जनजीवन ब्यूरो / मुंबई: पल भर के लिए ही क्यों न सही, लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के पैसेंजर हॉल में कदम रखते ही एक बार वह दृश्य जरूर याद आ जाता है, जब दो पाकिस्तानी आतंकी कसाब और इस्माइल निर्दोष नागरिकों पर एके 56 से गोलियां बरसा रहे थे और हैंड ग्रेनेड फेंक रहे थे.
26 नवंबर, 2008 की रात करीब 9.50 बजे शुरू हुए इस आतंकी हमले में कुल 166 लोग मारे गए थे एवं 300 से ज्यादा घायल हुए थे. मुंबई के प्रमुख रेलवे स्टेशन सीएसएमटी सहित, ताज होटल, होटल ट्राइडेंट, लियोपोल्ड कैफे एवं नरीमन हाउस सहित सड़क पर चलते कुछ वाहनों को भी निशाना बनाया गया था. चार दिन चले इस हमले के दौरान पुलिस मुठभेड़ में पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते आए 10 में से नौ आतंकी मारे गए थे.
साथ ही मुंबई पुलिस के तीन जांबाज अधिकारियों सहित कई जवान भी शहीद हुए. लेकिन इस हमले ने मुंबई सहित देश की सुरक्षा एजेंसियों को कई महत्त्वपूर्ण सबक दिए. जिसका परिणाम है कि 2011 में मुंबई में हुए तिहरे विस्फोटों के बाद से मुंबई ने फिलहाल कोई आतंकी हमला नहीं देखा है.
देश में सर्वाधिक आतंकी हमले वास्तव में आर्थिक राजधानी मुंबई ने ही देखे हैं. इनकी शुरुआत बाबरी विद्ध्वंस के बाद 12 मार्च, 1993 को मंबई में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों से हुई. फिर दो बार लोकल ट्रेनों को निशाना बनाया गया. कई बार बेस्ट की बसों को. तीन बार झवेरी बाजार जैसे भीड़भाड़ वाले बाजारों को. एक बार गेटवे ऑफ इंडिया को.
इन सभी हमलों में भीड़भाड़ वाले स्थानों को निशाना बनाया गया था. ताकि अधिक से अधिक जनहानि करके दहशत फैलाई जा सके. इस दहशत ने लोगों को जागरूक भी किया है. लोकल ट्रेन में चलते हुए कोई लावारिस बैग दिखते ही अब लोग चैतन्य हो जाते हैं. या तो बैग के मालिक की खोज की जाती है, या पुलिस को सूचित किया जाता है.
मुंबई पर हुए दो बड़े आतंकी हमलों में चूंकि समुद्र का इस्तेमाल किया गया. इसलिए समुद्री सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए एक दर्जन से अधिक सुरक्षा एजेंसियों में समन्वय स्थापित करने की पहल की गई है. यह पहल पिछले वर्ष भारतीय मरीन कमांडो बेस के निकट कुछ संदिग्ध लोगों के देखे जाने के बाद कारगर होती दिखाई दी.
26/11 के बाद ही केंद्र सरकार की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के चार क्षेत्रीय केंद्र शुरू करने की पहल की गई थी. इनमें से एक मुंबई में स्थापित किया गया है. इसके अलावा राज्य सरकार की तरफ से भी एनएसजी की ही तर्ज पर फोर्स-1 का गठन किया गया है. मुंबई में स्थित एनएसजी आम जनजीवन से दूर ही रहती है. लेकिन फोर्स-1 अक्सर विशेष अवसरों पर अपनी बख्तरबंद गाड़ियों के साथ तैनात दिखाई देती हैं.
पूरे मुंबई महानगर को सीसीटीवी कैमरों से सुसज्जित करने की बाद उक्त हमले के बाद ही कही गई थी. मुंबई में पिछले वर्ष ही ऐसे 5000 कैमरे लगाए जा चुके हैं. पुणे शहर के भी बड़े हिस्से को सीसीटीवी से लैस कर दिया गया है. इन दोनों शहरों में सीसीटीवी का उपयोग ट्रैफिक कंट्रोल एवं ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करनेवालों तक पहुंचने में भी किया जाता है.
किसी भी आतंकी घटना के समय आतंकियों से पहला सामना विशिष्ट सुरक्षाबलों के बजाय स्थानीय पुलिस का ही होता है. 26/11 के समय भी ऐसा ही हुआ था. मुंबई पुलिस के एक सहायक सब इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबुले की हिम्मत के कारण ही एक पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा जा सका था. इसलिए मुंबई पुलिस को और सुरक्षित करने के लिए हाल ही में 5000 बुलेट प्रूफ जैकेट एवं नाइट विजन दूरबीनों की व्यवस्था की गई है.
लगभग तीन साल पहले अप्रैल 2014 में अमरीका की तरफ से भी मुंबई पुलिस को करीब तीन लाख डॉलर मूल्य के सुरक्षा उपकरण उबलब्ध कराए गए थे. इनमें बम निरोधक दस्ते द्वारा इस्तेमाल किए जानेवाले सूट, विशिष्ट बनावट के हेलमेट, स्कैनर इत्यादि शामिल थे.
मुंबई हमलों के बाद इसकी जांच के लिए बनी राम प्रधान समिति की सिफारिशों पर अमल करते हुए समुद्री सुरक्षा के लिए कई हाईस्पीड बोट खरीदी गई थीं. लेकिन इनमें से ज्यादातर वाहन अब खराब पड़े हैं. नियमित पेट्रोलिंग के लिए इन्हें ईंधन भी उपलब्ध नहीं होता.
मछुवारों को ट्रेनिंग एवं परिचयपत्र देने की बात हुई थी. लेकिन अभी तक ट्रेनिंग का माड्यूल ही नहीं बन पाया है. ना ही ट्रेनिंग के लिए मछुवारों के किसी बैच का चयन किया जा सका है. जबकि प्रशिक्षित मछुवारे मुंबई के सन्नद्ध पहरुए साबित हो सकते हैं.
मुंबई पर आतंकी हमले के लिए आकाशमार्ग का इस्तेमाल होने की आशंका जताई जाती है. लेकिन पुलिस प्रशासन अभी तक ड्रोन को नियंत्रित करने की कोई नीति भी नहीं बना पाया है.