जनजीवन ब्यूरो / इंदौर । मध्य प्रदेश के इंदौर के गौतमपुरा क्षेत्र में वर्षों से चली आ रही परंपरा निभाने के लिए दिवाली के अगले दिन शुक्रवार की शाम पुलिस और प्रशासन की देखरेख में हिंगोट युद्ध हुआ, जिसमें 36 लोग घायल हो गए। इनमें से तीन की हालत गंभीर है।
इस युद्ध का हजारों लोगों ने आनंद लिया। देपालपुर के अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस (एसडीओ,पी) विक्रम सिंह ने बताया कि हिंगोट युद्ध में कुल 36 लोग घायल हुए, जिनमें से 33 को सामान्य चोटें आईं, वहीं तीन को ज्यादा चोटें लगीं, जिन्हें इंदौर रेफर किया गया है।
क्या है हिंगोट युद्ध?
हिंगोट हिंगोरिया नामक पेड़ में फलने वाला नारियल जैसा कठोर, लेकिन आकार में नींबू जैसा छह से आठ इंच लंबा फल होता है। इसे अंदर से खोखला कर, उसमें बारूद भर दिया जाता है। एक छेद में बत्ती लगा दी जाती है और दूसरे छेद को मिट्टी से बंद कर दिया जाता है। बत्ती में आग लगाते ही हिंगोट शोला बनकर दहकने लगता है। हिंगोट को बांस की कमानी (पतली लकड़ी) से जोड़कर फेंका जाता है, ताकि निशाना सीधा दूसरे दल पर लगे।
शुक्रवार को सूर्यास्त होते ही देवनारायण मंदिर के सामने के मैदान का नजारा बदल गया। यहां तुर्रा और कलंगी दल ने एक-दूसरे पर हिंगोट चलाना शुरू कर दिया। दोनों ओर से हिंगोट छोड़े जा रहे थे। जहां एक दल दूसरे को मात देने की कोशिश कर रहा था, वहीं अपनी सुरक्षा के भी पूरे इंतजाम किए हुए थे। इस युद्ध का हजारों लोगों ने आनंद लिया।
देपालपुर के अनुविभागीय अधिकारी, पुलिस (एसडीओ,पी) विक्रम सिंह ने बताया कि सुरक्षा और चिकित्सा के पूरे इंतजाम किए गए। इस युद्ध की शुरुआत कैसे और कब हुई, इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता, मगर माना जाता है कि यह युद्ध अपनी ताकत और कौशल प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। इस युद्ध के दौरान पुलिस के लिए सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है। यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शक के तौर पर पहुंचते हैं, तो दूसरी ओर युद्ध में हिस्सा लेने वाले कई प्रतिभागी शराब के नशे में होते हैं।
इंदौर के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) हरि नारायण चारी मिश्रा ने कहा कि गौतमपुरा में होने वाले हिंगोट युद्ध के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। हेलमेट सहित अन्य सुरक्षा सामग्री के साथ 250 जवानों की तैनाती रही, मैदान के चारों ओर फेंसिंग कराई गई, ताकि दर्शकों को किसी तरह का नुकसान न हो। इसके अलावा ऐम्बुलेंस और चिकित्सा सेवा का भी इंतजाम किया गया। यह परंपरा है, इसे रोका नहीं जा सकता। मगर कोई गंभीर हादसा न हो, इसके लिए लोगों को समझाया गया।
वर्षों से हर साल हिंगोट युद्ध देख रहे हीरा लाल ने कहा कि यह युद्ध बड़ा रोमांचकारी होता है। इसकी तैयारी लगभग एक माह पहले से शुरू हो जाती है। तुर्रा और कलंगी, दोनों दलों के सदस्य पूरी तैयारी कर आते हैं और दोनों दलों की कोशिश जीत हासिल करने की रहती है। युद्ध खत्म होने पर दोनों दलों के लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं और अपने घरों को लौट जाते हैं।