अमलेंदु भूषण खां
उच्चतम न्यायालय के चार जजों का भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ एकसाथ मोर्चा खोलने को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कुछ लोग इसे देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक बता रहे हैं तो कुछ लोग इसे लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत मान रहे हैं. सवाल उठाने वाले ये सुप्रीम के चार जज, जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ थे.
आपको याद दिला दें की कलकत्ता हाईकोर्ट के जज कर्णन ने जजों के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस किया था, जिसके बाद अवमानना के जुर्म में उन्हें जेल भेज दिया गया. कर्णन को जेल भेजने का फैसला देने वाले जजों में सुप्रीम कोर्ट के सभी चार जज जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन लोकुर और कुरियन जोसफ शामिल थे. इन्हीं चार जजों ने आज प्रेस कांफ्रेंस कर 2 महीने पुराने पत्र के माध्यम से चीफ जस्टिस के विरुद्ध गंभीर आरोप लगाए हैं. सवाल यह उठता है कि क्या इन चारों जजों के खिलाफ कर्णन की तरह अवमानना का मामला चलाया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को महाभियोग की संवैधानिक प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है, जिसे लागू करना टेढ़ी खीर है. जजों के प्रेस कांफ्रेंस को लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी बताया जा रहा है, पर इन्हें न्यायपालिका में सुधारों की शुरुआत के तौर पर देखना दिलचस्प होगा-
क्या अब जजों की नियुक्ति पारदर्शी तरीके से होगी?
प्रेस कांफ्रेंस करने वाले चारों जज चीफ जस्टिस के बाद वरिष्ठतम जज होने की वजह से कॉलेजियम के सदस्य हैं, जिसकी अनुशंसा से जजों की नियुक्ति होती है. एनजेएसी कानून रद्द होने के 3 साल बाद भी जजों की नियुक्ति हेतु एम्ओपी में बदलाव नहीं हुए. इस विवाद के बाद जजों की नियुक्ति प्रणाली में पारदर्शिता आने की संभावना बढ़ गई है.
मास्टर ऑफ रोस्टर द्वारा लिस्टिंग के नियम और परम्पराओं का पालन क्यों नहीं?
चीफ जस्टिस को मास्टर ऑफ रोस्टर मानने के कारण मुकदमों की लिस्टिंग का फैसला भी उनके द्वारा होता है. चार जजों ने 7 पेज के 2 महीने पुराने पत्र में चीफ जस्टिस को लिखा है कि महत्वपूर्ण मुकदमों की लिस्टिंग मनमाने तरीके से की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट गौरवशाली परंपरा से संचालित होता रहा है, इसीलिए जजों को भगवान का दर्जा दिया जाता है. चीफ जस्टिस रोस्टर के मास्टर हैं, पर उन्हें नियमों के अनुसार ही अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए. इस विवाद के बाद उम्मीद है कि अब सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों के लिस्टिंग की पारदर्शी और वैज्ञानिक व्यवस्था लागू होगी.
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रभावी तंत्र कैसे बने?
जब जजों को पंच परमेश्वर माना गया, उस समय किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि दूसरों को दण्डित करने वाले भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाएंगे. नियुक्ति के बाद संवैधानिक संरक्षण होने की वजह से जज लोग परम अमरता की स्थिति हासिल कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें सिर्फ महाभियोग की असंभवपूर्ण प्रक्रिया के तहत ही हटाया जा सकता है. कर्णन जज के आरोप, कोलिखो पुल का सुसाइड नोट, मेडिकल कॉलेज स्कैम, जोया जज की मौत समेत अनेक मामलों में जजों के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ पर दंड किसी को भी नहीं मिला.
न्यायपालिका में दरार का सरकार लाभ लेने की कोशिश न करे
इस विवाद की तह में जोया जज की मौत के साथ अनेक ऐसे मामले हैं, जिनका सरकार से वास्ता है. आने वाले समय में आधार और राम मंदिर जैसे जरूरी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ सकता है. चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल से और प्रधानमंत्री ने कानून मंत्री से मुलाकात की. इस मामले में कई नए पहलू सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता में कमी के साथ जजों की कमजोरी सामने आएंगी.
