जनजीवन ब्यूरो /ब्यूनस आयर्स । दुनिया के कई देश विश्व व्यापार संगठन में भारत और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले विकासशील देशों को मिल रहे विशेष लाभ को खत्म करने की वकालत कर रहे हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु कहा है कि भारत विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत उस विशेष छूट का हकदार है जिसके तहत कम आय वाले देशों के माल को विकसित देशों के बाजारों में मुक्त या रियायती दर पर प्रवेश मिलता है।
प्रभु ने कहा कि भारत में अब भी गरीबों की संख्या 60 करोड़ है। इसका हवाला देते हुए उन्होंने अमेरिका की उस आलोचना को खारिज कर दिया कि कुछ देश अपनी खुद की घोषित विकास की स्थिति के आधार पर व्यापार के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। प्रभु ने यहां पत्रकारों से कहा कि व्यापार में निम्न आय वाले देशों के माल के साथ विशेष और रियायत व्यवहार WTO की व्यवस्था का आंतरिक हिस्सा है। जमीनी सच्चाई यह है कि कुछ देशों की प्रति व्यक्ति आय काफी निचले स्तर पर है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर ने WTO के 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के पूर्ण सत्र में संबोधन के दौरान इस तरह की विशेष रियायतों पर कुछ सवाल उठाए थे। लाइटहाइजर ने कहा, ‘हमें विकास की स्थिति को लेकर WTO में अपनी समझ स्पष्ट करनी होगी। हम ऐसी स्थिति नहीं देख सकते जबकि नए नियम सिर्फ कुछ देशों पर लागू हों और अन्य को स्वघोषित दर्जे (कम आय वाले देश के दर्जे) के नाम पर छूट मिलती रहे। हमारे विचार में इसमें कुछ गलत है जबकि दुनिया के पांच या छह अमीर देश खुद के विकासशील देश होने का दावा करते हैं।’
इस पर जवाब देते हुए प्रभु ने कहा, ‘विशेष और अलग तरह का व्यवहार WTO का महत्वपूर्ण तत्व है। आप इन सच्चाइयों को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि कुछ तबके विकास की प्रक्रिया में पीछे छूट गए हैं।’ प्रभु ने पूर्ण सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि हम लगातार देख रहे हैं कि WTO में विकास पर चर्चा को कुल जीडीपी आंकड़ों पर बहस के जरिए बदला जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में हमें हाल के वर्षों में अपनी GDP की वृद्धि दर पर गर्व है, पर हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि भारत में 60 करोड़ लोग गरीब हैं।
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