षेत्रीय दलों के दबाव में पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों के मामले में समझौते की ओर था। उन्होंने कहा, ‘गठबंधन सरकार में पीएम पूरी अथॉरिटी का इस्तेमाल नहीं कर पाता। यहां तक कि वह अपने साथियों का चुनाव भी नहीं कर पाता, जैसा एक पार्टी को बहुमत मिलने पर संभव होता है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या राष्ट्रपति भवन से निकलने के बाद वह कांग्रेस के लिए गाइड के तौर पर उपलब्ध होंगे, उन्होंने कहा राजनीति में दोबारा आने का कोई सवाल ही नहीं उठता। हालांकि वह सलाह के लिए उपलब्ध रहेंगे।
प्रणब ने कहा, ‘सलाह तो मैं कभी भी दे सकता हूं, लेकिन किसी भी राष्ट्रपति ने पद छोड़ने के बाद कभी सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं लिया। राजेंद्र प्रसाद, शंकर दयाल शर्मा सभी कांग्रेस से आकर राष्ट्रपति बने थे, वह मुझसे बड़े कांग्रेसी थे, लेकिन राष्ट्रपति के पद से हटने के बाद वे दोबारा सक्रिय राजनीति में नहीं लौटे।