आज की प्रेस कांफ्रेंस की गूंज से सरकार न्यायपालिका में सुधारों के लिए संसद के विशेष सत्र से सार्थक शुरुआत कर सकती है. इसकी बजाय आपातकाल के पहले की घटनाओं की तर्ज पर न्यायपालिका में मतभेद का बेजा लाभ लेने की कोई भी सरकारी कोशिश लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी ही मानी जाएगी.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा, ‘राष्ट्र और न्यापालिका के प्रति हमारी जिम्मेदारी है, जिसके कारण हम यहां हैं. हमने मुद्दों को लेकर चीफ जस्टिस से बात की, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी. लोकतंत्र इस तरह से जीवीत नहीं रह सकता है.’
जस्टिस चेलमेश्वर जाहिर तौर पर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के उस मामले का उल्लेख कर रहे थे, जिसमें पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट के दो शीर्ष जजों के बीच टकराव देखा गया था. नवंबर में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस चेलमेश्वर के बीच पैदा हुए मतभेद के बाद से ही अटकलें लगाई जा रही थीं कि कई अन्य जज चीफ जस्टिस के कामकाज के तरीके से खुश नहीं थे.
एमसीआई केस में क्या हुआ था?
मेडिकल कॉलेज घूस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 8 नवंबर को जस्टिस चेलमेश्वर की खंडपीठ के समक्ष एक याचिका लगाई गई. याचिकाकर्ता सीजेएआर (कैंपेन फॉर जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी ऐंड रिफॉर्म्स) सीबीआइ जांच के एक मामले में एसआइटी से स्वतंत्र जांच की मांग कर रहा था. मामला हवाला की एक साजिश का था, जिसमें ब्लेकलिस्टेड मेडिकल कॉलेज को नियमित कराने के लिए कथित तौर पर शीर्ष जजों पर घूस लेने के आरोप लगाए गए थे.
जस्टिस चेलमेश्वर की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के लिए 10 नवंबर का दिन तय किया. तभी न्यायमूर्ति चेलमेश्वर की अदालत में 9 नवंबर को एक याचिका लगी. अधिवक्ता प्रशांत भूषण और दुष्यंत देव ने मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की. जिसके बाद जस्टिस चेलमेश्वर अगले दिन, 9 नवंबर को मामले की सुनवाई के लिए मान गए.
उन्होंने मामले की सुनवाई के लिए पीठ ने पांच शीर्ष जजों की एक संविधानपीठ के पास इसे भेज दिया. लेकिन इससे पहले कि जस्टिस चेलमेश्वर मामले में अपना लिखित आदेश जारी करते, एक मसौदा आदेश आ गया.
चीफ जस्टिस मिश्रा बनाम जस्टिस चेलमेश्वर
सीजेआई मिश्रा की तरफ से यह मसौदा आदेश मामले को अन्य बेंच के पास भेजने से पहले आया. इस बीच, याचिकाकर्ता ने दलील दी कि मुख्य न्यायाधीश मिश्रा को इस मामले से खुद को हितों के टकराव के मद्देनजर दूर रखना चाहिए क्योंकि वे खुद उस खंडपीठ का हिस्सा थे, जिसने इस संस्थान से जुड़े एक पूर्ववर्ती मामले में अनुकूल फैसला सुनाया था.
जस्टिस चेलमेश्वर ने मामले में कोई भी आदेश देने से इनकार कर दिया और इसे जजों के एक संवैधानिक पीठ के पास 13 नवंबर को सुनवाई के लिए भेज दिया.
दूसरी तरफ, सीजेआई ने 10 नवंबर को 7 जजों की एक बेंच गठित की. इससे पहले नौ नवंबर को न्यायाधीश जे चेलमेश्वर और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के पास सुनवाई के लिए भेजने का आदेश दिया था.
