जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली . गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार जोरों पर है . धुआंधार चुनावी रैलियां हो रही हैं. कांग्रेस के राहुल गांधी प्रचार में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं तो भाजपा की नैया पार लगाने के लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी दर्जनों रैलियां करने जा रहे हैं.
एक तरफ पाटीदार और पटेल हैं जो कांग्रेस के साथ हैं तो दूसरी तरफ हैं भाजपा सरकार के वादे. सोमवार से मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उतरेंगे और कई रैलियों को संबोधित करेंगे.
बीते दो दशक से गुजरात भाजपा का गढ़ रहा है, लेकिन इस बार कांग्रेस उसे कड़ी चुनौती देती दिख रही है. शुरुआती दौर से रफ्ता-रफ्ता चल रहे चुनाव प्रचार में सही मायनों में तेज़ी तो अब आई है. राहुल गांधी काफी पहले से इसमें सक्रिय हैं और लगातार रैलियां कर रहे हैं.
सोमवार को चुनाव प्रचार में मोदी उतरेंगे और वो लगातार 8 रैलियां करने वाले हैं जो इस बात का संकेत है कि चुनावी सरगर्मियां अब नज़र आने लगी हैं. अब भाषणों में एक दूसरे के ख़िलाफ़ आरोपों का दौर शुरू हो चुका है.
बीते बीस सालों में ये पहला ऐसा चुनाव है जिसमें ऐसा लग रहा है कि भाजपा के ख़िलाफ़ कोई पार्टी खड़ी है, वरना इससे पहले एकतरफा जैसी स्थिति होती थी. ज़मीन पर एक मुक़ाबले की स्थिति बनती नज़र आ रही है.
इस बार कंग्रेस ना केवल जोश में है बल्कि उसके अंदर नया कॉन्फिडेंस भी दिखता है. इसकी एक वजह ये हो सकती है कि यहां पर कुछ समुदाय जो पारंपरिक तौर पर बीजेपी को वोट देते रहे हैं इस बार उनमें भाजपा से नाराज़गी है और ये समुदाय कांग्रेस के करीब आए है.
साथ ही ये पहला चुनाव है जब प्रधानमंत्री मोदी प्रदेश की राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं हैं और वो केंद्र में प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं. मोदी एक मज़बूत नेता रहे हैं और उनके जाने के बाद गुजरात में अब उस लेवल के नेता नहीं हैं. जो नेता हैं वो उसी स्तर पर हैं जैसे कांग्रेस के नेता हैं. ये भी एक कारण है कि यहां पर चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण लग रहा है.
गुजरात में ‘बापू’ कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला प्रदेश में राज्यसभा चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस से अलग हो गए. वो अपने राजनीतिक करियर में भाजपा और जनसंघ का भी हिस्सा रहे थे. उन्होंने भी चुनाव से पहले नई पार्टी बनाने की घोषणा की है.
लेकिन गुजरात में सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच रहा है. छोटी पार्टियां जैसे कि शिव सेना, एनसीपी, वाघेला का महत्व एक-दो सीटों के लिए तो हो सकता है लेकिन प्रदेश की राजनीति में उनकी भूमिका बड़ी नहीं है, इनका ना तो सकारात्मक और ना ही नकारात्मक प्रभाव दिखाई पड़ता है.
गुजरात की राजनीति में अल्पसंख्क बीते काफी सालों से उपेक्षा का शिकार हुए हैं. यहां सबसे बड़े अल्पसंख्यक मुसलमान हैं, फिर ईसाई हैं. लेकिन यहां की राजनीति कुछ इस तरह की रही है कि उनकी भूमिका राजनीति से दरकिनार हो गई है.
खास बात यह है कि राहुल गांधी की रैलियों में लोगों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. पहली बार ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस को यहां एक सपोर्ट मिल रहा है. उनकी रैलियों में अच्छी खासी तादाद में युवा दिखाई दे रहे हैं.
मोदी के लिए गुजरात उनके सम्मान की लड़ाई है, उनके गुजरात मॉडल की स्वीकृति की लड़ाई है. उन्होंने जो अपना राजनीतिक वर्चस्व बनाया है उसके लिए भी ये चुनाव एक चुनौती है.
गुजरात में चुनाव पर्यवेक्षकों का मानना है कि मोदी किस तरह से अपना कैम्पेन करते हैं उस पर काफी कुछ निर्भर करता है. कहा जा रहा है कि वो इतने बड़े पैमाने पर अपना कैम्पेन चलाएंगे कि उससे कांग्रेस और अन्य पार्टियों को नुकसान हो सकता है.