जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली, करीब दो दशक पहले कांग्रेस की कमान अपने हाथों में लेनेवाली सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान अपने बेटे राहुल गांधी के कंधे पर सौंप दी। इसी के साथ वह विरासत के रूप में कई उतार चढ़ाव भी छोड़ गईं।19 साल से भी ज्यादा समय तक कांग्रेस को पीछे से दिशा देनेवाली 71 वर्षीय सोनिया गांधी ने 2011 में विदेश जाकर सलफतापूर्वक सर्जरी कराने के बाद पिछले करीब वर्षों के दौरान अपनी ज्यादातर जिम्मेदारियां राहुल को पहले ही सौंप चुकीं थीं। वह 131 साल पुरानी पार्टी में सबसे लंबी अवधि तक बतौर अध्यक्ष अपनी सेवा देकर इतिहास बना चुकीं हैं।
1998 में ली पार्टी की कमान
साल 1988 में देश की सबसे बड़ी पार्टी की कमान जिस वक्त सोनिया गांधी ने अपने हाथों में लिया था उस समय पार्टी के अंदर अनिश्चितता और अशांति का वातावरण था। उस वक्त कांग्रेस सिर्फ चार राज्य राज्य मध्य प्रदेश, उड़ीसा, मिजोरम और नागालैंड में सिमटकर रह गई थी। जबकि, पार्टी के पास लोकसभा में 141 का संख्याबल था।
साल 1991 में अपने पति और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या किए जाने के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया। हालांकि, वह अपनी जिद से थोड़ी नरम पड़ी और साल 1997 में पार्टी के कोलकाता के अधिवेशन में पार्टी की प्राथमिक सदस्य बन गईं। कुछ महीने बाद 14 मार्च 1998 को सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुन ली गईं। लेकिन, एक साल बाद ही यानि 15 मई 1999 को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर की तरफ से सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाने और उन्हें प्रधानमंत्री पद देने का विरोध करने के बाद सोनिया गांधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
राहुल (47) हिमाचल और गुजरात विधानसभा चुनावों के परिणाम आने से ठीक दो दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं।
सोनिया ने कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) को लिखे पत्र मे कहा- “हालांकि, मैं विदेशी धरती पर पैदा हुई हूं, मैने भारत को अपने देश चुना है और आखिरी सांस तक भारतीय ही रहूंगी। भारत मेरी मातृभूमि है और यह मेरे अपने जीवन से हमें ज्यादा प्यारी है।” सोनिया के इस कदम के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जोरदार प्रदर्शन हुआ और भूख हड़ताल पर बैठ गए। जिसके बाद शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को 20 मई को पार्टी से निलंबित करने के बाद सोनिया ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया।
कांग्रेस कार्यसमिति को 24 मई 1999 को उनके फैसले के बारे में बता दिया गया। उसके अगले ही दिन सोनिया को फिर से पार्टी अध्यक्ष के स्वागत में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का विशेष सत्र बुलाया गया।
पहली चुनावी सफलता
साल 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सबसे लोकप्रिय और भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए की एक अजेय सरकार दिख रही थी। लेकिन, सोनिया ने दोनों को ध्वस्त करके रख दिया। उनके आम आदमी नारे ने भाजपा के फील गुड और इंडिया शाइनिंग की हवा निकाल कर रख दी।
सोनिया का पहला प्रयास था जिसमें संयुक्त प्रगतिशील सरकार (यूपीए) सरकार के बैनर तले कई पार्टियां एक साथ आयी। जिस वक्त पार्टी की धार कुंद पड़ी थी, सोनिया ने ना सिर्फ दोबारा पार्टी को पुनर्जीवित किया बल्कि सोनिया गांधी सरकार का सारा ध्यान कल्याणकारी योजनाएं और धर्मनिरपेक्षवाद पर लेकर /