सीजेआई द्वारा गठित सात जजों की बेंच में से पांच जजों ने मामले से खुद को अलग कर दिया. लेकिन 10 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय खंठपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि जब तक मुख्य न्यायाधीश किसी मामले को हस्तांतरित नहीं करते है, तब तक कोई भी जज किसी मामले में सुनवाई नहीं कर सकता है.
पांच जजों की पीठ ने जस्टिस चेलमेश्वर के फैसले को रद्द करते हुए कहा, ‘सीजेआइ रोस्टर के मुखिया हैं, उन्हीं के पास पीठ गठन और मुकदमे आवंटित करने का प्राथमिक अधिकार है.’
एमसीआई घोटाला मामले को लेकर कई मुद्दों पर मतभेद सामने आए. इसमें सीजेआई द्वारा रोस्टर के बदलने पर कुछ न्यायाधीशों की नाराजगी है और कुछ मामलों में जांच के लिए मामले को अन्य बेंच को भेजना है, जिसमें जस्टिस लोया की मौत की जांच का मामला भी शामिल है.
परिणाम यह हुआ कि अंत में, सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीश शुक्रवार को सीजेआई के काम के तरीके के खिलाफ खुलकर विद्रोह में आ गए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश पर जजों के लगाए गए आरोप से इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट के प्रत्येक फैसले को आम जनता शक की निगाह से देखेंगे. जिसका परिणाम यह होगा कि प्रत्येक जज यह चाहेंगे कि वे कम से कम मुकदमों में फैसला सुनाएं . यदि ऐसा हुआ तो देश की न्यायपालिका से लोगों का विश्वास समाप्त हो जाएगा और देश गंभीर संकटों का सामना कर सकता है
जानिए सवाल उठाने वाले जजों को
जस्ती चेलमेश्वर
नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेन्ट्स कमीशन (NJAC) का समर्थन करने वाले और कोलेजियम व्यवस्था की आलोचना कर चुके जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर का जन्म आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हुआ था। वे आगे चलकर मुख्य न्यायाधीश के तौर पर केरल और गुवाहाटी हाईकोर्ट में नियुक्त हुए। भौतिकी विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई के बाद उन्होंने 1976 में आंध्र यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की। अक्टूबर, 2011 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए थे।
आपको बता दें कि जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर और रोहिंगटन फली नरीमन की 2 सदस्यीय बेंच ने उस विवादित कानून को रद्द किया जिसमें पुलिस के पास किसी के खिलाफ आपत्तिजनक मेल करने या इलेक्ट्रॉनिक मैसेज करने के आरोप में गिरफ्तार करने का अधिकार था। उनके इस निर्णय की देशभर में जमकर तारीफ हुई।
जस्टिस कुरियन जोसेफ
1979 में अपनी वकालत कॅरिअर की शुरुआत करने वाले जस्टिस कुरियन जोसेफ 2000 में केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चुने गए। इसके बाद फरवरी, 2010 में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। 8 मार्च, 2013 को जस्टिस कुरियन सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए।
जस्टिस रंजन गोगोई
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जजों में शामिल जस्टिस रंजन गोगोई असम से आते हैं। उनके पिता केशव चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे हैं। गुवाहाटी हाईकोर्ट से कॅरिअर की शुरुआत करने वाले गोगोई फरवरी, 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। अप्रैल, 2012 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए।
वरिष्ठता के आधार पर अक्टूबर, 2018 में वह सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में हैं। यदि ऐसा हुआ तो वह भारत के पूर्वोत्तर राज्य से इस पद पर बैठने वाले पहले जस्टिस होंगे।
जस्टिस मदन भीमराव लोकुर
जस्टिस मदन भीमराव लोकुर की विद्यालयी शिक्षा नई दिल्ली में हुई। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास (ऑनर्स) में स्नातक की डिग्री पाई। फिर उन्होंने दिल्ली से ही कानून की पढ़ाई की। 1977 में उन्होंने अपने वकालत कॅरिअर की शुरुआत की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत की है। फरवरी से मई 2010 तक वे दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रहे। इसके बाद जून में वह गुवाहाटी हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश पद पर चुन लिए गए। इसके बाद वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के भी मुख्य न्यायधीश रहे हैं।